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चला बुलडोजर जमींदोज हुआ सपनों का घर …खुले आसमान के नीचे रात बिताने के लिए मजबूर हैं सैकड़ों निवासी

• बोर्ड के विद्यार्थियों को फेल होने का सता रहा डर
गोपाल गुप्ता / मुंबई
वसई-विरार मनपा क्षेत्र के नालेश्वर नगर में २०१८ में हुई वाघराल पाडा जैसी तोड़क कार्रवाई की पुनरावृत्ति से सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं। इस कार्रवाई के साथ ही इन लोगों का अपने घर का सपना भी जमीदोंज हो गया है। लोगों की बसी-बसाई गृहस्थी उजड़ गई है और लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो गए हैं। लोगों को रात के वक्त जंगली जानवरों का डर सता रहा है। बिजली न होने से बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं प्रभावित हो रही हैं। इन दिनों बेमौसम बरसात ने पीड़ितों की परेशानी और बढ़ा दी है। महिला-पुरुष, बूढ़े-बच्चे सभी विभागीय उदासीनता का खामियाजा भुगत रहे हैं।
जानकारी के अनुसार, विरार-पूर्व के कनेर फाटा स्थित नालेश्वर नगर में हुई तोड़क कार्रवाई के बाद करीब २५० परिवार बेघर हो गए हैं। राज्य शासन की जमीन पर कथित तौर पर अवैध रूप से बसे करीब २५० घरों को अचानक तोड़ दिया गया। यहां के रहिवासियों का आरोप है कि जब भूमाफिया अवैध रूप से जमीन बेच रहे थे, तब स्थानीय प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अब कार्रवाई के नाम पर उनके सिर से छत छीन ली गई। प्रशासन की इस कार्रवाई से यहां रह रहे लोगों में गुस्सा है। इनका कहना है कि वे यहां पिछले कई सालों से रह रहे थे, उनके पास जमीन के कागजात हैं। बिजली, हाउस टैक्स की रसीद, वोटर आईडी और आधार कार्ड तक इसी पते पर हैं। ऐसे में जब इन घरों में से बिजली-पानी समेत तमाम सुविधाएं और व्यवस्थाएं प्रदान की जा रही थीं तो स्थानीय प्रशासन ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया?
कर्ज लेकर खरीदा घर
५० साल के रमाकांत गौड़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से आकर यहां बसे थे। वे एक निजी कंपनी में काम करते हैं। जहां १०-१२ घंटे की नौकरी में उन्हें १२-१४ हजार रुपए मिलते हैं। उनके परिवार में उनकी बेटियां और बेटे हैं। वे बताते हैं कि इस कमाई से बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी मुश्किल से निकल पाता है। उन्होंने एक पतपेढ़ी से कर्ज लेकर घर खरीदा था, जिसकी ईएमआई आज भी चुका रहे हैं। जब वह गांव गए थे, तभी अचानक प्रशासन के लोग आए और मेरे छोटे से आशियाने को तोड़ दिया। अब उसी जगह पर प्लास्टिक से छत बनाकर रात बिता रहा हूं। इसी तरह सरिता जयसवाल ने कहा कि उन्होंने चार साल पहले घर खरीदा था। उनके पति मुंबई में रिक्शा चलाते हैं। चार लोगों के साथ इस घर में रहते थे। घर खरीदने के लिए अपने गहने बेचे और कुछ कर्ज लिया है। लेकिन अचानक से महानगरपालिका ने सरकारी जमीन बताकर उनका घर तोड़ दिया। उनके पति को कुछ दिन पहले ही हार्ट अटैक आया था। इसी जगह पर पिछले पांच साल से रहनेवाली कुसुम पटेल का भी कुछ ऐसा ही कहना है, उन्होंने कहा कि ‘जब यहां मकान बनाए जा रहे थे, तब पुलिस वाले यहां बैठे रहते थे। शासन-प्रशासन के अधिकारी यहां आते थे। उस समय कार्रवाई क्यों नहीं की गई? रश्मि सिंह नाम की एक रहिवासी ने कहा कि २० मार्च २०२२ को यहां घर खरीदा था। दो दिन बाद उनके घर को एक वर्ष पूरा होता। पर, यहां अब सब कुछ बदल चुका है।
स्कूली छात्रों पर बुरा असर
राज्य में बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैं। यहां हुई तोड़क कार्रवाई का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है। पूरे इलाके में बिजली काट दी गई है। बच्चे रात के वक्त पढ़ नहीं पा रहे हैं। दोपहर के समय भीषण गर्मी होती है, जिसकी वजह से भी पढ़ाई में दिक्कत होती है।

इनका कहना है…
यहां स्थानीय पार्टी के तीन विधायक हैं। २५० परिवार बेघर हो गए है, लेकिन विधायकों ने जनता की तकलीफ को विधानसभा में नहीं उठाया। गरीब जनता आज सड़क पर आ गई है। सिर पर छत नहीं है। बच्चे सड़क पर रहने को मजबूर हैं। जबकि नेता उनका दु:ख-दर्द भी पूछने नहीं आए। पालघर जिला प्रशासन और मनपा ने शासन की जमीन का एक बोर्ड भी नहीं लगाया था। ऐसे में गरीब जनता को कैसे पता चलेगा कि यह शासन की जमीन है।
एड. नेहा दुबे, समाज सेविका
शासन की जमीन पर अवैध रूप से बनाए गए घरों पर कार्रवाई करने का आदेश हाईकोर्ट ने दिया है। हालांकि, ये घर पिछले चार से पांच सालों में बनाए गए है। इसमें तहसीलदार और मनपा सहित लापरवाही बरतने वाले अन्य अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की मांग करेंगे, जिससे अन्य सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण न हो सके। हालांकि, कांग्रेस नेता नाना पटोले ने विधानसभा में विरार की जनता की आवाज उठाई। वहीं वसई तहसीलदार उज्ज्वला भगत ने अपने अधिकारियों का बचाव करते हुए नोटिस देने की बात कहीं, जबकि नोटिस अन्य स्थानों पर दिया गया था।
-राजेश पाटील, विधायक- (बहुजन विकास आघाड़ी)

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