मुख्यपृष्ठस्तंभदेश को कंगाली से निकालने वाला राजनेता

देश को कंगाली से निकालने वाला राजनेता

जन्म 26 सितंबर 1932, निधन 26 दिसंबर2024

नवीन जैन
वरिष्ठ पत्रकार

किस्सा साल 1991 का है। मुंबई में एक शाम पार्टी चल रही थी। इसी बीच एक अति आवश्यक फोन आया। उधर, से तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.नरसिंहराव के सहायक बात कर रहे थे। कहा गया कि डॉक्टर मनमोहन सिंह से बात करवाई जाए। पीएम बात करेंगे। पार्टी थम सी गई। डॉक्टर मनमोहन सिंह लाइन पर आए। उधर से पी.नरसिंहराव ने इधर-उधर की बात करने के बाद कहा कि डॉक्टर साहब कल सुबह की फर्स्ट अवेलेबल फ्लाइट से आप दिल्ली आ जाइए। आपको देश के वित्तमंत्री पद की शपथ लेनी है।

जाहिर है मनमोहन सिंह एकदम सन्नाटे में आ गए। उन्होंने सिर्फ इतना कहा देखता हूं और फोन कट गया। चूंकि डॉक्टर मनमोहन सिंह की शख्सियत में कहीं राजनीतिक गुण थे ही नहीं और वे तब वर्ल्ड बैंक में अच्छी भली नौकरी कर रहे थे, इसलिए राजनीति में जाना उनके लिए किसी बड़े पचड़े में पड़ने जैसा ही था, लेकिन रिश्तेदारों और दोस्तों ने उन्हें समझाया कि यदि देश आर्थिक संकट से गुजर रहा है, तो आप का ये दायित्व है कि आप देश को इस संकट से निकालने में सहयोग करें।नतीजा यह हुआ कि अगली सुबह की पहली फ्लाइट से दिल्ली रवाना होकर डॉक्टर सिंह ने नरसिंहराव के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री पद की शपथ ले ली। यह एक अजूबा था, मगर यह अजूबा उस वक्त इसलिए कामयाब हुआ, क्योंकि पूर्ववर्ती सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण देश लगभग फकीरी या कंगाली के मुहाने पर पहुंच गया था। इतना ही नहीं हमारा 20 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड में गिरवी रखकर इस कंगाली से बचाने का “पराक्रम”भी पूर्ववर्ती सरकार ने किया था। आजाद भारत के इतिहास में शायद ये पहली और अंतिम बार हुआ था। डॉक्टर मनमोहन सिंह ने जैसे ही पद सम्हाला सबसे पहले उदारीकरण का राज स्थापित करते हुए लाइसेंस राज खत्म किया। बाजार खोले। जनता को सभी सरकारी सूचना लेने का अधिकार (राइट टू इनफॉर्मेशन) की नीति लागू की। मनरेगा, जिसमें ग्रामीणों को साल में सौ दिन काम देने की गारंटी लागू की। यह नीति आज भी लागू है। डॉक्टर सिंह की ही दूरदृष्टी का यह भी प्रमाण था कि एक पहचान पत्र और शिक्षा का अधिकार दिया उन्हीं के कार्यकाल में दिया गया।उन्हीं ने 2006 के मार्च माह में अमेरिका से न्यूक्लीयर डील फाइनल की।

वे पहली बार असम से राज्यसभा सदस्य चुन कर आए थे।उनके जैसा मृदुभाषी, शालीन, संयमपूर्ण, सहिष्णु और नपा_ तुला बोलने वाला राजनेता भारत में शायद ही कोई दूसरा हुआ हो। ये ठीक है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने कभी उन पर तंज कसा था कि रेनकोट पहनकर बाथरूम में नहाना कोई डॉक्टर साहब (मनमोहन सिंह) से सीखे, लेकिन इन्हीं नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह के हक में कभी आसमान सिर पर उठा लिया था। हुआ दरअसल यह था कि पाकिस्तान के कुछ बड़बोले राजनेताओं ने मनमोहन सिंह को एक गावदी और गवार प्रधानमंत्री निरूपित कर दिया था। इस बेहद हल्की ओछी और अपमानजनक टिप्पणी पर नरेंद्र मोदी ने ही सबसे पहले पाकिस्तान के वाचाल राजनेताओं की हवा बांध दी थी।

