जितेंद्र मल्लाह, मुंबई
लोगों की भावनाओं को भुनाने में देश के प्रधानमंत्री और उनकी भाजपा का आज कोई सानी नहीं है। वैसे तो भाजपा ने ९० के दशक के प्रारंभ से ही भावनाओं को भुनाने का खेल शुरू कर दिया था, लेकिन पीएम मोदी और उनके विशेष सहयोगी अमित शाह की जोड़ी ने इसे चरम पर पहुंचा दिया है। फिर भले ही बात सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की हो या पुलवामा बनाम बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक की। भाजपा और उसकी केंद्र की मोदी सरकार ने राम और राष्ट्रवाद को अच्छी तरह भुनाया तथा उसके बल पर हासिल जनसमर्थन के बल पर आज जमकर मनमानी कर रही है। सबका साथ सबका विकास का नारा देकर केंद्र की सत्ता में पहुंची भाजपा ने पिछले करीब साढे ९ वर्षों में सिर्फ अपना विकास किया है। केंद्रीय जांच एजेंसियों की धौंस दिखाकर केंद्र सरकार न सिर्फ विरोधियों को बल्कि अपनों को भी तोड़ने, समेटने व खत्म करने की हरसंभव कोशिश करती रही है। मणिपुर जल रहा है, लेकिन केंद्र सरकार चुपचाप तमाशा देख रही है। हरियाणा सहित पूरे देश में जातीय उन्माद भड़काने की कोशिशें जोरों पर चल रही हैं। चुनाव आयोग से लेकर अदालत तक को केंद्र सरकार अपने इशारों पर हांकने का प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सवाल उठाने के बाद भी ‘ईडी’ के निदेशक संजय मिश्रा को एक्सटेंशन पर एक्टेंशन मिल रहा है, जिसका मकसद सिर्फ विरोधियों को निशाना बनाना ही है। संजय मिश्रा को मिले हालिया एक्सटेंशन के बाद जिस तरह से झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है, इससे साफ हो जाता है कि पूरा देश तिरस्कृत हो चुका है। लेकिन सरकार देश की आजादी की ७६ वीं वर्षगांठ पर देशवासियों से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चलाने की अपील कर रही है, जैसा कि गत वर्ष यानी आजादी के अमृत महोत्सवी वर्ष के मौके पर किया गया था। फर्क इतना ही है कि उस समय राष्ट्रध्वज मुफ्त बांटे गए थे लेकिन अब राष्ट्रध्वज पोस्ट ऑफिस से २५ रुपए देकर खरीदने को कहा गया है। यह महज भावनाओं को भुनाने का प्रयास है।
भावनाओं को भुनाने की इसी भाजपाई सियासत के कारण आज देश की पहचान का प्रतीक यानी हमारा राष्ट्रध्वज तिरंगा भी जगह-जगह तिरस्कृत हो रहा है। ज्यादातर लोग इसे देखकर भी समझ नहीं पा रहे हैं और जो देख रहे हैं, वो चुप रहने को मजबूर हैं। लोग ये पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि आज जगह-जगह हो रहे तिरंगे के तिरस्कार का जिम्मेदार कौन है? कोरोना काल के प्रारंभ में लोगों से थाली पिटवाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा ने गत वर्ष (२०२२) आजादी की ७५ वीं वर्षगांठ यानी अमृत महोत्सवी वर्ष के मौके पर हर घर तिरंगा अभियान चलाया था। इस अभियान के तहत देशवासियों से १५ अगस्त, २०२२ से कम से कम एक दिन पहले और एक दिन बाद यानी १४ से १६ अगस्त तक अपने निवास और कार्यस्थलों पर देश की शान का प्रतीक ‘राष्ट्रध्वज तिरंगा’ फहराने की अपील की गई थी। बात राष्ट्रभक्ति से जुड़ी होने के कारण पीएम मोदी की अपील को पूरे देश ने भावुक होकर सकारात्मक प्रतिसाद दिया और देशवासियों ने पूरे देश को तिरंगामय कर दिया था। इसे आज पूरे ३६५ दिन बीत चुके हैं, लेकिन १५ अगस्त २०२२ को देशवासियों द्वारा लगाए गए लाखों राष्ट्रध्वजों में से ज्यादातर का बाद में क्या हुआ? भावुक होकर लगाए या करके लगवाए गए उन राष्ट्रध्वजों की अवस्था आज वैâसी है, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। नतीजतन, खराब होने के कारण ज्यादातर तिरंगे या तो फेंके जा चुके हैं और जो बचे हैं वे कटे, फटे, गंदे अर्थात बेहद खराब अवस्था में हैं। जो ध्वज संहिता के तहत राष्ट्रध्वज का अपमान है।
