धर्म विहीन आतंक

कहते हो कि आतंक का धर्म नहीं होता
कब नहीं था, कब नहीं है और कब नहीं होगा।
धर्म के बिना आतंक हो ही नहीं सकता ।
जहां धर्म ही कट्टरता, क्रूरता का पाठ पढ़ाता
अधर्मी को मार जन्नत पा जाता
वहीं से रक्त बहाने की प्रेरणा पाता
कैसे माने कि धर्म का मज़हब नहीं होता ।
सनातन है आदी धर्म भारत का
जैन, बौद्ध, सिक्ख कई धर्म जन्में
साथ-साथ पले और पनपे
सनातन ने ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य नहीं सिखाया
शांत भाव सबको सीखा, गुना और समझाया।
आक्रांताओं के आने के बाद
हमारी धरती पर हमें काफिर बनाया
हमारी भूमि को हमारे रक्त से नहलाया।
भारत भूमि रक्तरंजित है अपने ही लहू से
बंटवारा हुआ धर्म के नाम से
फिर भी कुछ लोगों को समझ न आया।
आज भी बंटे देश के हिस्सों में
निहत्थे निर्दोष रोज मारे जा रहे
देश की धरती का खाने, पीने वाले
सभी जयचंद चुपचाप निहार रहे
धर्म के जुनून, क्रूरता पाश्विकताको किसने उकसाया।
आज भी कहते हो आतंकी का कोई धर्म नहीं
कैसे पूछ नाम, पहचान मार गिराया।
समय रहते चेत जाओ अपने रक्षक बनो
आज आतंकवाद में धर्म ही सामने आया।
-बेला विरदी

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