बता दें कि डॉक्टर मनमोहन सिंह का जन्म अब के पाकिस्तान में स्थित गाह गांव में 26सितंबर 1932 को हुआ था। कई बार भारत की राजनीति भी अमानवीय हो जाती है। मनमोहन सिंह यूपीए सरकार के तहत कुल दस साल यानी 2004 से 2014 तक पीएम रहे। वे हृदय रोग के मरीज थे। एक बार उनकी हृदय शल्य क्रिया हो चुकी थी, किंतु जब दूसरी बार इसी शल्य क्रिया की जरूरत पड़ी, तो मुंबई के विशेषज्ञ डॉक्टर पांडा को दिल्ली बुलाकर उनकी दूसरी बार हृदय शल्य क्रिया करवाई गई। उस वक्त के विपक्ष ने इस मुद्दे को भी खूब हवा दी। विरोधी नेताओं का कहना था कि दिल्ली के एम्स अस्पताल में वैसे ही विशेषज्ञ डॉक्टर इस ऑपरेशन के लिए उपलब्ध हैं, इसलिए क्यों डॉक्टर पांडा को सरकारी खर्च पर दिल्ली बुलवाया गया। अब इसका क्या किया जा सकता है कि विपक्षी नेताओं की यह बौद्धिक कंगाली थी कि वे नहीं जानते थे कि इस तरह की शल्य क्रिया जिस गूच पद्धति से की जाती है उसके देश में एकमात्र जानकार डॉक्टर पांडा ही हैं।

यह तथ्य है कि चूंकि कांग्रेस के तत्कालीन वरिष्ठ नेता शरद पवार (अब एनसीपी के नेता) ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के आधार पर उनके (मनमोहन सिंह) के पीएम बनने में अड़ंगा डाल दिया था। इसलिए मनमोहन सिंह को रातोंरात पीएम पद की शपथ दिलाई गई। इसी के चलते डॉक्टर मनमोहन सिंह पूरे कार्यकाल तक सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी के रिमोट द्वारा संचालित प्रधानमंत्री होने का ताना झेलते रहे, मगर डॉक्टर मनमोहन सिंह के बारे में ही अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2010 में कनाडा के टोरंटो शहर में जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान कहा था कि जब डॉक्टर सिंह खासकर आर्थिक मुद्दों पर बोलते हैं, तो उसे पूरी दुनिया सुनती है। ओबामा ने 2020 में अपने संस्मरण में मनमोहन सिंह को असाधारण व्यक्ति तक लिखा था। एक बार जब उनके द्वारा पेश किए गए बजट की स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने जमकर आलोचना कर दी थी तो उन्होंने वित्त मंत्री पद से इस्तीफा देने तक का मन बना लिया था, किंतु पी. नरसिम्हा राव के कहने पर अटलजी ने उन्हें अपने घर बुलाकर ऐसा न करने को मना लिया था। डॉक्टर मनमोहन सिंह पर केंद्रित एक फिल्म भी बनी जिसका नाम था -एन एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर जिसमें अनुपम खेर ने उनका प्रधानमंत्री के रूप में अभिनय किया था। फिल्म ऐसी पिटी कि शायद लागत भी नहीं निकल पाई। कभी तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहते हुए जोकर तक कह दिया था, लेकिन तब भी वे चुप ही रहे। उनकी आर्थिक नीतियों के प्रखर विरोधी पूर्व रक्षा मंत्री स्वर्गीय जॉर्ज फर्नांडिस तक कहा करते थे कि ये सही है कि आजाद भारत के इतिहास में डॉक्टर मनमोहन सिंह के दस साल प्रधानमंत्री रहते हुए सबसे ज्यादा तेरह आर्थिक घोटाले हुए, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह पर कभी भी व्यक्तिगत रूप से एक पैसा भी खाने का भी आरोप नहीं लग सकता। डॉक्टर मनमोहन सिंह 92 वर्ष की उम्र में विदा हुए।

अन्य समाचार