मुख्यपृष्ठग्लैमर‘अब मेरा वो दौर रहा नहीं!’-पंकज त्रिपाठी

‘अब मेरा वो दौर रहा नहीं!’-पंकज त्रिपाठी

पंकज त्रिपाठी एक ऐसे होनहार एक्टर हैं, जिन्होंने अपने करियर के २० वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। २००३ में एक साउथ फिल्म से अपने करियर का आगाज करनेवाले पंकज त्रिपाठी ने अभिनय में मौके तलाशने के लिए काफी पापड़ बेले। ‘मसान’, ‘बरेली की बर्फी’, ‘फुकरे सीजन-१-२’, ‘लुका छिपी’ जैसी फिल्मों में अपनी परफॉर्मेंस से प्रभावित करनेवाले पंकज त्रिपाठी का एमेजॉन प्राइम पर रिलीज वेब शो ‘मिर्जापुर’ में अपनी अलग छाप छोड़ी है। पेश है, पंकज त्रिपाठी से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

आपकी होमवर्क करने की क्या पद्धति है?
अगर वक्त है तो शूटिंग शुरू होने से पहले मैं मानसिक तौर पर चिंतन जरूर करता हूं। वरना इस स्पॉन्टेनियसली निभाने का प्रयास करता हूं। यह समझिए कि हमारे इर्द-गिर्द बहुत भीड़ है। किरदार को पकड़ने और समझने के लिए एक धागा चाहिए। मैंने एक्टिंग की ट्रेनिंग ली है और उस ट्रेनिंग में किरदारों का अभ्यास करना सीखा है। कुछ किरदार दिल से बाहर निकलते हैं और कुछ बाहर से दिल की ओर आ जाते हैं। निर्देशक का मार्गदर्शन होता है। अगर सेट पर लाइटमैन लाइट और साउंड रिकॉर्डिस्ट साउंड ठीक से न दे तो हमारा काम वैâसे अच्छा होगा? अभिनय करना और किरदारों में ढल जाना एक कलेक्टिव प्रयास है। भले ही पर्दे पर कलाकार अकेला नजर आए।

रोल को स्वीकारने से पहले आप क्या देखते हैं?
कोई किरदार या फिल्म करने से पहले एक दर्शक की पैनी नजर से यह समझना आवश्यक है कि एक दर्शक के रूप में क्या आप वो कहानी, वो किरदार देखना पसंद करेंगे? कहानी एक्साइटिंग भी हो जैसे ‘मिर्जापुर’ या फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का किरदार हो। इन किरदारों और फिल्मों को दर्शकों ने याद रखा। हां, करियर के शुरुआती दौर में छोटा-बड़ा जो मिल जाए वो काम चाहिए था, लेकिन अब मेरा वो दौर नहीं रहा। अब यादगार किरदारों की तलाश होती है, जिन्हें निभाना चुनौती हो।

कैसे संभव हुआ ‘अखंडानंद त्रिपाठी’ को अगले सीजन तक ले जाना?
अभिनय करते-करते आदत सी हो जाती है। स्क्रिप्ट जब हाथ में आती है और संवाद सामने आते हैं तो किरदार का पूरा ग्राफ सामने आ जाता है। इंसान अपने रूट्स, अपनी आदतों को नहीं भूलता। एक मजेदार बात बताता हूं। फिल्म ‘स्त्री’ की शूटिंग के दौरान मैं सुबह-सुबह सेट पर पहुंचा। शूटिंग शुरू होने पर जब कैमरा ऑन तो मेरे अभिनय की स्टाइल को देखकर निर्देशक ने मुझसे कहा, ‘पंकज जी यह क्या, आप तो अटल जी वाला किरदार दोहरा रहे हैं।’ मुझे तुरंत अपनी गलती का एहसास हुआ, क्योंकि मैं देर रात तक फिल्म ‘अटल’ की शूटिंग में व्यस्त था। रात में फिल्म ‘अटल’ की शूटिंग खत्म कर ट्रेन द्वारा ललितपुर ‘स्त्री’ की शूटिंग पर पहुंचा। इस दौरान ‘अटल’ के किरदार का हैंगओवर मुझ पर रह गया। कभी-कभी गलतियां हो जाती हैं, मैं यह स्वीकारता हूं। निर्देशक ने कहा, ‘पंकज भाई, आज आप छुट्टी ले लो और आराम कर लो।’
‘मिर्जापुर’ के तीन सीजन के बाद क्या चौथे सीजन के लिए आप तैयार हैं?
यह कहा नहीं जा सकता। अगर चौथा सीजन मेकर करना चाहें तो अच्छी बात है। हर अच्छे काम के लिए मैं उत्साहित रहता हूं, लेकिन अति उत्साहित नहीं रहता। जब जो काम या जो ऑफर आए उसमें अच्छा काम करने का प्रयास रहता है।

क्या कभी अपना शॉट मॉनिटर में देखने के बाद आपने शॉट को दोबारा देना चाहा?
यह मेरा बड़प्पन नहीं और न ही मैं आत्मस्तुति कर रहा हूं, लेकिन मुझे अपना काम या अपना शॉट मॉनिटर में देखने की आदत ही नहीं है। मेरे निर्देशक की आंखें मेरे लिए मॉनिटर समान होती हैं। मुझे जब निर्देशक की आंखों में संतुष्टि नजर आती है तो मैं समझ जाता हूं कि मैंने किस तरह से परफॉर्म किया है।

आपका सबसे बड़ा क्रिटिक कौन है?
मैं खुद अपना क्रिटिक हूं और बार-बार अपने काम का पुनर्मूल्यांकन करता हूं। चाहता हूं कि मेरी परफॉर्मेंस में रिपिटेशन न हो, किरदार में नयापन हो। मेरी पत्नी मेरी क्रिटिक है। वो अच्छे काम की तारीफ करती है और टीका-टिप्पणी भी करती है।

कभी कोई किरदार निभाने में भय महसूस हुआ?
भय माने… असुरक्षा… मुझे कोई भय या असुरक्षा नहीं महसूस हुई। अमूमन मैं जब घर से शूटिंग लोकेशन पर पहुंचता हूं अपने किरदार की कोई तैयारी दिमाग में लेकर नहीं चलता। दिमाग और मन को कोरा रखना चाहता हूं इसलिए किसी तरह का कोई भय या असुरक्षा की भावना मेरे मन में नहीं आती।

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