- मेटॉबोलिज्म को करता है प्रभावित
हिंदुस्थान में जब भी कोई मेहमान घर आता है तो सबसे पहले चाय-पानी, शरबत, लस्सी आदि ही पेश किया जाता है। अब कोई फीकी, कोई हल्की मीठी तो कोई ज्यादा मीठी चाय पसंद करता है। वहीं कई लोग डाइबिटीज न होते हुए भी शुगर फ्री का इस्तेमाल करते हैं। मगर शुगर फ्री यानी कृत्रिम मिठास का उपयोग सेहत के लिए अच्छा नहीं है। इसकी वजह है कि यह सीधा ब्रेन को संकेत भेजता है, जिसका मेटाबॉलिज्म पर पड़ता है और आदमी को ज्यादा भूख लगने लगती है। कृत्रिम मिठास के उपयोग को लेकर डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया है।
डब्लयुएचओ का कहना है
डब्लयुएचओ ने अपने नए दिशानिर्देशों में नॉन-शुगर स्वीटनर्स (एनएसएस) का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है। एनएसएस यानी ऐसी चीजें जो मिठास देती हैं लेकिन चीनी नहीं हैं। डब्ल्यूएचओ ने ये सिफारिश कुछ समीक्षाओं के आधार पर की हैं। समीक्षाओं में पाया गया है कि कृत्रिम मिठास वजन घटाने या उससे संबंधित बीमारियों के खतरे को कम करने में मदद नहीं करती। डब्ल्यूएचओ के न्यूट्रिशन एंड फूड सेफ्टी के निदेशक प्रâांसेस्को ब्रांका का कहना है, ‘लोगों को चीनी के इस्तेमाल को कम करने के लिए अन्य विकल्पों के बारे में सोचना चाहिए, जैसे फल या ऐसे खाद्य पदार्थ और पेय जिनमें प्राकृतिक मिठास हो और उनमें अलग से मिठास नहीं डाली गई हो।’ उनके अनुसार, ‘एनएसएस में कोई पौष्टिकता नहीं होती। लोगों को अपनी सेहत में बेहतरी लाने के लिए आहार में मिठास कम करने की शुरुआत जल्द कर देनी चाहिए।’
ये बीमारियां होने लगती हैं
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक एनएसएस का लंबी अवधि तक इस्तेमाल करने से टाइप-टू डाइबिटीज और दिल की बीमारी होने का खतरा रहता है। इसके अलावा इससे मौत की भी आशंका रहती है। डॉ नीरू गेरा बताती हैं कि एनएसएस के इस्तेमाल से वजन बढ़ेगा जिससे आपको बीपी, कोलेस्ट्रोल की समस्याएं होंगी और इससे दिल की बीमारियां होने का खतरा बढ़ेगा। एनएसएस के इस्तेमाल से होने वाली अन्य बीमारियों के बारे में डॉ. सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ‘इनके लंबे समय तक के इस्तेमाल से डिप्रेशन, सिरदर्द, डाइबिटीज, दिल की बीमारी, ब्रेन अटैक और कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।’ वे बताते हैं कि लोग शुगर प्रâी समझकर आइसक्रीम या अन्य खाद्य पदार्थ खाने लगते हैं लेकिन वो ये भूल जाते हैं कि वो वैâलोरिज तो खा ही रहे हैं। डॉक्टर संतुलित मात्रा में चीनी खाने की सलाह देते हैं और इसके अलावा विकल्प के तौर पर ब्राउट शुगर, मैपल सिरप, शहद, गुड़, शक्कर खाने की सलाह देते हैं।
लंबे इस्तेमाल से प्रतिकूल असर
एनएसएस का इस्तेमाल टूथपेस्ट, स्किन क्रीम और दवाओं में भी होता है। डब्लयुएचओ का कहना है कि उसकी सिफारिश खुद के केयर और साफ-सफाई वाले उत्पादों पर लागू नहीं होती। आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले एनएसएस सुकरालोज, एसपार्टेम, नीयोटेम और स्टीविआ हैं। डॉ. सुरेंद्र कुमार कहते हैं कि ये सब कृत्रिम मिठास होते हैं। इनके लंबे इस्तेमाल से प्रतिकूल असर होता है। डाइबिटीज वाले मरीज को एनएसएस किसी भी रूप में नहीं लेनी चाहिए। अगर कभी स्वाद के लिए लेना भी चाहते हैं तो काफी नियंत्रित मात्रा में लें। डॉ. सुरेंद्र बताते हैं कि चीनी की तुलना में कृत्रिम मिठास ७०० गुना ज्यादा पावरफुल होते हैं। ये ब्रेन के एक हिस्से को प्रभावित करते हैं और इससे आपके मेटाबॉलिज्म पर भी असर पड़ता है। इसका असर यह होता है कि आप ज्यादा खाने लगते हैं और उससे आपका वजन बढ़ने लगता है। उसके बाद आपको अलग-अलग बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।