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गंभीर तनाव में हैं देश के स्टूडेंट्स … ‘छात्र आत्महत्या’ के बढ़ रहे मामले!

जनसंख्या वृद्धि दर से ज्यादा हुुई सुसाइड की दर 
महाराष्ट्र-तमिलनाडु का सबसे बुरा हाल
सामना संवाददाता / नई दिल्ली 
हिंदुस्थान के स्टूडेंट्स गंभीर तनाव से गुजर रहे हैं। जिसकी वजह से छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। आलम यह है कि जनसंख्या वृद्धि दर से ज्यादा छात्रों की आत्महत्या की दर बढ़ गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के आधार पर ‘छात्र आत्महत्या: भारत में पैâलती महामारी’ रिपोर्ट वार्षिक आईसी-३ सम्मेलन में जारी की गई। रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश वो राज्य हैं, जहां छात्र सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं। यहां जितने छात्र आत्महत्या करते हैं वह देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं का एक तिहाई है, जबकि अपने उच्च शैक्षणिक वातावरण के लिए जाना जाने वाला राजस्थान १०वें स्थान पर है, जो कोटा जैसे कोचिंग केंद्रों से जुड़े गहन दबाव को दर्शाता है। छात्र आत्महत्या के मामलों की कम रिपोर्टिंग होने की संभावना है।
६१ फासदी बढ़ी घटनाएं
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में छात्र आत्महत्याओं में ५० और छात्राओं में ६१ प्रतिशत की वृद्धि हुई। पिछले पांच वर्षों में दोनों में औसतन ५ प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई है। एनसीआरबी के आंकड़े पुलिस की ओर से दर्ज की गई प्राथमिकी रिपोर्ट (एफआईआर) पर आधारित है। हालांकि, यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि छात्रों की आत्महत्या की वास्तविक संख्या संभवतः कम रिपोर्ट की गई है। इस कम रिपोर्टिंग के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिसमें आत्महत्या से जुड़ा सामाजिक कलंक और भारतीय दंड संहिता की धारा ३०९ के तहत आत्महत्या के प्रयास और सहायता प्राप्त आत्महत्या का अपराधीकरण शामिल है।

५३ प्रतिशत पुरुष छात्रों ने की खुदकुशी
पिछले दशक में ०-२४ वर्ष की आयु के बच्चों की जनसंख्या ५८.२ करोड़ से घटकर ५८.१ करोड़ हो गई, जबकि छात्र आत्महत्याओं की संख्या ६,६५४ से बढ़कर १३,०४४ हो गई। आईसी-३ इंस्टीट्यूट की ओर से संकलित रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष २०२२ में कुल छात्र आत्महत्या के मामलों में ५३ प्रतिशत पुरुष छात्रों ने खुदकुशी की। आईसी-३ इंस्टीट्यूट की ओर से संकलित रिपोर्ट में बताया गया है कि २०२२ में कुल छात्र आत्महत्या के मामलों में ५३ प्रतिशत पुरुष छात्रों ने खुदकुशी की। २०२१ और २०२२ के बीच छात्रों की आत्महत्या में छह प्रतिशत की कमी आई, जबकि छात्राओं की आत्महत्या में सात प्रतिशत की वृद्धि हुई।

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