- विधायकों की अब सुनने वाला कोई नहीं
सामना संवाददाता / भोपाल
केंद्र सरकार की सीबीआई और ईडी से डरावने वाली नीति के चलते मध्य प्रदेश में जनता द्वारा चुनी गई कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिराकर भाजपा में गए सिंधिया समर्थक विधायकों का बुरा हाल हो गया है। नौबत यहां तक आ गई है कि सिंधिया समर्थक विधायक अब मंत्री के पीछे दौड़ लगाकर बेहाल हो गए हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। बता दें कि १७ दिन चले पॉलिटिकल ड्रामे के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ २२ विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे। फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े, जिनमें से ८ मंत्री भी बने। भाजपा में आए इन्हें तीन साल होने वाले हैं लेकिन अधिकतर जगह अब भी दिल नहीं मिल सके। कहीं चिट्ठी वॉर तो कहीं खुली बयानबाजी चल रही है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के जो नेता कभी इनके परंपरागत प्रतिद्वंद्वी रहे, उनसे इनकी पटरी बैठने का नाम नहीं ले रही है। पुराने भाजपा नेता इन्हें पूरी तरह स्वीकार भी नहीं कर रहे हैं। सबसे बड़ी वजह तो यही कि कांग्रेस से भाजपा में आए इन नेताओं के कारण भाजपा के उन नेताओं का राजनीतिक वर्चस्व संकट में पड़ गया, जिनका अपने क्षेत्र में एकतरफा राज था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व स्वास्थ्य मंत्री व भाजपा के बड़े नेता डॉ. गौरीशंकर शेजवार हैं।
गोविंद सिंह राजपूत का भाजपा नेता कर रहे खुलासे
भाजपा नेता राजकुमार धनौरा ने मंत्री राजपूत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ससुराल से मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को दान में मिली ५० एकड़ जमीन का मामला सार्वजनिक कर दिया। सिंधिया के करीबी माने जाते हैं। ‘धनौरा’ के साथ उनकी राजनीतिक वर्चस्व की जंग चल रही है।
डॉ. प्रभुराम चौधरी के विरोध में दो कार्यालय
डॉ. प्रभुराम चौधरी रायसेन जिले के सांची से विधायक हैं। सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने के बाद प्रभुराम के प्रचार के लिए शेजवार को आना पड़ा। एक-दूसरे के धुर विरोधी जब साथ आए, तो प्रभुराम उपचुनाव जीते। दोनों डॉक्टरों के दल तो मिल गए, लेकिन दिल नहीं मिल पाए। उपचुनाव के बाद पार्टी ने शेजवार को नोटिस थमा दिया।
तुलसीराम सिलावट का विवोध
कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद तुलसीराम सिलावट के कद व सम्मान में अंतर आ गया। इंदौर में विधानसभा के वरिष्ठ नेता रमेश मेंदोला के क्षेत्र में भी सिंधिया का स्वागत हुआ था। असर उप चुनाव में देखा गया। नतीजा, सिलावट ५४ हजार वोटों से जीते। इसके पहले सिलावट जब कांग्रेस में थे, तो विजयवर्गीय व मेंदाला से उनके व्यक्तिगत संबंध अच्छे रहे लेकिन भाजपा में आने के बाद दोनों में विरोध शुरू हो गया।
रघुराज कंसाना को हाराया गया चुनाव
उपचुनाव में रघुराज सिंह कंसाना कांग्रेस के राकेश मावई से हार गए थे। इसके बाद उन्होंने भाजपा नेताओं पर भितरघात के आरोप लगाए। चंबल की मुरैना विधानसभा में कांग्रेस को २५ साल बाद जीत मिली। साल २०१८ में रघुराज कंसाना कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने के बाद रघुराज भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के राकेश मावई से हार गए।
ऐदल सिंह कंसाना पसंद नहीं
उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाह ने हरा दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी जॉइन कर ली। उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाह ने हरा दिया। कंसाना की राजनीति की स्टाइल को भाजपा नेता को स्वीकार नहीं हैं।
कमलेश जाटव को मिल रही चुनौती
सिंधिया भाजपा में आए तो कमलेश जाटव भी लौट आए। कमलेश जाटव ने कांग्रेस जॉइन कर चुनाव लड़े। उपचुनाव में कमलेश जाटव ने कांग्रेस प्रत्याशी सत्यप्रकाश सखवार को हरा दिया। लेकिन अब उन्हें पुराने भाजपा नेताओं से चुनौती मिल रही है।
कांग्रेस के २२ विधायकों के नाम, जिन्होंने इस्तीफा दिया था
१- प्रदुम्न सिंह तोमर २- रघुराज कंसाना ३- कमलेश जाटव ४- रक्षा सरोनिया ५- जजपाल सिंह जज्जी ६- इमरती देवी ७- प्रभुराम चौधरी ८- तुलसीराम सिलावट ९- सुरेश धाकड़ १०- महेंद्र सिंह सिसोदिया ११- ओपीएस भदौरिया १२- रणवीर जाटव १३- गिरिराज दंडोतिया १४- जसवंत जाटव १५- गोविंद राजपूत १६- हरदीप डंग १७- मुन्ना लाल गोयल १८- बृजेंद्र यादव १९-बिसाहू लाल सिंह २०- ऐदल सिंह कंसाना २१- मनोज चौधरी। २२- राजवर्द्धन सिंह दत्तीगांव