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ज्ञान, ध्यान व अल्हड़पन के लिए विख्यात काशी को आधुनिकता की चासनी में उतारने का कथित प्रयास चिंताजनक:स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

उमेश गुप्ता / वाराणसी

रंग पंचमी पर काशी के केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने संतों व भक्तों संग फूलों की होली खेली। शंकराचार्य बनने के बाद होली के अवसर पर प्रथम बार काशी आगमन से भक्तों व काशीवासियों का उत्साह दोगुना हो गया है। रंग पंचमी पर आयोजित होली मिलन समारोह का प्रारंभ श्रीप्रकाश पांडेय ने पूज्य महाराजश्री के एक रचना के माध्यम से वर्णन किया। जिसके बाद राष्ट्रीय कवि सांड बनारसी ने अपनी रचना से उपस्थित भक्तों को गुदगुदाया।तदुपरांत कृष्ण कुमार तिवारी और गीतांजलि मौर्या ने होली व भक्ति गीत प्रस्तुत किया।
भक्तों को आशीर्वचन प्रदान करते हुए शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि काशी ज्ञान ध्यान विद्या बुद्धि व अपने अल्हड़पन हेतु जानी जाती है। लेकिन अब काशी पर भी आधुनिकता सवार हो रही है। यह चिंताजनक है काशी वासियों को इस पर विचार करना चाहिए और फूलों के होली के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए पूज्यश्री ने कहा कि रंगों से होली खेलने के बाद उसे छुड़ाना पड़ता है और रंगों में आजकल केमिकल मिला दिया जा रहा है जिससे त्वचा को भी क्षति पहुचती है।वहीं फूलों से होली खेलने से ऐसी कोई दिक्कत नही होती बल्कि फूलों से होली खेलने से उसकी खुशबू वातावरण में व्याप्त हो जाती है और मन प्रसन्न हो जाता है।

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