उन पुराने राष्ट्रध्वजों का इस्तेमाल कुछ लोग साधारण पुराने कपड़ों की तरह साफ-सफाई के लिए करते देखे गए। कुछ समय पहले एक शख्स द्वारा मोटरसाइकिल एवं एक अन्य शख्स द्वारा तरबूज साफ करने के लिए राष्ट्रध्वज का उपयोग किए जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिस पर काफी बवाल हुआ था। सवाल यह उठता है कि राष्ट्रध्वजों की उस अवमानना के लिए क्या सिर्फ वही लोग जिम्मेदार हैं। यदि उन्हें जिम्मेदार मान भी लिया जाए तो इस आलेख में राष्ट्रध्वजों की ऐसी कुछ तस्वीरें छपी हैं, जो देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पश्चिमी उपनगर की सिर्फ एक बस्ती से ली गई हैं। इन तस्वीरों में जो राष्ट्रध्वज नजर आ रहे हैं, वो सियासी मंसूबों के तहत राष्ट्रवाद को भुनाने की साजिश की शर्मनाक कहानी बयां करने के लिए काफी हैं, जबकि मुंबई सहित देशभर में घूमें तो ऐसे सैकड़ों राष्ट्रध्वज मिल जाएंगे, जो बीते कई महीनों से अपनी दुर्दशा के लिए मतलबपरस्त राजनीतिज्ञों और उनके भक्तों को कोस रहे होंगे। ऐसे तिरंगों को लेकर सरकारी अधिकारी भी भ्रमित नजर आते हैं।
खैर, गत वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर लगाए गए तिरंगों की सुध किसी ने ली ही नहीं, उस पर इस साल यानी आज मनाए जा रहे स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी सरकार ने पोस्ट ऑफिस से तिरंगा खरीदकर अपने घरों पर लगाने की अपील की है। इस बारे में छेड़ने पर अधिकारी बात करने से कतराते हैं, क्योंकि मामला संवेदनशील है। ध्वज संहिता के तहत ध्वजारोहण और राष्ट्रध्वज के रख-रखाव के लिए जो नियम निर्धारित हैं, उनका पालन आम नागरिक के लिए तो बिलकुल भी संभव नहीं है।
ध्वज संहिता के तहत राष्ट्रध्वज कटा-फटा, मैला-कुचैला बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। ध्वज को पूरे सम्मान के साथ फहराना और उसी तरह सम्मान के साथ उतारकर रखना चाहिए। भारतीय झंडा संहिता, २००२ के भाग-दो के अनुसार, झंडे को कभी पानी में नहीं डुबोया जा सकता। कटे, फटे और पुराने राष्ट्रध्वज का सम्मानपूर्वक निस्तारण किया जाना चाहिए। यदि तिरंगा फट जाता है तो उसका निस्तारण करने के लिए उसको एक लकड़ी के बॉक्स में पैक किया जाता है। इसके बाद उस बॉक्स को साफ-सुथरी जमीन में गाड़ देते हैं या फिर अग्नि के हवाले किया जाता है। दोनों ही स्थिति बिल्कुल गुप्तरूप से और शांत जगह पर करनी चाहिए। दफनाने या अग्नि क्रिया करने के बाद मौन रखा जाना अति आवश्यक होता है। इसे कचरादान या फिर अन्य जगहों पर न फेंकें। कई संगठन झंडा वापस लेने की मुहिम चलाते हैं तो आप कटे, फटे अनुपयोगी राष्ट्रध्वज उन्हें भी दे सकते हैं। यह क्रिया लेकिन बेहद गुप्त रूप से की जानी चाहिए, अन्यथा राष्टध्वज के अपमान का दोष लग सकता है। क्योंकि हर देशवासी को राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगीत का सम्मान करना चाहिए, ये हर देशवासी का मूलभूत कर्तव्य है, ऐसा हमारे संविधान के आर्टिकल ५१ (ए) में दर्ज है, ऐसा न करना दंडनीय अपराध है।