शिक्षक

हूं मैं एक कोरा कागज, नि:शब्द न मैं रह पाता हूं।
उठा के तारे गर्दिश से,आसमानों में चमकाता हूं।
भटका हुआ हूं न पथ से मैं,न राह से मैं भटकता हूं।
अद्भुत सी है छवि अपनी, आदर्श शिक्षक कहलाता हूं।
सपनों को तुम्हारे समझ कर अपना,सपनों में भी ना सोता हूं।
बन कर सारथी तुम्हारे सपनों का, ऊंचे ख्वाब संजोता हूं।
है हसरत दिल में मेरे, नित आगे तुमको बढ़ना है।
ज़िन्दगी के इस कठिन डगर को,हिमालय सा चढ़ना है।
परख लो तुम अपनी शक्ति को,न सोचो साथ कौन है?
पाएगा हर वह अपना लक्ष्य,आज के दिन जो मौन है।
जीत भी होगी मेरी उस दिन,दिन भी वह मेरा खास होगा।
मिलेगा जो तुमको लक्ष्य तुम्हारा,जिसमें मेरा विश्वास होगा।

रचना:- विशाल चौरसिया

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