– परेल के ग्लेन ईगल्स अस्पताल में हुई सर्जरी
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
एक पिता अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकता है। इराक में चल रही युद्ध जन्य स्थिति के दौरान एक शख्स ने अपनी १३ वर्षीय बेटी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए मुंबई लाकर उसकी सर्जरी कराई। परेल स्थित ग्लेन ईगल्स अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने बच्ची की सफलतापूर्वक सर्जरी की। बच्ची का नाम राइमास अली करीम है जो अपने चेहरे के बाएं हिस्से में एक दुर्लभ जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुई थी। इस स्थिति के कारण उसे गंभीर रक्तस्राव और संक्रमण हुआ था। बच्ची का इलाज होना काफी जरूरी था, लेकिन इराक में युद्ध जन्य स्थिति के कारण इलाज के लिए भारत आना काफी मुश्किल था। लेकिन बच्ची के लिए पिता उसका सभी जोखिमों को पार करते हुए न केवल भारत आए बल्कि बच्ची का इलाज भी कराया।
जुलाई २०१९ में उनकी यात्रा शुरू हुई थी। कोविड-१९ महामारी और बढ़ते युद्ध के कारण समय रहते बच्ची को उपचार नहीं मिल पाया। बच्ची की सेहत को देखते हुए मई २०२४ में युद्ध के बावजूद उसके पिता उसे भारत ले आए। डॉ. सतभाई ने ३० मई, २०२४ को क्रॉस फेशियल नर्व ग्राफ्टिंग से जुड़ी दो-चरणोें की सर्जरी का पहला चरण पूरा किया। ऑपरेशन सफल रहा और राइमास को सिर्फ तीन दिन बाद ही छुट्टी दे दी गई।
डॉ. सतभाई ने बताया कि अप्रैल २०२५ में सर्जरी के दूसरे चरण से पहले हम तंत्रिका ठीक होने के लिए ८-१० महीने इंतज़ार करेंगे। इसमें उसकी जांघ से उसके चेहरे पर एक मांसपेशी का प्रत्यारोपण करना, गति और समरूपता को बहाल करना शामिल होगा। जटिल स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहे विदेशी मरीजों के लिए भारत आशा की किरण है।
राइमास के पिता ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरी बेटी की तकलीफ देखकर में काफी डर गया था। इराक में युद्ध चलने के कारण घर से बाहर निकलना खतरे से कम नहीं था। लेकिन बच्ची को इलाज के लिए भारत लाना भी जरूरी था। डॉ. सतभाई और उनकी टीम की बदौलत मेरी बेटी अब मुस्कुरा सकती है, खा सकती है, और बोल सकती है। हम घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं, जहां वह दोस्तों के साथ फिर से खेल सकेगी और अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर सकेगी। मुझे उम्मीद है कि जैसे मेरी बेटी की हालत में सुधार हुआ है, वैसे ही हमारे देश का संघर्ष भी समाप्त हो जाएगा।
ग्लेन ईगल्स हेल्थकेयर इंडिया के सीओओ डॉ. विवेक तलौलीकर ने कहा कि इस बहादुर इराकी बच्ची और उसके परिवार की यात्रा बेहद प्रेरणादायक है। अकल्पनीय चुनौतियों के बीच उनकी दृढ़ता मानवीय भावना की ताकत का प्रमाण है। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि वैâसे समर्पण और विशेषज्ञ देखभाल से दुर्गम बाधाओं को पार किया जा सकता है, जिससे एक युवा लड़की के जीवन में खुशी और उम्मीद लौट आती है।