फार्मा कंपनियों पर सरकारी मेहरबानी के आरोप
जेल नहीं, अब जुर्माना देकर बच सकेंगे कारोबारी
चार हजार करोड़ से ज्यादा का नकली दवा कारोबार फिर चर्चा में
लोकसभा में मणिपुर पर मचे हंगामे के बीच बीते गुरुवार को नरेंद्र मोदी सरकार ने चालबाजी दिखाते हुए ध्वनिमत से ‘जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक २०२३’ को पारित करा लिया। संसदीय समिति ने इस बिल के जरिए १९ मंत्रालयों से जुड़े करीब ४२ अधिनियमों के १८३ प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव दिया था, जिनमें वित्त, सड़क, परिवहन, कृषि, सूचना एवं औद्योगिकी, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण सहित कई अन्य मंत्रालय शमिल हैं।
विधेयक पेश करते समय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया कि वैâसे लोगों को दंडनीय छोटे अपराधों के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ता है, जो देश के विकास में बाधा पैदा करता है। छोटे अपराधों के लिए जुर्माना भरने का प्रावधान होना चाहिए। यह विधेयक अब राज्यसभा में भेजा जाएगा और वहां से मंजूरी मिलते ही कानून बन जाएगा।
उल्लेखनीय है कि जन विश्वास विधेयक पारित होने से कई प्रावधानों में अब जेल की सजा नहीं होगी और कारोबारी जुर्माना देकर बच सकेंगे। कई मामलों में जुर्माना लगाने के लिए अदालती कार्यवाही की जरूरत नहीं होगी। इससे कारोबारी अदालतों का चक्कर काटने से बच सकेंगे। हालांकि इस बिल को लेकर बवाल मच गया है।
सब-स्टैंडर्ड दवा पर छिड़ी बहस
दरअसल, इस विधेयक से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के तहत आनेवाले औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, १९४० में भी संशोधन किया गया है। इसी पर सबसे ज्यादा बवाल मच रहा है। सोशल मीडिया पर कई सुधी लोगों ने सवाल उठाया कि यदि किसी कंपनी की घटिया (सब-स्टैंडर्ड) दवा खाकर किसी व्यक्ति को शारीरिक नुकसान पहुंचता है या उसकी मौत हो जाती है, तो दवा कंपनी जुर्माना भरकर छुट्टी पा लेगी। कुछ लोगों ने कहा कि इससे नकली दवा बनानेवाली कंपनियों का मनोबल बढ़ेगा।
क्यों उठे सवाल?
भारत में नकली दवा का कारोबार लगभग ४ हजार करोड़ रुपए से अधिक का है। हिमाचल प्रदेश के सोलन व बद्दी और यूपी के मोदी नगर, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद और दिल्ली में दर्जनों पैâक्ट्रियां नकली दवा बनाती हैं। यहां तक कि ये कंपनियां चोरी-छिपे प्रतिबंधित दवाएं बनाकर भी दे देती हैं। चूंकि देश में चुनावी बयार बह रही है, ऐसे में लोगों को शक है कि फार्मा कंपनियों पर राहत चुनाव फंड का जुगाड़ भी हो सकता है।
रायता फैला तो सरकार ने दी सफाई
अब नकली दवाओं को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन चर्चाओं का खंडन किया है, जिसमें कहा जा रहा है कि सरकार ने जन विश्वास विधेयक के जरिए फार्मा कारोबारियों को राहत दी है और वे जुर्माना भरकर कानून से बच सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने सफाई दी है कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, १९४० की धारा २७ में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। इसकी धारा २७ (ए) के तहत नकली दवाओं से रोगी की मौत या गंभीर चोट पर आजीवन कारावास, २७ (बी) के तहत मिलावटी या बिना लाइसेंस दवा बनाने पर पांच साल की सजा, २७ (सी) के तहत सात साल और २७ (डी) के तहत दो वर्ष तक की सजा का प्रावधान बना रहेगा।
जन विश्वास बिल के कुछ अहम प्रस्ताव
अब पेड़ काटने या जलाने पर छह महीने की जेल नहीं होगी, लेकिन जुर्माना ५०० की बजाय ५,००० रुपए देना होगा।
वायु प्रदूषण पैâलाने पर अब जेल नहीं होगी, लेकिन तगड़ा जुर्माना लग सकता है।
अगर कोई औद्योगिक इकाई प्रदूषण पैâलाती है तो उसे ६ महीने की जेल नहीं होगी, लेकिन १ से १५ लाख रुपए तक जुर्माना लग सकता है।
संचार साधनों से आपत्तिजनक संदेश या गलत जानकारी भेजने पर अब दो साल की जेल नहीं होगी पर १ की जगह ५ लाख रुपए का जुर्माना लग सकता है।
वैध परमिट के बिना वाहन का इस्तेमाल करने पर छह महीने की जेल तो होगी, लेकिन १० हजार रुपए का जुर्माना हटा दिया गया है।
रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगनेवाले भिखारियों को जेल नहीं होगी।
किसी नाबालिग को एडल्ट फिल्म दिखाने पर १० हजार रुपए का जुर्माना लगेगा।