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दफन हो गया सालाना २ करोड़ रोजगारों का वादा, अब तो स्टार्ट-अप भी करने लगे कर्मचारियों की छंटनी! इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में २५ हजार की गई नौकरी, केंद्र की अपरिपक्व नीतियों का खामियाजा भुगत रही हैं कंपनियां

२०१४ में मोदी सरकार के आने के बाद से स्टार्ट-अप पर खासा जोर दिया गया था। देखते ही देखते देश में कुकुरमुत्तों की तरह स्टार्ट-अप उग आए। मोटी तनख्वाह वाली नौकरियों की लाइन लग गई। पर लगता है अब इसका दम निकल चुका है। बड़ी संख्या में इस सेक्टर में छंटनी हो रही है और कर्मचारी बेरोजगार हो रहे हैं। मोदी सरकार ने सालाना २ करोड़ रोजगारों का जो वादा किया था, वह दफन होता नजर आ रहा है। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में २५ हजार लोगों की नौकरी चली गई।
हिंदुस्थानी स्टार्ट-अप नवंबर, २०२२ तक ८४,०१२ ‘मान्यता प्राप्त’ फर्मों के साथ अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरे नंबर पर थे और ८,६०,००० लोगों को नौकरी दे रहे थे। पर अब इनकी कमाई घट चुकी है और मुनाफे की कोई साफ उम्मीद नहीं है। बाजार के जानकारों के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में ८८ स्टार्ट-अप ने २५,००० से ज्यादा कर्मचारियों को निकाल दिया। जानकार बताते हैं कि स्टार्ट-अप के शुरुआती दौर में केंद्र सरकार ने कई आकर्षक स्कीम बनाई थी, जिससे युवा इस ओर आकर्षित हुए पर बाद में सरकार ने कई स्कीम बंद कर दी, जिससे इस क्षेत्र में मंदी पसरने लगी।
‘डेकाकॉर्न’ ने ५ प्रतिशत को निकाला
पिछले साल डेकाकॉर्न (१० अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली कंपनी) कंपनी ने एलान किया था कि अक्टूबर, २०२२ से लगभग ५ प्रतिशत या २,५०० कर्मचारियों को निकाल दिया जाएगा। यह कंपनी ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करती है। जून में, उसने ‘पुनर्गठन प्रक्रिया’ में १,००० और कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। इस कंपनी में ५०,००० लोग काम करते हैं।
यूनिकॉर्न का जन्म
महामारी के वर्षों में दुनिया भर में कई यूनिकॉर्न का जन्म हुआ। हिंदुस्थान में १०८ स्टार्ट-अप (३१ मई, २०२३ तक) यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हैं। निवेश प्रोत्साहन एजेंसी इन्वेस्ट इंडिया के मुताबिक, इन यूनिकॉर्न का कुल सामूहिक मूल्यांकन ३४०.८ अरब डॉलर (२८ लाख करोड़ रुपए) किया गया था, जो अर्थव्यवस्था का तकरीबन १० फीसद है।
महामारी के बाद हालात में भारी बदलाव आया। जिन देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में कोविड के लिए राहत के रूप में अरबों डॉलर का निवेश किया, उन्हें सरप्लस मनी के सबसे बड़ी दुश्मन यानी महंगाई से निबटना पड़ा। जैसे ही मुद्रास्फीति बढ़ी, अमेरिका के केंद्रीय बैंक अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू कर दी, और वृद्धि का सिलसिला मई, २०२२ तक शून्य से लगभग ५ फीसद तक ले जाया गया।
भारी नुकसान में यूनिकॉर्न
अधिकांश यूनिकॉर्न को भारी नुकसान हो रहा है और इसमें कुछ लिस्टेड कंपनियां भी शामिल हैं। २०२१ में पब्लिक इश्यू जारी करने वाले पेटीएम, जोमैटो और नायका जैसे स्टार्ट-अप की शेयर कीमतें उनके सूचीबद्ध मूल्य से काफी नीचे गिर गर्इं, जिससे निवेशकों के लाखों डॉलर स्वाहा हो गए। असल में इन कंपनियों का परफॉर्मेंस निवेशकों को रास नहीं आया, जिससे बाजार में इन कंपनियों की साख घट गई।
लॉकडाउन में बूम
२०२०-२१ में कोविड महामारी के चरम वाले दिनों में स्टार्ट-अप बूम आया। लॉकडाउन के कारण तब शिक्षा, भोजन, मनोरंजन, जीवन शैली और स्वास्थ्य और स्वच्छता समेत कई सेवाओं में ऑनलाइन फर्मों की मांग में अभूतपूर्व उछाल आया था। उसी दौरान कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में दिए गए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन से बाजारों में अफरात नकदी आ गई। हिंदुस्थानी स्टार्ट-अप को २०२० में १०.९ अरब डॉलर प्राप्त हुए, २०२१ में यह फंडिंग बढ़कर ३५.२ अरब डॉलर हो गई।

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