मुख्यपृष्ठस्तंभइस्लाम की बात: रमजान की इबादत और जकात का सदुपयोग

इस्लाम की बात: रमजान की इबादत और जकात का सदुपयोग

सैयद सलमान
इस्लाम धर्म में बेहद अहम माने जानेवाला रमजान का महीना शुरू हो गया है। इस्लाम में रमजान का महीना रहमतों और बरकतों का महीना है। लोग पूरे रमजान महीने में दिन भर रोजा अर्थात उपवास रखते हैं। दान-पुण्य करते हैं। खूब इबादत करते हैं। इस्लाम में मान्यता है कि इस महीने में पुण्य करने पर ७० गुना सवाब ज्यादा मिलता है। यही वजह है कि मुसलमान इस महीने में नेक काम ज्यादा करते हैं। गरीबों की मदद करना, मजलूमों पर रहम करना, पाप से परहेज करना और गुनाहों से दूर रहना, इस महीने के मुख्य उद्देश्य माने जाते हैं। इस्लाम धर्म में रमजान के महीने की बड़ी फजीलतें बताई गई हैं। रमजान का रोजा हर स्वस्थ मर्द और औरत का फर्ज है। बीमार, यात्री, गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे या फिर सूझबूझ न रखनेवाले मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति को रोजे न रखने की छूट है। पूरी दुनिया में आबादी के लिहाज से मुस्लिम समाज दूसरे नंबर पर आता है। मुस्लिम समाज बड़ी संजीदगी से रमजान माह की सभी इबादतों को अपनाने की फिक्र करता है। सेहरी, इफ्तारी, पांचों वक्त की नमाज, रमाजन माह में पढ़ी जानेवाली तरावीह की अतिरिक्त नमाज, कुरआन की तिलावत, फितरा-जकात जैसे तमाम पुण्य को करने में शायद ही कोई मुसलमान पीछे रहता हो। यह वह महीना है जब हम भूख को शिद्दत से महसूस करते हैं और सोचते हैं कि एक गरीब इंसान भूख लगने पर वैâसा महसूस करता होगा। बीमार इंसान जो दौलत होते हुए भी कुछ खा नहीं सकता, उसकी बेबसी को महसूस करते हैं। दूसरे की तकलीफ का एहसास करते हैं।
रमजान के रोजे अर्थात उपवास का मतलब केवल यह नहीं है कि आप सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहें, बल्कि उपवास वह प्रक्रिया है, जो उपवास करनेवाले को पूर्ण पवित्रता का मार्ग दिखाती है। रोजा इंसान को बुराई के रास्ते से हटाकर अच्छाई और सच्चाई की राह दिखाता है। रोजा बुराइयों से दूर रखता है। यह किसी का हक मारने, अमानत में खयानत करने से परहेज सिखाता है। रोजा बुरी बातों को सुनने, देखने, बोलने और यहां तक गलत को छूने तक से रोकता है। रोजा बेशर्मी और बेहयाई से बचाता है। रोजा से इंसान की सोच बदलती है। रोजा केवल खाने-पीने के लिए ही नहीं बल्कि शरीर के हर अंग के लिए है। बुरा बोलने, देखने, सुनने से और किसी भी तरह की बुराई को करने से रोकने का प्रयत्न करनेवाले रोजेदार ही सच्ची इबादत करते हैं। रमजान का बड़ा मकसद इंसान को बुराई के रास्ते से हटाकर अच्छाई की राह पर लाना है। इसका मकसद एक दूसरे के साथ स्नेह, प्यार, भाईचारा और खुशियां बांटना है। रमजान का मकसद केवल इतना ही नहीं है कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान के प्रति दयालु हो, बल्कि एक मुसलमान का यह कर्तव्य भी है कि वह किसी भी अन्य धर्म के अनुयायियों के प्रति प्रेम, आदर, सम्मान और दया का भाव रखे। ऐसा इसलिए, ताकि दुनिया के हर इंसान के बीच भाईचारे का रिश्ता बने और इसी के साथ-साथ गरीबों और जरूरतमंदों का भी कल्याण हो सके।
रमजान में जकात यानी दान का खास महत्व है। इस्लाम में हर हैसियत मंद मुसलमान को जकात अदा करना जरूरी है। हैसियत मंद वह शख्स है, जिसके ऊपर कोई कर्ज न हो और जिसके पास ७.५ तोला सोना या ५२.५० तोला चांदी हो। अगर किसी के पास साल भर उसकी जरूरत से अलग इतने सोने या चांदी के बराबर नकदी या कीमत का सामान है तो उसका २.५ फीसदी जकात यानी दान किसी भी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाना चाहिए। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका २.५ फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाए। यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद १०० रुपए बचते हैं तो उसमें से २.५ रुपए किसी गरीब को देना जरूरी होता है। अगर इससे ज्यादा भी दिया जाए तो कोई हर्ज नहीं है, लेकिन कम न हो। ईद पर भी फितरा के रूप में दान का हर मुसलमान के लिए प्रावधान है। इसमें २ किलो ४५ ग्राम गेहूं की कीमत तक की रकम घर के प्रति व्यक्ति के हिसाब से गरीबों में दान की जानी चाहिए। फितरा रूपी यह दान ईद की नमाज से पहले इसलिए भी अदा कर देना चाहिए ताकि गरीब-मिस्कीन भी अपनी ईद मना सकें। उपवास रखने से अगर जिस्म और रूह की पाकीजगी आती है तो दान-पुण्य से भी पाकीजगी का एहसास होता है। यह व्यवस्था शायद इसीलिए कायम की गई है कि धन के अभाव में कोई भी त्योहार की खुशियां मनाने से चूक न जाए।
कुछ मुसलमान सीधे दान देकर जकात अदा करते हैं। कई अन्य लोग मदरसों या मस्जिद में की गई व्यवस्था के माध्यम से जकात अदा करते हैं। इनके जिम्मेदारान की तरफ से जरूरतमंद लोगों को धन वितरित किया जाता है। हालांकि, इसी पर सवाल उठते हैं कि मुसलमानों में जकात वितरण का कोई योग्य इंतजाम नहीं किया जा सका है। कुरआन में दिखावे के लिए दान करनेवालों को भी सख्त हिदायत दी गई है। पवित्र धर्मग्रंथ कहता है, ‘ऐ ईमानवालों! अपने दान को एहसान जताकर और दुःख देकर उस व्यक्ति की तरह नष्ट न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल खर्च करता है और अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान नहीं रखता। ऐसा करनेवालों की हालत उस चट्टान जैसी है, जिस पर कुछ मिट्टी पड़ी हुई थी, फिर उस पर जोर की वर्षा हुई और उसे साफ चट्टान की दशा में छोड़ गई। ऐसे लोग अपनी कमाई से कुछ भी प्राप्त नहीं करते। और अल्लाह इनकार की नीति अपनाने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।’-(अल-कुरआन २:२६४)
रमजान में निकाली जानेवाली जकात की रकम गरीबों की मदद का जरिया है। इससे गरीब भी ईद का त्योहार मना लेते हैं। उनके दिल में पैसा न होने का मलाल नहीं रहता। इनकी मदद के लिए ही अल्लाह ने जकात का निकाला जाना वाजिब किया है। हर मुसलमान को इसे अदा कर देना चाहिए। गरीब लड़कियों की शादी में मदद करना, निराश्रित विधवाओं की मदद करना, गरीब गर्भवती महिलाओं की मदद करना, गरीब मरीजों के इलाज में मदद करना, गरीब बच्चों की स्कूल फीस भरना और उनके लिए किताबें-कॉपियां खरीद कर देना, इलाके के गरीब लोगों की जरूरतों को पूरा करना जैसे कई सामाजिक कार्य हैं, जिन्हें जकात की रकम से पूरा किया जा सकता है। इस वर्ष महाराष्ट्र सहित अनेक ठिकानों पर बेमौसम बरसात हुई है। फसलें नष्ट हुई हैं। कभी सूखा पड़ता है। कभी जलजला आता है। प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। किसानों, मजदूरों को बेहद नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में अगर ढंग से इंतजाम किया जाए तो जकात का पैसा उनके काम आ सकता है। यह वही किसान हैं, जिनकी बदौलत हम तक अन्न पहुंचता है। अगर वही परेशान हैं तो दिखावे की जकात का क्या अर्थ रह गया। उन तक भी मदद पहुंचाई जा सकती है। कर्ज में डूबे किसानों, मजदूरों की मदद करना बहुत बड़ा सवाब है। मुस्लिम उलेमा और मुफ्ती हजरात को इस दिशा में जागरूकता लानी चाहिए। ऐसा नहीं है कि मुसलमान जकात नहीं देता, लेकिन उसका सही इंतजाम न होने से अक्सर जकात की रकम सही जगह नहीं पहुंच पाती। जरूरतमंद गरीबों, यतीमों, मिस्कीनों तक रकम पहुंचे इसका ख्याल रखना चाहिए। मात्र भूखे रहकर या जकात के नाम पर जाने-अनजाने मदरसों की रसीदें फाड़कर या फिर दिखावे के लिए रकम देकर रमजान में की जाने वाली इबादत फर्ज अदायगी भला वैâसे हो सकती है? मुसलमानों को नए सिरे से इस पर सोचने की जरूरत है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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