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वाढवण बंदरगाह के खिलाफ और तीव्र हुई विरोध की आग … जमीन का सर्वे करने गए अधिकारियों को ग्रामीणों ने खदेड़ा!

योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
पालघर के वाढवण में प्रस्तावित मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट बंदरगाह परियोजना के विरोध की आग और धधक गई है। पीएम मोदी के द्वारा ३० अगस्त को परियोजना के भूमि पूजन की जानकारी मिलने के बाद किसानों, मछुआरों सहित अन्य भूमिपुत्रों में भीषण आक्रोश व्याप्त है। सोमवार को दहानू के वासगांव में वाढवण बंदरगाह के साइट कार्यालय के लिए जमीन का सर्वे करने गए राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को ग्रामीणों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। ग्रामीणों ने सर्वे टीम का विरोध करते हुए उसे खदेड़ दिया, और जमकर नारेबाजी की।
मछुआरों ने कहा कि विनाशकारी बंदरगाह परियोजना का वर्षो से विरोध जारी है, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विरोध के बावजूद वाढवण बंदरगाह को मंजूरी दे दी। मछुआरों का कहना है कि विनाशकारी परियोजना जबरन हम पर थोपी जा रही है। बंदरगाह बनने से इस इलाके में समुद्र में मछलियां विलुप्त होगी और तटीय इलाकों में रहने वाले लाखों मछुआरों की रोजी रोटी भी छिनेगी।
इसके अलावा क्षेत्र का कृषि उद्योग भी प्रभावित होगा। बंदरगाह परियोजना का विरोध कर रहे मछुआरों ने ऐलान किया कि जान दे देंगे, लेकिन विनाशकारी परियोजना जो हम पर थोपी जा रही है, इसकी शुरुआत नही होने देंगे। उनका कहना है कि बंदरगाह के निर्माण से इस क्षेत्र में मछली पकड़ने का व्यवसाय खत्म हो जाएगा और हमें मछली के लिए गुजरात पर निर्भर रहना पड़ेगा। बंदरगाह के बनने से तटीय क्षेत्रों के मछुआरों के गांवो में पानी भरेगा। इस बंदरगाह से वाढवण समुद्र और तटीय जैव विविधता पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। वाढवण विकास के लिए यहां की कृषि, बागवानी भूमि का भी अधिग्रहण किया जाएगा। इससे खेती भी खत्म हो जाएगी। परियोजना के खिलाफ न केवल वाढवण, बल्कि मुंबई, दहाणू, वसई, विरार, तलासरी झाई तक के मछुआरों ने बंदरगाह के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है।
वाढवण बंदरगाह विरोधी युवा संघर्ष समिति के स्वप्निल तरे ने कहा कि विनाशकारी परियोजना का स्थानीय लोग पिछले २५ सालों से विरोध कर रहे हैं। ये परियोजना मछुआरों और भूमिपुत्रों को उजाड़ कर रख देगी। इसलिए हम रक्त की अंतिम बूंद तक परियोजना के खिलाफ संघर्ष करते रहेंगे।

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