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पाक की नापाक मंशा! …नार्को टेरर के सहारे राजौरी-पुंछ जिलों में आतंकवाद

दीपक शर्मा
जम्मू। पांच अगस्त २०१९ जब जम्मू-कश्मीर राज्य को मिले संवैधानिक अनुच्छेद ३७० को निरस्त करते हुए केंद्र सरकार ने राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था, जिसके बाद कश्मीर घाटी में सक्रीय आतंकवाद पर सुरक्षाबलों की ताबड़तोड़ कार्रवाइयों ने आतंकवादियों के पांव उखाड़ दिए थे। अब फिर से राजौरी-पुंछ जिलों में अचानक आतंकी गतिविधियां बढ़ने लगी हैं, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण स्थानीय समर्थन और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार से जारी नार्को टेरर यानि मादक प्रदार्थों की तस्करी है। सीमावर्ती राजौरी व पुंछ जिलों में पाकिस्तान ने आतंक को पुनर्जीवित करने के लिए एक बड़ा षड्यंत्र रचा है। उसने पुराने ओवर ग्राउंड वर्करों (ओजीडब्ल्यू) के साथ सीमांत क्षेत्रों के नशेड़ी युवकों को नशे व पैसे का लालच देकर जोड़ा है। सीमावर्ती जिलों में पिछले तीन-चार वर्षों के भीतर तेजी से ओजीडब्ल्यू का नेटवर्क तैयार किया गया।

एलओसी पार से आने वाले मादक प्रदार्थों से लेकर आतंकियों को सुरक्षित शरण, वित्तीय मदद, हथियार और अन्य तरह की सहायता प्रदान करने में ये ओजीडब्ल्यू ही प्रमुख कड़ी हैं। यही ओजीडब्ल्यू नशे से आ रही मोटी कमाई को आतंकियों तक भी पहुंचा रहे हैं। चिंताजनक पहलू तो यह है कि इन ओजीडब्ल्यू का न तो कोई आपराधिक रिकॉर्ड है और न इनके पास हथियार होते हैं। यह अपने काम को अंजाम देकर समान्य जीवन जीते दिखाई देते हैं।

गत २० अप्रैल को पुंछ के भाटा-दुरियां क्षेत्र में सेना के वाहन पर हुए आतंकी हमले से पहले आतंकवादी तीन माह तक गिरफ्तार ओजीडब्ल्यू निसार अहमद के पास रहे। निसार १९९० से ही आतंकी मददगार रहा है। उसने पुंछ हमले के दोषी आतंकियों के खाने-पीने और रहने के प्रबंध करने के अलावा सीमा पार बात भी करवाई और हमला करने के बाद मौके से उन्हें सुरक्षित निकाला। निसार के अलावा तीन से चार ओजीडब्ल्यू और भी थे, जिन्होंने पुंछ हमले के दोषी आतंकवादियों की मदद की।

वर्ष २०२१ में राजौरी जिले के नौशेरा सेक्टर में एलओसी से सटे सरयाह गांव में मंजूर अहमद के ठिकाने से एक करोड़ ६४ लाख रुपए बरामद किए थे। मंजूर इस पैसे का इस्तेमाल आतंक को जिंदा रखने के अलावा युवाओं को आतंकी बनाने पर खर्च करता था। पुंछ जिले की मंडी तहसील के रफीक लाला की बात करें तो पंजाब पुलिस की सूचना पर उसे गिरफ्तार किया गया था। उसके घर की तलाशी में करीब सवा दो करोड़ की भारतीय मुद्रा के साथ सात किलो मादक प्रदार्थ ‘हेरोइन’, १५०० अमेरिकी डालर और एक पिस्टल बरामद की गई थी। रफीक को इस पैसे का कुछ हिस्सा आतंकियों तक भी पहुंचाना था।

एलओसी पार से मादक पदार्थ कई वर्षों से रफीक तक पहुंच रहा था। रफीक पुलिस में विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) था और क्रॉस एलओसी ट्रेड सेंटर में इसकी तैनाती थी। बाद में इसकी हरकतों की भनक लगने पर उसे नौकरी से हटा दिया गया। उसके बाद वह आतंकियों के ओजीडब्ल्यू के रूप में कार्य करने लगा। ऐसे ही काफी संख्या में ओजीडब्ल्यू राजौरी व पुंछ में सक्रिय हैं। यदि कश्मीर घाटी की तरह ओजीडब्ल्यू नेटवर्क ध्वस्त किया जाए तो इन दोनों जिलों में भी आतंकियों की कमर को तोड़ा जा सकता है।

वहीं पुंछ व राजौरी जिलों में हुए हमलों के मामले में जेल में बंद आतंकी समर्थक, नशा माफिया रफीक लाला की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। राज्य जांच एजेंसी पहले ही उससे नार्को टेरर मालों में पूछताछ कर रही थी। जांच एजेंसियां व पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी लगातार घंटों उससे पूछताछ में जुटे हैं। पुंछ व राजौरी जिलों में गांव-गांव तक रफीक का नशे के कारोबार का नेटवर्क है और नशीले पदार्थों से प्राप्त पैसा ही आतंकवाद के पोषण में इस्तेमाल होता रहा है। पुंछ के भाटा-दु़िरयां हमले के बाद से ही सुरक्षा एजेंसियां रफीक से लगातार पूछताछ में जुटी हैं।

आशंका है कि आतंकी हमलों के तार जेल में बंद रफीक से जुड़े हो सकते हैं। रफीक पुंछ के मंडी क्षेत्र में नियंत्रण रेखा से सटे गांव डन्न डुईया का निवासी है। इसी वर्ष मार्च में रफीक के ठिकाने से सात किलो ग्राम हेरोइन, करोड़ों रुपये के साथ हथियार भी बरामद किए गए थे।

इस मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक, डॉ. एसपी वैद कहते हैं कि राजौरी-पुंछ में जंगल, पहाड़ और दरिया हैं जो घुसपैठ करने वाले आतंकियों को सुरक्षित ठिकाने प्रदान करते हैं। जिन आतंकियों को घुसपैठ कराई गई है, वह पूरी तरह से प्रशिक्षित हैं। उन्हें राजौरी-पुंछ में कुछ काली भेड़ें हर प्रकार की मदद कर रही हैं अन्यथा वह वहां जिंदा नहीं रह सकते।

राजौरी व पुंछ जिलों के एलओसी से लगते क्षेत्रों में भारतीय मोबाइल नेटवर्क लो प्रâक्वेंसी पर होने के कारण नेटवर्क शून्य रहता है। जबकि इन्हीं क्षेत्रों में हाई प्रâक्वेंसी के कारण पाक का मोबाइल नेटवर्क बड़ी आसानी से चलता है। अधिकतर ओजीडब्ल्यू के पास पाकिस्तानी मोबाइल सिम रहती है। यह सिम सीमा पार आतंकी संगठनों के कमांडरों से संपर्क करने का आसान साधन बनी हुई हैं। वहां से जो फरमान उन्हें मिलता है वह आतंकियों तक पहुंचा देते हैं। उसके बाद आतंकी अपनी कार्रवाई की तैयारी में जुट जाते हैं। पाकिस्तानी सिम से सीमा पार हो रही बातें पकड़ पाना आसान काम नहीं ह। इसी स्थिति का लाभ उठाते हुए पकिस्तान एलओसी के साथ लगते उपरोक्त जिलों में नार्को टेरर के सहारे आतंकवाद को जीवित कर अंतराष्ट्रीय मंचों पर सिद्ध करना चाहता है कि भारत के जम्मू-कश्मीर में भारी अशांति व्याप्त है।

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