राजेश माहेश्वरी लखनऊ
आगामी २३ जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्ष के १५ से अधिक राजनीति दलों की अहम बैठक होनेवाली है। पटना की बैठक को इस मायने में खासा अहम माना जा रहा है और यह बताया जा रहा है कि २०२४ के पहले की यह सबसे बड़ी गठबंधन की कवायद साबित होगी। इसी के चलते राजनीतिक पंडितों और देशवासियों की निगाहें इस बैठक पर टिक गई हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पिछले कई महीनों से विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में जुटे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), एनसीपी, टीएमसी, जेडीयू, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, सीपीआई, सीपीआई-एमएल, सीपीएम, आरएलडी, एनसी और पीडीपी ने इस बैठक में शामिल होने की सहमति दी है। सिर्फ ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजेडी और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बसपा विपक्षी एकता से अलग हैं। दोनों ने बहुत पहले ही कह दिया है कि वे विपक्षी एकता की किसी भी मुहिम में शामिल नहीं होंगे। बसपा प्रमुख मायावती की अपनी मजबूरियां हैं लेकिन बाकी विपक्ष नवीन पटनायक के रवैए पर हैरान है। नवीन पटनायक नीति आयोग की बैठक से दूर रहे, लेकिन वो नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए थे।
नीतिश कुमार बार-बार इस बात को दोहराते रहे हैं कि उन्हें भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकना है। इसके लिए उन्हें सिर्फ १०० सीटों पर भाजपा को समेटना है। इसके लिए जरूरी है कि ऐसे राज्य जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हैं, वहां महागठबंधन बनाया जाए और बीजेपी के खिलाफ बस एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाए। इसमें मुख्य रूप से यूपी की ८०, बिहार की ४०, बंगाल की ४२, महाराष्ट्र की ४८, दिल्ली की ७, पंजाब की १३ और झारखंड की १४ लोकसभा सीटें शामिल हैं। इस बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पार्टी के एक कार्यक्रम में कहा है कि उत्तर प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा को हराओ और उन्होंने नारा दिया, ‘८० हराओ, भाजपा हटाओ।’. विपक्ष के ज्यादातर दल इस बात पर सहमत हैं कि मजबूत क्षेत्रीय दल २०२४ में अपने-अपने इलाकों में भाजपा का मुकाबला करेंगे और बदले में, वे २०० से अधिक सीटों पर कांग्रेस को भाजपा से सीधे मुकाबले में उतरने देंगे। ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव और केसीआर इसी फॉर्मूले पर बात करते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने इस पर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
दक्षिण भारत का द्वार कहे जानेवाले कर्नाटक में भाजपा का किला ध्वस्त करके कांग्रेस निश्चित रूप से मजबूत स्थिति में आई है। कांग्रेस के अंदरखाने से आ रही खबरों के मुताबिक, कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनावों और अगले आम चुनाव को लेकर कुछ अहम फैसले लिए हैं। इन पर पार्टी में भी सहमति बन गई है। अब बस पार्टी की संचालन समिति की मुहर लगनी है। २०२४ के लिए विपक्ष को एकजुट करने का खाका तय कर लिया गया है। कांग्रेस विपक्षी एकता को तैयार है, लेकिन ३५० से कम सीटों पर नहीं लड़ेगी। बावजूद इसके, कांग्रेस के सीनियर नेताओं का पटना की बैठक में शामिल होने की सहमति सकारात्मक संकेत है कि कांग्रेस विपक्षी एकता की मजबूती में अपना योगदान देना चाहती है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी का ध्यान फिलहाल राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, तेलंगाना के इसी साल होनेवाले चुनाव पर है। इस दौरान कांग्रेस विपक्षी एकता की कोशिश में सहयोगी रहेगी, लेकिन सीटों का पैâसला इन चुनावों के बाद होगा।
इस वर्ष होनेवाले तीन अहम राज्यों के चुनाव पर सबकी नजर है। सभी पार्टियों की अंदरूनी रिपोर्ट और भाजपा की घबराहट जिस तरह सामने आ रही है, उससे कांग्रेस के साथ-साथ सभी पार्टियों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। बेशक भाजपा विपक्ष पर छींटाकशी कर रही हो, उनके आपसी विवाद और महत्वाकांक्षाओं की बात कर रही हो, लेकिन अंदर ही अंदर विपक्ष की इस एकता और गठबंधन को लेकर उसकी चिंता बढ़ी हुई साफ तौर पर दिख रही है। पुराने अनुभव देखें तो साफ है कि गठबंधन की सरकारें आपसी टकराव और निजी महत्वाकांक्षाओं की शिकार होती रहीं हैं और ज्यादा नहीं चलीं, लेकिन एनडीए के मुकाबले यूपीए के प्रयोग ने यह भी साबित किया कि जब तक सब साथ नहीं आएंगे, भाजपा के अभेद्य दुर्ग का दरवाजा तोड़ा नहीं जा सकता। साफ है कि पटना की बैठक को इसी दिशा में एक मजबूत बुनियाद के तौर पर देखा जा रहा है। पटना से ही दिल्ली का सत्ता का रोडमैप तैयार होगा।
(लेखक उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं।)