सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में मौजूदा समय में स्कूल प्रबंधन की गुणवत्ता गिरती जा रही है। यह महाराष्ट्र की गुणवत्ता शिक्षा परंपरा के लिए अपमानजनक है। इस तरह का तंज राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने कसा है। उन्होंने आगे कहा है कि शैक्षणिक वर्ष २०२१-२२ के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स २.० (पीजीआई) रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र राज्य दूसरे स्थान से सीधे सातवें स्थान पर आ गया है। उन्होंने कहा कि राज्य के समग्र शैक्षणिक विकास की दृष्टि से यह अत्यंत चिंता का विषय है।
सक्षम शिक्षा प्रणाली से समाज में सुधार होता है। महाराष्ट्र में कर्मवीर भाऊराव पाटील जैसे कई शिक्षाविदों ने इस सिद्धांत को पहचाना और एक कुशल स्कूल प्रणाली के निर्माण को प्राथमिकता दी। हालांकि, गिरते शैक्षिक स्तर में सुधार के लिए समय रहते उपाय किए जाने चाहिए। इन सभी मामलों पर विचार करते हुए राज्य सरकार और स्कूल शिक्षा मंत्री को गंभीरता से सोचना चाहिए। इसके लिए जल्द से जल्द सभी संबंधित लोगों की बैठक बुलाकर आवश्यक कार्यक्रम तैयार करना चाहिए। इस तरह का सुझाव पवार ने दिया। शरद पवार ने कहा कि यशवंतराव चव्हाण सेंटर के शिक्षा विभाग ने बीते साल `दो शिक्षक स्कूलों का सशक्तीकरण’ नामक विषय पर एक दिवसीय परिषद का आयोजन करते हुए कुछ टिप्पणियां दर्ज की थीं। राज्य में जिला परिषद के करीब ३८ हजार दो शिक्षकवाले स्कूल हैं। उन्होंने कहा कि ये मुख्य रूप से वाड़ियों-बस्तियों में स्थित हैं। फिलहाल, यहां छात्रों की संख्या कम है इसलिए समय-समय पर इन्हें बंद करने की चर्चा होती रहती है। सरकार के लिए इस पर गंभीरता से कार्रवाई करना बहुत जरूरी है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा निर्धारित जिन मानदंडों के आधार पर मूल्यांकन किया गया है, उसमें शैक्षणिक उपलब्धि व गुणवत्ता, बुनियादी ढांचे, बदलती शैक्षिक प्रक्रिया आदि मुद्दों का समावेश है। लेकिन केंद्र की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा नहीं दिख रहा है कि इन अहम बातों को राज्य सरकार ने गंभीरता से लिया है। ऐसे में राज्य शिक्षा की गुणवत्ता में बहुत पीछे रह गया है, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।