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अमरनाथ यात्रा पर गहराया आतंकी साया, हाइब्रिड का हाई टेंशन! …श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए सेना सज्ज

सुरेश एस डुग्गर / जम्मू
जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों के सफाए का दावा केंद्र की मोदी सरकार, भाजपा और उसकी सोशल मीडिया सेल हमेशा ही करती रही है लेकिन बीच-बीच में आतंकी टारगेट किलिंग व अन्य आतंकी वारदातों को अंजाम देकर सरकार के दावों की हवा निकालते रहते हैं। पाकिस्तान और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की आतंकवाद को लेकर अपनाई गई नई नीति यानी कि हाइब्रिड आतंकियों के इस्तेमाल को जानकार इसकी वजह बताते हैं। जल्द ही शुरू होनेवाली अमरनाथ यात्रा पर भी हाइब्रिड आतंकियों के हमले को लेकर आशंका जताई जा रही है।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर पुलिस कश्मीर घाटी में महज ५० आतंकियों के बचे होने का दावा कर रही हैं लेकिन खुफिया एजेंसियों द्वारा आनेवाले दिनों में दक्षिण कश्मीर में आतंकी हमले तेज होने की चेतावनी जारी किए जाने से पुलिस एवं जांच एजेंसियों के हाथ-पांव भी फूलने लगे हैं। अधिकारियों के मुताबिक, आतंकी चाहे संख्या में कम हो गए हैं पर हाइब्रिड आतंकी हजारों में हैं, जिनसे ही मुख्य खतरा बताया जा रहा है।
ऐसे में अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा चिंता का कारण बनती जा रही है क्योंकि यह दक्षिण कश्मीर में ही संपन्न होती है। अत: इसे फुल प्रूफ बनाने को सेना भी पूरी तरह से मैदान में उतरने की तैयारी में है। उसका सारा जोर दक्षिण कश्मीर में होगा, जहां अमरनाथ यात्रा में शामिल होनेवाले लाखों श्रद्धालु आएंगें और चिंता की बात यह है कि कश्मीर में अधिकतर आतंकी हमलों, आतंकी गतिविधियों तथा पत्थरबाजों का गढ़ भी हमेशा दक्षिण कश्मीर ही रहा है।
हाइब्रिड यानी पार्ट टाइम आतंकवादी
हाइब्रिड आतंकियों को यूं भी समझा जा सकता है कि वैसे तो ये सामान्यरूप से अपना काम करते हैं लेकिन मौका मिलने पर आतंकी घटना को अंजाम देने को कोई मौका नहीं चूकते हैं। वे अपनी जीवनशैली में ही कुछ समय दहशतगर्दी को भी देते हैं। इनके पास हथियार भी होते हैं जो कि आतंकी संगठनों की तरफ से मुहैया कराई जाती है। ऐसे आतंकी तैयार करने के लिए सबसे पहले ब्रेनवॉश किया जाता है। धर्म और नफरत के नाम पर उसे कुछ भी करने के लिए तैयार किया जाता है। इसके बाद उसे गुप्त रूप से तमाम घातक शस्त्रों को चलाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
‘तलाश करो और मार डालो’ अभियान
रक्षा सूत्रों की मानें तो ३० जून से आरंभ होने जा रही अमरनाथ यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए हजारों सैनिकों की मदद से दक्षिण कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में व्यापक तलाशी अभियान आरंभ करने की तैयारी करने को कहा गया है। इन अभियानों का लक्ष्य ‘तलाश करो और मार डालो’ ही होगा। अभी तक यही होता आया था कि सेना अमरनाथ यात्रा की शुरुआत से पहले आतंकियों को क्षेत्र से भगाने का अभियान छेड़ती थी लेकिन अब रणनीति को बदल दिया गया है। वैसे अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा की खातिर सेना की तैनाती आधिकारिक तौर पर नहीं होगी। सेनाधिकारी कहते हैं कि उनके पास यात्रा के बाहरी इलाकों की सुरक्षा का भार हमेशा की तरह रहेगा। पर सूत्रों के अनुसार, अन्य सुरक्षाबलों को इस बार भी खतरे को भांपते हुए सेना की कमान के तहत ही अमरनाथ यात्रा में कार्य करना होगा। आधिकारिक तौर पर ७५ हजार से अधिक अर्द्ध सैनिक बलों को अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा की खातिर तैनात किया जाएगा। इनमें सेना के जवानों की गिनती नहीं होगी और न ही प्रदेश पुलिस के जवानों की।
२६ साल, १४ हमले, ६८ मौतें
अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए इस बार भी करीब डेढ़ लाख से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किए जाने की बात कही जा रही है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद भी लखनपुर के प्रवेश द्वार से लेकर अमरनाथ गुफा तक के मार्ग पर आतंकी हमलों की आशंका बनी रहती है, इसकी वजह अमरनाथ यात्रा पर अतीत में हुए आतंकी हमलों को बताया जा रहा है। १९९३ से २०२१ के बीच के २६ वर्षों में अमरनाथ यात्रा पर १४ बार आतंकी हमले हो चुके हैं, जिनमें ६८ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। १९८० के दशक के आखिर में कश्मीर में पाकिस्तान की शह पर आतंकवाद की शुरुआत हुई। आतंकियों ने साल १९९३ में पहली बार अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाया। इसी तरह वर्ष १९९४ में दूसरा और १९९५ में तीसरा हमला हुआ था। हमलों का सिलसिला वर्ष १९९६ में भी जारी रहा। वर्ष १९९३ और ९६ में दो हमले हुए थे लेकिन अमरनाथ यात्रा पर सबसे बड़ा हमला वर्ष २००० में हुआ, जिसमें ३२ श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। २ अगस्त २००० को अमरनाथ यात्रियों के पहलगाम बेस कैंप में अंधाधुंध फायरिंग की गई थी। इस बर्बर आतंकी हमले में ६० से अधिक लोग घायल भी हुए। इस हमले के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ बताया गया। इसी तरह २० जुलाई २००१ को आतंकियों ने पहलगाम बेस कैंप से आगे शेषनाग लेक के पास अमरनाथ यात्रियों के एक कैंप पर दो हथगोले फेंके, जिसमें १२ लोगों की मौत हुई और १५ लोग घायल हुए थे। ३० जुलाई २००२ को श्रीनगर में श्रद्धालुओं की टैक्सी को बनाया निशाना। इस हमले में दो यात्रियों की मौत हो गई और दो लोग घायल हुए। ६ अगस्त २००२ को पहलगाम स्थित ननवान कैंप के पास लश्कर के आतंकियों ने ग्रेनेड फेंका और गोलीबारी की, इस हमले में ९ लोगों की मौत हुई और २७ लोग घायल हुए। वर्ष २००६ में आतंकियों ने फिर अमरनाथ यात्रियों की बस पर भी ग्रेनेड फेंका था, जिसमें एक श्रद्धालु की मौत हो गई थी। १० जुलाई २०१७ में श्रद्धालुओं की बस पर हुआ हमला सबसे ताजा हमला था।

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