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इस्लाम की बात : असल धर्म है मजलूम का साथ देना

सैयद सलमान
मुंबई

पड़ोसी देश होने के नाते बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद देश छोड़ने का असर हमारे देश पर भी पड़ा है। छात्र आंदोलन की आड़ में अचानक उठे इस विद्रोह के पीछे तात्कालिक कारण अल्पसंख्यकों और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आरक्षण बताया जा रहा है। हमारे देश में भी कुछ लोगों ने वहां फैली अराजकता को तानाशाही का अंत, लोकतंत्र की विजय, सिंहासन खाली करो जैसे जुमले कहना शुरू कर दिया। कई मुसलमानों ने बांग्लादेश में फैली अराजकता को इस्लाम की जीत के रूप में देखते हुए बकवास करना और सोशल मीडिया पर लिखना शुरू कर दिया। मुस्लिम नाम वाले कुछ भी लिखें या कहें, फिरकापरस्त ताकतें उनके लिखने और बोलने का फायदा उठाकर दुष्प्रचार करती हैं। उन्मादी मुसलमान ऐसी ताकतों को नफरत परोसने के लिए खाद और पानी प्रदान करने का कार्य अप्रत्यक्ष रूप से करते हैं, जिन्हें सिवाय नफरत के कुछ और पसंद ही नहीं है।
सबसे दुखद है बांग्लादेश के मुसलमानों का, वहां के हिंदू भाइयों के साथ अपनाया गया रवैया। शेख हसीना का विरोध करना न करना वहां का स्थानीय मसला हो सकता है, लेकिन हिंदू भाइयों के धार्मिकस्थलों को तोड़ना-जलाना, उन्हें जानी और माली नुकसान पहुंचाना किसी भी दृष्टिकोण से गलत है। यह कृत्य इस्लाम और इंसानियत के खिलाफ है। इस्लाम किसी के पूजास्थल को तोड़ने या जलाने की इजाजत नहीं देता। इतना ही नहीं, बल्कि छात्र आंदोलन के नाम पर महिलाओं के प्रति जो असम्मान दिखाया गया वह भी शर्मनाक है। ये वैâसी हरकत है कि हुड़दंगी किसी औरत की आबरू ढकनेवाले कपड़ों की नुमाइश कर रहे हैं। शेख हसीना और उनके परिजनों के अंतर्वस्त्रों का हवा में लहराते हुए प्रदर्शन करना सड़ी-गली मानसिकता का प्रतीक है। अगर यही आंदोलन है तो ऐसे आंदोलन का समर्थन करनेवालों को शर्म आनी चाहिए। यह इस्लाम के प्रति अज्ञानता के सिवा और कुछ नहीं है। सभी मुसलमानों को इसकी सख्त मजम्मत करनी चाहिए। हालांकि, कई ऐसी खबरें और तस्वीरें सुखद एहसास से तर कर गर्इं, जिनके अनुसार कई मुसलमानों, मदरसों के छात्रों और उस्तादों सहित अनेक मुस्लिम संगठनों ने हिंदू बस्तियों, उनके धार्मिक स्थलों पर पहरा दिया और हिंसक भीड़ को फटकने तक नहीं दिया।
बांग्लादेश में चल रहे राजनीतिक संकट का यहां के कई राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए उपयोग कर सकते हैं, जिससे यहां के मुसलमानों की पहचान और उनकी राजनीतिक भागीदारी पर असर पड़ सकता है। उन्हें यहां अलग-थलग करने की साजिश हो सकती है। यहां पर भी जुल्म-ओ-ज्यादती बढ़ सकती है। कुछ ताकतों ने अभी से यह साजिश रचनी शुरू कर दी है और यहां के मुसलमानों को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश में हालिया घटनाक्रम के लिए यहां के मुसलमानों को दोषी ठहराना अनुचित है। बांग्लादेश में हिंसा का कारण राजनीतिक अस्थिरता और आरक्षण संबंधी विरोध है, जो कि वहां के स्थानीय मुद्दे हैं। हिंदुस्थानी मुसलमानों का इससे भला क्या संबंध? यहां के मुसलमानों का एक अलग सामाजिक और सांस्कृतिक ताना-बाना है, जो बांग्लादेश की स्थिति से बिल्कुल भिन्न है। इस तरह पूर्वाग्रहों के आधार पर लगे आरोपों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है, जो सामाजिक एकता के लिए हानिकारक है, जबकि जरूरत है कि सभी समुदाय एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता और समझदारी दिखाएं।
अब बात उन लोगों से भी की जानी चाहिए जो फिलिस्तीन के मासूम बच्चों की लाशों पर कहकहे लगा रहे थे। हिंदुस्थान में मुसलमानों की बेशुमार लिंचिंग पर मजे ले रहे थे। किसी मुसलमान पर हो रहे अत्याचार को मुगलों के इतिहास से जोड़कर उसका बदला बता रहे थे। उन्हें समझना होगा कि जुल्म कहीं भी हो मजलूम के साथ खड़े होना ही असल धर्म है। इजरायल पर हमास की कार्रवाई अगर गलत है, तो गलत है। उसके लिए हमास को कोसना वाजिब है, लेकिन बच्चों की लाशों पर, रोती बिलखती महिलाओं पर, बूढ़े और नौजवानों के शोक पर खुश होना यह दर्शाता है कि इंसानियत की जगह हैवानियत ने ले ली है। अब बांग्लादेश के हिंदुओं पर हो रहे जुल्म पर रोना-पीटना उनका पाखंड है। बांग्लादेश के मुसलमानों के लिए भी यही बात लागू होती है। वहां के अल्पसंख्यक तुम्हारे भाई हैं। अगर तुमको जन्नत और जहन्नुम पर यकीन है तो उनकी इबादतगाहों को तोड़कर तुम अपने लिए अपने रब के यहां जहन्नुम खरीद रहे हो, क्योंकि मजलूम की हाय देर-सवेर पूरा अर्श हिलाने का माद्दा रखती है। मुसलमानों को तर्कशील और निष्पक्ष होना चाहिए। यह पाखंड ही तो है कि तुम्हें हिंदुस्थान में एक तरफ तो अल्पसंख्यक के नाम पर लोकतंत्र, संविधान, सुरक्षा और अधिकार चाहिए, लेकिन बाकी देश के अल्पसंख्यकों के प्रति तुम्हें कोई सहानुभूति नहीं है। क्या तुम्हारा रब पाखंड को पसंद करता है? कत्तई नहीं। इस्लाम में मुनाफिकत यानी पाखंड बहुत बड़ा गुनाह है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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