मुंबई। `अपनी जड़ की तलाश ही मेरी कविता की दुनिया में एकात्म होने का जरिया है’ यह विचार असमिया भाषा की कवयित्री कविता कर्मकार ने नीलांबरी फाउंडेशन द्वारा व्यंजन बैंकेट हॉल में आयोजित `कविता के संग, कविता की शाम’ कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्होंने सबसे पहले असमिया भाषा में अपनी कविता `इतिहास’ का पाठ कर उसका हिंदी अनुवाद भी सुनाया, फिर अपनी कई हिंदी कविताओं का पाठ किया। उन्होंने सुनाया, `हमारे बिछड़ते ही मर जाएगी वह नदी, जिनसे दुआओं में मांगा करते हैं कि रोशन रहे प्रीति के दीए।’ अंत में उन्होंने भूपेन हजारिका के एक गीत का सस्वर पाठ किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में संस्था की अध्यक्ष डॉ. नीलिमा पांडेय ने आयोजन के प्रयोजन पर अपनी बात रखते हुए कहा, `असमिया मूल की कवयित्री कविता जो हिंदी, बंगला व अंग्रेजी में भी लिखती हैं, जो हाल में ही जनकवि मुकुटबिहारी सरोज सम्मान से सम्मानित हैं, को मुंबई के हिंदी समाज के बीच पा कर हम मुदित हैं।’ अभिनेता दिनेश ने उनकी चुनिंदा रचनाओं का पाठ किया। डॉ. हूबनाथ पांडेय ने उनकी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा, `पढ़ते-पढ़ते यह कविताएं खामोश करती हैं। यही इनकी ताकत है।’ अपने अध्यक्षीय भाषण में वरिष्ठ कवयित्री कमलेश पाठक ने कहा, `कविता ही कविता कर्मकार का कर्म है। उनकी साफगोई और स्पष्टवादिता की मैं कायल हूं। उनकी दृष्टि व दृष्टिकोण साफ व सुलझा है।’ कार्यक्रम का संचालन अरविंद राही व सरस्वती वंदना कुसुम तिवारी ने प्रस्तुत की।
इस मौके पर कवयित्री, अभिनेत्री दीप्ति मिश्र, अर्चना जौहरी, रेखा बब्बल, असीमा भट्ट, व्योमा मिश्रा, हरीश पाठक, महेंद्र मोदी, बनमाली चतुर्वेदी, अजय ब्रह्मात्मज, दुष्यंत, रामकुमार सिंह, ओमप्रकाश तिवारी, सरताज मेंहदी, प्रतिमा चौहान, शकुंतला पंडित, अजय रोहिल्ला सहित कला, संस्कृति, फिल्म और रंगमंच के कई लोग मौजूद थे।