मुख्यपृष्ठस्तंभइस्लाम की बात : शुक्र है हम हिंदुस्थान में हैं

इस्लाम की बात : शुक्र है हम हिंदुस्थान में हैं

सैयद सलमान
मुंबई

मुस्लिम समाज में इस बात को लेकर एक चिंता बनी रहती है कि क्या वह हिंदुस्थान में सुरक्षित हैं? क्या उनके साथ सौतेला व्यवहार नहीं हो रहा? चिंता जायज भी है और उसके कई कारण भी हैं, लेकिन अगर पड़ोसी मुल्कों के अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गौर किया जाए तो स्थिति साफ हो जाएगी। नि:संदेह बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू भाइयों की अपेक्षा हिंदुस्थान के मुसलमान ज्यादा सुरक्षित हैं, चूंकि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए यहां का संविधान सभी धर्मों के प्रति समानता की गारंटी देता है। इसके विपरीत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं को लगातार भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। हाल ही में हुए शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़े हमले इसका उदाहरण हैं। हालांकि, एक संस्कृति होने के कारण वहां भेदभाव पाकिस्तान की अपेक्षा कम था, फिर भी ऐसा हुआ। उसके राजनीतिक कारण भी हैं। यह राजनीति ही है जो भेद पैदा करती है।
जहां तक हिंदुस्थान में मुसलमानों की सुरक्षा की बात है तो यहां मुसलमानों के लिए कई कानून और नीतियां हैं। सबसे पहले यहां के संविधान पर हर हिंदुस्थानी को पूर्ण विश्वास है, जिसमें सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया है। धार्मिक भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा भी इसमें शामिल है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), जिसे अब भारतीय न्याय संहिता के रूप में जाना जाता है, वह कानून भी मुसलमानों सहित सभी नागरिकों को किसी भी प्रकार के भेदभाव या हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है। वर्षों से केंद्र और अनेक राज्य सरकारों ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के माध्यम से मुसलमानों सहित अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई हैं। एक और कानून है, जो मुसलमानों को राहत देता है। हालांकि, वर्तमान केंद्र सरकार उसे निरस्त करने पर आमादा है, वह है मुस्लिम पर्सनल लॉ। यह मुसलमानों को अपने व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह और विरासत को अपने धार्मिक कानूनों के अनुसार संचालित करने का अधिकार और अनुमति देता है। हालांकि, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) जैसे कुछ कानूनों ने मुसलमानों के अधिकारों को लेकर चिंताएं जरूर पैदा की हैं।
हिंदुस्थान में मुसलमान असुरक्षित महसूस करते हैं, इसके कई कारण हैं, जिनमें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारक शामिल हैं। लव जिहाद, गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग, भड़काऊ नारों के साथ आम मुसलमानों के साथ हिंसा, उनकी दाढ़ी नोचते हुए तस्वीरें और वीडियो वायरल करना जैसे कई कारक हैं जो मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। इससे मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा और भय का भाव उत्पन्न होता है। कई क्षेत्रों में उन्हें आर्थिक, सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति और असुरक्षित हो जाती है। हाल के वर्षों में कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे हुए हैं, जिनमें मुसलमानों को निशाना बनाया गया। सरकार की प्रतिक्रिया अक्सर ढीली रही है, जिससे हिंसक तत्वों का मनोबल बढ़ता है। कई रिपोर्टों में यह सामने आया है कि पुलिस ने मुसलमानों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई की। मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैâलाने वाले फेक वीडियो और अफवाहों ने उनके खिलाफ हिंसा और भेदभाव को बढ़ावा दिया है।
वैसे तो जहां दो-चार बर्तन हों तो टकराते ही हैं, लेकिन वह टकराव तोड़-फोड़ में बदल जाए तो चिंता होना लाजिमी है। बस ऐसी ही कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं, जैसे कि कुछ क्षेत्रों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा। हालांकि, समग्र रूप से मुसलमानों की सुरक्षा के लिए कई कानूनी और सरकारी प्रावधान मौजूद हैं। मुसलमानों पर जुल्म होने की स्थिति में कई विपक्षी दल, सामाजिक संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता आगे आकर उनका साथ देते हैं। सुखद बात यह होती है कि उसमें बिरादरान-ए-वतन हिंदू, सिख, ईसाई जैसी कौम के लोग बड़ी संख्या में होते हैं। हिंदुस्थानी मुसलमानों के लिए यह राहत की बात है। कई गैर-सरकारी संगठन और सामुदायिक समूह मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे हैं।
सांप्रदायिक विवादों से बचने के लिए सौहार्द जरूरी है, क्योंकि यह राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को बनाए रखता है। विवादों से न केवल हिंसा होती है, बल्कि विकास भी प्रभावित होता है। जब विभिन्न समुदाय मिलकर काम करते हैं तो यह आर्थिक विकास में सहायक होता है। एकजुटता से व्यापार, उद्योग और अन्य क्षेत्रों में प्रगति होती है। आपसी सौहार्द से सभी धर्मों के प्रति समानता के मूल्यों की रक्षा होती है, साथ ही देश के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है। हिंदू और मुस्लिम संस्कृति का मेल भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाता है। संगीत, कला, और साहित्य में इस समन्वय का महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसे में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द न केवल वर्तमान, बल्कि भविष्य के लिए भी आवश्यक है। यह कहने से हिचकना नहीं चाहिए कि ‘शुक्र है हम हिंदुस्थान में हैं।’
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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