- १ रुपए किलो बिका चव्हाण का प्याज
सामना संवाददाता / मुंबई
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने महाराष्ट्र के किसानों को भारी क्षति पहुंचाई है। हजारों रुपयों की लागत से की गई खेती तबाह हो गई है। इस आपदा ने किसानों को वित्तीय संकट में लाकर खड़ा कर दिया है। इसी में प्याज का उत्पादन करने वाले किसानों को समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है। आलम यह है कि किसान १२ से १३ हजार रुपए की लागत से प्याज की खेती करता है। खेत से ५१२ किलो प्याज का उत्पादन होता है। लेकिन उसे केवल १०० रुपए कुंतल का भाव मिल रहा है। इस तरह किसान को प्याज की कीमत कुल ५१२ रुपए मिलती है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इसमें भी ४०.४५ रुपए हमाली, २४.०६ रुपए तुलाई, ट्रांसपोर्ट पर ४३० रुपए, अन्य खर्च १५ समेत कुल ५०९.५१ रुपए खर्च के बाद किसान के हाथ में केवल २.४९ रुपए आ रहा है। राज्य में परिस्थितियां यह बयां करने के लिए लिए काफी है कि खेती पर भारी लागत लगाने के बावजूद उचित मूल्य न मिलने से किसानों की ताकत निकल रही है। दूसरी तरफ किसानों की इस विकट परिस्थिति को सुलझाने के लिए ‘ईडी’ सरकार किसी तरह की भी जुगत लगाती हुई नहीं दिखाई दे रही है।
ऐसे ही एक घटना १७ फरवरी २०२३ की है। सुबह ८ बजे महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बोरगांव में रहने वाले ६५ साल के किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण ने प्याज की १० बोरियां एक पिकअप वैन में लादीं और ७० किलोमीटर दूर सोलापुर में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी प्याज मंडी पहुंचे। बोरियों में ५१२ किलो प्याज था। इसका भाव मिला एक रुपए किलो, वहीं प्याज के बदले ५१२ रुपए तो बन गए लेकिन प्याज को मंडी लाने, ढुलाई और बोरे का खर्च ५०९ रुपए ५१ पैसे आया। सारा हिसाब होने के बाद तुकाराम को घर ले जाने के लिए २ रुपए ४९ पैसे मिले। ये दो रुपए भी चेक के जरिए मिले, जिसे वैâश करवाने में ३०६ रुपए और खर्च करने होंगे।
ऐसी ही कहानी बंडू भांगे नामक किसान की है। बीड जिले के दाउतपुर गांव में रहनेवाले बंडू एक फरवरी २०२३ को ८२५ किलो प्याज लेकर सोलापुर मंडी पहुंचे थे। प्याज का भाव एक रुपए किलो ही था। प्याज के बदले ८२५ रुपए बने। तुलाई-ढुलाई और भाड़ा मिलाकर कुल ८२६ रुपए का खर्च आया। बंडू को ८२५ किलो प्याज के बदले जो रसीद मिली। उसके मुताबिक उन्हें जेब से एक रुपया मंडीवालों को देना था यानी उन्होंने एक रुपए की कमाई की।
रातों को जाग-जागकर उगाते हैं फसल
राजेंद्र चव्हाण ने बताया कि मंडी में प्याज की कीमत इतनी कम है कि वहां जाने के बाद हमें जेब से पैसे देने पड़ रहे हैं। इसे उगाने के लिए कई रातें जागकर बितानी पड़ीं, अब उसे फेंकने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा।