सरकार के अनुसार आज हम दुनिया के हाईटेक देशों में शुमार हो गए हैं लेकिन इस संबंध में हमारे देश की सच्चाई क्या है यह हम कुछ घटनाओं से समझ सकते हैं। हाल ही में एक मामला सामने आया था कि द्वारका जिले के बाबा हरिदास नगर इलाके में क्लस्टर बस की टक्कर से जख्मी युवक को एक के बाद एक तीन सरकारी अस्पताल में ले जाया गया। नजफगढ़ में स्थित एम्स के हेल्थ सेंटर, डीडीयू अस्पताल और सफदरजंग अस्पताल में इलाज न मिल पाने से परेशान परिजनों ने युवक को नजफगढ़ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। इस बीच करीब तीन घंटे गुजर गए। निजी अस्पताल में उसका इलाज शुरू भी हुआ, लेकिन सीटी स्वैâन कराने के दौरान टेबल पर ही युवक ने दम तोड़ दिया। इस घटना से सबका मन दुखी हुआ। सरकारें सबसे पहले स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा की ही बात करती हैं लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे देश में गरीब के नाम पर हो रही व्यवस्था कुछ भी नहीं हैं। स्पष्ट है कि सत्ता व पैसे के बिना आम आदमी का जीवन कुछ नही। क्या यह किसी हाईटैक देश की पहचान हो सकती है जिसमें एक व्यक्ति को राजधानी के तीन अस्पतालों में ले जाया गया हो और उसका इलाज शुरू न किया जा सका हो। परिजनों ने जब तक अस्पताल प्रशासन की हाथ-पैर जोड़कर मिन्नते का तब तक वह अपनी जिंदगी की जंग हार गया। आज केंद्र सरकार अपने हर चुनावी भाषण में नए-नए अस्पतालों को खोलने की बात कहती है लेकिन सच्चाई यह है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यवस्था शून्य है और जनसंख्या के आधार पर अस्पतालों की बहुत कमी है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल १९८१७ सरकारी अस्पताल हैं, वहीं रजिस्टर्ड प्राइवेट अस्पतालों की संख्या लगभग ८०,६७१ है। औसतन सभी जिले एक या दो सरकारी अस्पताल होते हैं जबकि कुछ ऐसे भी जिले हैं या शहर है जहां पर सरकारी अस्पताल की संख्या चार से पांच है। प्राइवेट अस्पतालों का तयशुदा आंकड़ा सामने इसलिए नहीं आता क्योंकि ऐसे बहुत सारे डॉक्टर हैं जो खुद का प्राइवेट क्लीनिक चलाते हैं। सरकारी अस्पतालों में सुचारु रुप से इलाज न होने के कई कारण हैं। अधिकतर अस्पतालों पर दलालों ने शिकंजा कस रखा है, वह पैसे लेकर जल्द इलाज व ऑपरेशन की तारीख दिलवा देते हैं जिसके चलते आम व साधारण व्यक्ति को इलाज कराने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से कई लोग इलाज व महंगी दवाओं के अभाव में जान गंवा देते हैं। सरकारी अस्पताल में इलाज कराना जितना सरल दिखता है उससे कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। पर्ची बनवाने से लेकर इलाज कराना आसान काम नहीं होता। इसके अलावा आकस्मिक स्थिति में यदि किसी को इलाज चाहिए हो तो वह नामुमकिन सा हो जाता है। हालांकि जो घटना सामने आ जाती है हम उस घटना का जिक्र कर लेते हैं लेकिन न जाने हर रोज ऐसी कितनी घटनाएं होती रहती हैं। बहरहाल, सरकार के पास वैसे तो कई चीजें हैं जिस पर वह हर रोज राजनीति कर सकती है लेकिन स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में कम से कम इतना काम तो होना ही चाहिए कि किसी आकस्मिक स्थिति में मरीज को इलाज मिल जाए व किसी की जान न जाए।
योगेश कुमार सोनी
वरिष्ठ पत्रकार