सैयद सलमान
मुंबई
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप निर्विवाद विजेता बनकर उभरे हैं, वहीं कमला हैरिस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। माना जा रहा है कि ट्रंप की जीत में अमेरिकी मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हाथ है, जिन्हें अब तक डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थक माना जाता रहा है। ट्रंप की छवि अश्वेत और मुस्लिम विरोधी रही है, लेकिन इस बार उन्होंने इन धारणाओं को बदलने का प्रयास किया। अश्वेतों के साथ-साथ उन्हें मुसलमानों के भी वोट मिले। इस बार ट्रंप ने अमेरिका के मुसलमानों के वोट पाने की खूब कोशिश की। ट्रंप ने मिशिगन पहुंचकर मुस्लिम मेयर आमिर गालिब और दूसरे मुस्लिम नेताओं से मुलाकात की। मिशिगन के डियरबोर्न शहर में ट्रंप को मिली बढ़त आश्चर्यजनक है। यहां करीब ५५ फीसदी आबादी मुसलमानों की है, जो मध्य-पूर्व या उत्तरी अप्रâीका से ताल्लुक रखती है। डोनाल्ड ट्रंप का मुसलमानों के साथ संबंध पिछले कुछ वर्षों में काफी बदल गया है। पहले उन्होंने मुस्लिम देशों पर यात्रा प्रतिबंध और मुस्लिम रजिस्ट्रेशन जैसे नीतियों का समर्थन किया था, जिससे उनकी छवि मुस्लिम विरोधी बनी थी, लेकिन हाल के चुनावों में ट्रंप ने गाजा संघर्ष के संदर्भ में शांति का वादा किया था, जिससे मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हुए। दरअसल, बाइडेन प्रशासन की विदेश नीति से निराश होकर मुस्लिम मतदाताओं ने ट्रंप को विकल्प माना, जिन्होंने युद्ध को समाप्त करने का वादा किया। यही वह टर्निंग पॉइंट रहा, जिसने ट्रंप की जीत को और आसान बना दिया।
देश-विदेश में मुसलमानों के प्रति पैâली नफरत ने आम मुसलमानों में बेचैनी का माहौल बना दिया है। हमारे देश में, जहां मुसलमानों की आबादी २० प्रतिशत से भी कम है, उनके खिलाफ एक नकारात्मक नरेटिव सेट किया गया है और उन्हें समाज से अलग-थलग करने की कोशिश की गई है। केंद्र की भाजपा नीत सरकार ने अपने प्रयासों से मुस्लिम विहीन संसद का खाका तैयार किया है। आज की तारीख में, भाजपा से कोई सांसद न ही लोकसभा में है और न ही राज्यसभा में। इसका मुस्लिम समाज पर गहरा असर पड़ा है। वे कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणाओं के बावजूद भाजपा के साथ खड़ा होने से कतराते हैं। भाजपा ने अपने कोर वोट बैंक को यह संदेश दे दिया है कि मुसलमानों के बिना सत्ता प्राप्त की जा सकती है, जिससे मुसलमानों में असुरक्षा का भाव पैदा हुआ है। ध्रुवीकरण की यह राजनीति मुसलमानों को हाशिए पर ले जा रही है। देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और कई भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी मुस्लिम विरोधी बयान खुले आम देते हैं। इसके विपरीत, फिलिस्तीन जैसे मुद्दे पर ट्रंप ने शांति की बात कहकर और मुसलमानों के प्रति भेदभाव न करने का आश्वासन देकर मुसलमानों का विश्वास जीता। मुसलमानों को शांति और सुरक्षा की दरकार है, लेकिन यह सरकार उन्हें वह देने के बजाय हिंसक तत्वों को उकसाती है। सरकार उन लोगों का सत्कार करती है जो मॉब लिंचिंग में शामिल होते हैं और खुद भी हिंसक वातावरण बनाती है, जिससे मुसलमानों में असुरक्षा का भाव बढ़ता है।
अगर हमारे देश की सरकार की तुलना ट्रंप की वर्तमान बननेवाली सरकार से की जाए, तो यह स्पष्ट है कि उन्होंने मुसलमानों के प्रति अपने रुख में बदलाव किया है। जब डोनाल्ड ट्रंप पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे, तब उन्होंने मुसलमानों के लिए एक ‘राष्ट्रीय रजिस्ट्री’ बनाने और मुस्लिम देशों से अप्रवास पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा था। अपने अभियान के दौरान, ट्रंप लगातार मुस्लिम विरोधी बयान देते रहे। हालांकि, इस बार उनके अभियान में बड़ा बदलाव देखने को मिला। अमेरिकी मुस्लिम मतदाता गाजा युद्ध से निपटने के लिए निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन की नीतियों और सामाजिक मुद्दों पर डेमोक्रेट्स के रुख को लेकर नाखुश थे, जबकि २०१६ और २०२० के चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी को मुसलमानों का पूरा समर्थन मिला था। बाद में मुस्लिम आबादी वाले मध्य-पूर्व युद्ध में इजरायल का साथ देने के कारण मुसलमानों में जो बाइडेन को लेकर नाराजगी पैâली। ऐसे में ट्रंप को बेहतर विकल्प माना गया, क्योंकि वे युद्ध का समाधान निकालने की बात कर रहे थे। उनका घोषवाक्य ‘मैं युद्ध शुरू नहीं करूंगा, मैं युद्ध खत्म करूंगा’ काफी चर्चित हुआ। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत से ही अमेरिका लगातार यूक्रून को आर्थिक मदद देता आ रहा है। इजरायल मामले में भी अमेरिका का रुख फिलिस्तीन विरोधी रहा। ऐसे में ट्रंप के इस घोषवाक्य ने लोगों में एक विश्वास पैदा किया। नतीजा सामने है, लेकिन हमारे यहां सबको साथ लेकर चलने का चलन बहुत पीछे छोड़ दिया गया है। यह देखना होगा कि क्या मोदी अपने कथित दोस्त ट्रंप से सबको साथ लेकर चलने की सीख लेते हैं या अपनी नफरत की दुकान को और ज्यादा सजाते हैं।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)