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जम्मू-कश्मीर से आरंभ प्रयोग दिल्ली पहुंचा, अगला कौन?

दीपक शर्मा / जम्मू
मोदी सरकार के नौ साल बे-मिसाल वाकई धरा पर दिखाई देते हैं। पिछले नौ वर्षों में जहां भाजपा ने `मोदी है तो मुमकिन है’ के अपने जुमले को चरितार्थ करने में कोई कोर-कसर न छोड़ते हुए `ऑपरेशन लोटस’ के जरिए देशभर में विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों की सत्ता को सरकारी एजेंसियों की मदद से पिछले दरवाजे से हथियाया। अब जब पीएम का नया जुमला `एक अकेला सब पर भारी’ सामने आया तो उसका सबसे पहला शिकार महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनी, जिन्हें चार दिन पूर्व महा भ्रष्टाचारी / घोटालेबाज / परिवारवादी बताकर पीएम मोदी सहित समूची भाजपा हमलावर थी, वही उसके कमल छाप वाशिंग पाउडर में धुलकर पाक-साफ हो गए।
बता दें कि दिल्ली की सेवाओं से संबंधित विधेयक पर सोमवार (७ अगस्त) को राज्यसभा की मुहर लग गई। गुरुवार यानी ३ अगस्त को इसे लोकसभा से पास किया गया था। दोनों सदनों से पास होने के बाद दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार (संशोधन) विधेयक, २०२३ के लिए राष्ट्रपति के पास जाएगा और उनकी मंजूरी के बाद अब अध्यादेश की जगह लेगा। इसके बाद दिल्‍ली सरकार के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से लेकर कई अधिकार उपराज्यपाल को मिल जाएंगे। यानी अपरोक्ष रूप से दिल्ली के तमाम अधिकार केंद्र की मोदी सरकार के पास होंगे। इससे पिछले नौ वर्षों से दिल्ली की सत्ता से बाहर बैठी भाजपा अपनी इच्छानुसार दिल्ली के शासन को संभालेगी। जब भाजपा को ऑपरेशन लोटस लोकतांत्रिक प्रणाली के विपरीत लगा तो उसने संसदीय प्रणाली को ढाल बनाकर अपरोक्ष रूप से विपक्षी दलों द्वारा शासित प्रदेशों की सत्ता पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का कार्य शुरू कर दिया है। चार वर्ष पूर्व ५ अगस्त २०१९ को एक संपूर्ण प्रदेश जम्मू-कश्मीर जिसे अनुच्छेद ३७० के तहत विशेषाधिकार मात्र इसलिए प्राप्त थे कि उसके पड़ोस में भारत का सबसे बड़ा दुश्मन मुल्क पाकिस्तान था। जनसंघ के संस्थापक सदस्य व श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथी रहे प्रोफेसर बलराज मधोक की जन्म व कर्मभूमि रहे जम्मू-कश्मीर के बारे में उन्होंने अपने द्वारा रचित पुस्तकों में लिखा भी कि जम्मू-कश्मीर की सामाजिकता व इसकी सांस्कृति की सुरक्षा तथा सामरिक महत्ता के मद्देनजर कार्य करने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने १९६५ संविधान में जम्मू-कश्मीर में एक संशोधन के जरिए पूरे तौर पर कश्मीर में सदर-ए-रियासत और वजीर-ए-आजम के पद को खत्म कर दिया। केंद्र सरकार ने छठा संशोधन करके ये कदम उठाया था। इस संशोधन के बाद सदर ए रियासत और प्राइम मिनिस्टर के पद को खत्म कर गवर्नर और चीफ मिनिस्टर के पद मंजूर किए। सो केंद्र की मोदी सरकार ने दो निशान व दो विधान को जम्मू-कश्मीर से विदा करते हुए एक संपूर्ण राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर केंद्रीय कानून लागू कर दिए। उसके इस कदम से अनुच्छेद ३७१ के विभिन्न खंडों के तहत विशेषाधिकार का आनंद ले रहे चीन सीमा से लगते पूर्वोत्तर के राज्यों सहित अन्य विशेषाधिकार प्राप्त राज्यों में `एक निशान -एक विधान’ निरस्त होने का डर स्थापित हो गया। यह डर इसलिए भी ज्यादा है कि जब देश में सामान नागरिक कानून लागू होंगे तो विशेषाधिकार अपने आप समाप्त हो जाएंगे। सो जम्मू-कश्मीर से शुरू हुआ यह प्रयोग दिल्ली के बाद अब किस विपक्ष शासित राज्य को अपनी प्रयोगशाला में लाकर घुलनशील पदार्थ बनाकर रख देगा देखना बाकी है।

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