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महाविकास आघाड़ी सरकार की योजना पर नहीं हुआ अमल, कैसे सुधरेगा स्वास्थ्य जब निदेशक ही नदारद! शहरी स्वास्थ्य सेवा को नजरंदाज कर रही ईडी सरकार

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
कोरोना महामारी से सबक लेते हुए तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार ने शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत बनाने के उद्देश्य से स्वास्थ्य निदेशक (शहर) समेत सात पदों का सृजन करने का पैâसला लिया था। हालांकि, दो साल गुजरने के बावजूद अब तक तत्कालीन सरकार की इस योजना को ‘ईडी’ सरकार अमल में नहीं ला सकी है। ऐसे में ‘शहर स्वास्थ्य निदेशक’ समेत सभी पद कागजों में सिमटकर रह गए हैं। शहर निदेशक पद सृजित न किए जाने से डॉक्टरों के हजारों पद रिक्त हैं। इसके चलते मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में जब निदेशक ही नदारद हैं तो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था वैâसे सुधरेगी? इस पर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मौन क्यों हैं?
उल्लेखनीय है कि कोरोना काल के दौरान मुंबई, पुणे, कोल्हापुर, नासिक जैसे शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर समस्याएं पैदा हो गई थी। इसे ध्यान में रखते हुए तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के तहत शहरी क्षेत्रों के लिए निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं (शहर), उपनिदेशक के दो पद, सहायक निदेशक चार पद सृजित करने का पैâसला किया था। इस पर मंत्रिमंडल की बैठक में मुहर भी लग गई थी। हालांकि, इस बीच घटे राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण महाविकास आघाड़ी सरकार गिर गई और नई ईडी सरकार अस्तित्व में आ गई। इस सरकार ने तत्कालीन सरकार के कार्यकाल में लिए गए कई महत्वपूर्ण पैâसलों को लटकाए रखा है। इसमें सृजित किए गए स्वास्थ्य निदेशक (शहर) समेत छह पदों का भी समावेश है।
मरीजों की तुलना में अपर्याप्त है मैनपावर
मौजूदा समय में स्वास्थ्य विभाग में स्वास्थ्य निदेशक, संयुक्त निदेशक, जिला शल्य चिकित्सक सहित १७,८६४ रिक्तियां हैं। इसके चलते बहुत कम वेतन पर संविदा के आधार पर डॉक्टरों के पदों को भरकर स्वास्थ्य विभाग का कामकाज चलाया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर सवाल उठा रहे हैं कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में स्वास्थ्य विभाग का रथ वैâसे हांका जाए। एक ओर १७ हजार रिक्त पदों को नहीं भरा जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर संविदा पर डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर ग्रामीण स्वास्थ्य का प्रबंधन किया जा रहा है। एसोसिएशन के पदाधिकारी संकेत कुलकर्णी ने बताया कि इन डॉक्टरों को महज २२ से २८ हजार रुपए तक वेतन दिया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग में कुल स्वीकृत ५७,५२२ पदों में से १७,८६४ पद रिक्त हैं, जो कि आज की जनसंख्या के आधार पर आधारित नहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि भले ही इससे राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं, लेकिन राज्य सरकार इन पदों को भरने को लेकर पूरी तरह से उदासीन है।
सरकारी अस्पतालों में भी खाली पड़े हैं पद
मुंबई मनपा के केईएम, नायर और सायन अस्पताल में १,४५,००० चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद खाली हैं। जे. जे. अस्पताल में ८०९ पद स्वीकृत तो हुए लेकिन कई सालों से कोई भर्ती नहीं हुई है। नर्सों की ५० हजार रिक्तियां नहीं भरी गई हैं। चतुर्थ श्रेणी स्टाफ की कमी के कारण परिजनों को एक्स-रे जांच, रक्त परीक्षण, सर्जरी के लिए अपने मरीजों को ले जाना जैसे कई काम करने पड़ते हैं। हाफकिन महामंडल में नहीं है कोई स्थाई निदेशक
पिछले छह वर्षों में हाफकिन महामंडल में १३ प्रबंध निदेशकों की नियुक्ति की गई, लेकिन इनमें से कोई भी एक साल से अधिक नहीं टिका, इससे महामंडल के कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। हाफकिन जीव औषध निर्माण महामंडल कर्मचारी संगठन ने सीधे खाद्य व औषधि प्रशासन मंत्री धर्मराव अत्राम और चिकित्सा शिक्षा और फार्मास्यूटिकल्स विभाग की सचिव अश्विनी जोशी को पत्र लिखकर स्थाई प्रबंध निदेशक की नियुक्ति की मांग की है।

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