सैयद सलमान
मुंबई
अभी महाराष्ट्र में सरकार बने सप्ताह भर भी नहीं हुआ है कि महायुति के नेताओं ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। खासकर, उन नेताओं ने जिनको भाजपा ने केवल नफरत फैलाने के काम पर रखा है। उदाहरण के तौर पर भाजपा विधायक नितेश राणे ने महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार से मांग की है कि ‘लाड़की बहन योजना’ का लाभ मुस्लिम महिलाओं को नहीं दिया जाना चाहिए। राणे का दावा है कि इस योजना से महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिम समुदाय को हो रहा है। राणे के मुताबिक, जब चुनाव में वोट देने की बात आती है तो कोई भी भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट नहीं देता। राणे का आरोप है कि लोग वोट करते वक्त मोदी को नहीं, बल्कि हमारी योजनाओं का फायदा उठाना चाहते हैं। अब ऐसा नहीं होना चाहिए। राणे के इस बयान से मुसलमानों में नाराजगी है। उनका यह बयान संविधान के दायरे से बाहर है।
संविधान का अपमान
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, जिसे ‘समानता का अधिकार’ कहा जाता है। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद १४ से १८ में वर्णित है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता मिले। अनुच्छेद १४ के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा। इसका अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से न्याय मिलेगा। अनुच्छेद १५ में कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के प्रति धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। विधि निर्माताओं ने शायद इसका प्रावधान सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने और सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने के लिए ही किया होगा। अनुच्छेद १६ सार्वजनिक नियोजन में अवसर की समानता की गारंटी देता है। इसका मतलब है कि सरकारी नौकरियों में सभी नागरिकों को समान अवसर मिलना चाहिए। अनुच्छेद १७ में अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि कोई भी व्यक्ति सामाजिक भेदभाव का शिकार न होने पाए। अनुच्छेद १८ उपाधियों के अंत की बात करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि देश में केवल दो प्रकार की उपाधियां मान्य हैं—राज्य द्वारा दी गई उपाधियां और विद्या द्वारा अर्जित उपाधियां।
नफरत की दुकान
गौरतलब है कि भारतीय संविधान का समानता का अधिकार एक मौलिक मानवाधिकार है, जो समाज में न्याय और निष्पक्षता की आधारशिला रखता है। हमारा संविधान सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को उनके अधिकारों और स्वतंत्रताओं का संरक्षण मिले, जिससे एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो सके। यानी भारतीय संविधान सभी नागरिकों को एक समान अधिकार देता है, जो लोकतंत्र की मूल भावना की अक्कासी करता है। लेकिन राणे का बयान उपरोक्त सभी अनुच्छेद का हनन करता है। मोदी या राणे बजाय इस बात का चिंतन-मनन करने के कि मुस्लिम समाज आखिर उनसे क्यों खफा रहता है, इस बात पर ज्यादा जोर दे रहे हैं कि मुसलमानों को वैâसे अलग-थलग कर दिया जाए। नफरत के ऐसे माहौल में गैर भाजपा विपक्ष की सराहना होनी चाहिए, जिन्होंने मुस्लिम हितों का भी उतना ही ध्यान रखा जितना हिंदुत्व का। सरकार बना लेने से चूक जाने का अर्थ यह नहीं होता कि ये पार्टियां खत्म हो गई हैं।
मोदी के दुश्मन नितेश
नितेश राणे को पहले अपने सहयोगी शिंदे गुट और अजीत पवार की एनसीपी से सवाल पूछना चाहिए कि आखिर क्या सोचकर उन लोगों ने मुसलमानों को टिकट दिया। अब्दुल सत्तार, हसन मुश्रीफ और सना मलिक के साथ आखिर वह वैâसे सदन में बैठेंगे। सबसे बड़ी बात मुसलमानों से इतना ही बैर है तो नितेश के बड़े भाई निलेश राणे वैâसे शिंदे गुट में हैं, जहां पर अब्दुल सत्तार जैसे लोग हैं। सत्ता के लिए इधर-उधर करनेवाले अब नफरत की बुनियाद पर अपनी पैठ बनाना चाहते हैं। क्या यह नितेश राणे को शोभा देता है? नफरत की भाषा बोलने वाले नितेश की अनेकों तस्वीरें हैं, जिनमें वे मुसलमानों के साथ सर पर टोपी लगाए नजर आ रहे हैं। तब वे ढोंग कर रहे थे या अब कर रहे हैं यह तो वही जानें, लेकिन वे हिंदुत्व की आड़ में अपने गिरेबान पर लगे दाग को धोना चाहते हैं। एक पुरानी कहावत है, ‘नया मुल्ला ज्यादा जोर से अजान देता है’, राणे वही कर रहे हैं। भाजपा देशभर में मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने के लिए ‘मोदी भाईजान’ अभियान चला रही है और छोटे राणे उनकी योजना में पलीता लगा रहे हैं। मुसलमानों को चाहिए कि राणे की बातों में न आएं। सरकारी योजना का खुलकर लाभ लें। वोट न देने पर सुविधाएं खींच लेने की बात करने वाले दरअसल लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही खिलवाड़ कर रहे हैं। मोदी और भाजपा को ऐसे तत्वों पर अंकुश लगाना चाहिए।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)