धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
देश और दुनिया के बड़े शहरों में रोशनी से नहाई जगमग रातें भले ही लोगों को आकर्षित करती हैं, लेकिन इनका स्याह सच पर्यावरण के साथ इंसान और जीव-जंतुओं को तबाह कर रहा है। यह प्रकाश प्रदूषण एक समस्या बनता जा रहा है। इससे मुंबई भी अछूता नहीं है। इस चकाचौंध में मुंबई में एलईडी लाइटस खतरनाक होती जा रही हैं। इसके संपर्क में मुंबई की आधी से ज्यादा आबादी है जो भविष्य में गंभीर बीमारियों की शिकार हो सकती हैं। फिलहाल, इसके खिलाफ पिछले डेढ़-दो वर्षों से खामोश जंग जारी है। लेकिन महायुति सरकार पर इसका कोई असर होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है।
इसे लेकर एनजीओ नेटकनेक्ट फाउंडेशन, वॉचडॉग फाउंडेशन और श्री एकवीरा आई प्रतिष्ठान ने पिछले साल एक नवंबर को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पत्र लिखकर दावा किया था कि मुंबई और मुंबई महानगर क्षेत्र में ये बिलबोर्ड ‘घातक’ प्रकाश प्रदूषण पैदा कर रहे हैं। इसमें उन्होंने राज्य सरकार को प्रकाश प्रदूषण के कारण होने वाली यातायात दुर्घटनाओं की संभावनाओं और पक्षियों के पलायन करने जैसी समस्याओं के बारे में चेताया। वहीं चमगादड़ जैसे रात में निकलनेवाले पशु-पक्षियों को परागणकों को रोकती हैं। इतना हीं नहीं पानी के नीचे के पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती हैं। यहां तक कि मनुष्यों में मेलाटोनिन उत्पादन को भी कम करती हैं। इस पत्र को दिए करीब १० महीने का वक्त गुजर जाने के बावजूद भी खाती सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगा है। सरकार ने आज तक इस पर किसी तरह का पैâसला नहीं किया है। सरकार की इस अनदेखी का खामियाजा भविष्य में न केवल इंसानों बल्कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण को भुगतना पड़ेगा।
डिजिटल होर्डिंग्स पर कोई नीति नहीं
मुंबई में डिजिटल होर्डिंग्स पर कोई नीति नहीं है, जिससे इसमें हाल के वर्षों में अभूतपूर्व उछाल देखा गया है। मुंबई में १,०२७ होर्डिंग हैं, जिनमें से ६७ डिजिटल हैं, जिन्हें रात ११ बजे बंद करना होगा, जबकि कई आवेदन लंबित हैं। दूसरी तरफ मनपा की व्यापक मसौदा होर्डिंग नीति में डिजिटल होर्डिंग के विनियमन पर विशेष जोर दिए जाने की उम्मीद है, जो अंतिम चरण में है। नागरिक निकाय द्वारा वीडियो को पूरी तरह प्रतिबंधित करने और डिजिटल होर्डिंग पर प्रदर्शित दो छवियों के बीच आठ सेकंड का अंतर प्रस्तावित करने की संभावना है।
मनुष्य और जीव-जंतुओं के लिए खतरनाक
वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. शशि कपूर ने कहा कि एलईडी लाइटिंग विशेष रूप से नीली और अधिक तीव्र रोशनी के लिए जानी जाती है, जो चाहे वह दिखाई दे या न दे, लेकिन वे अक्सर कठोर झिलमिलाहट के साथ होती है। एलईडी लाइटिंग के संपर्क में आने से मनुष्य और जीव-जंतुओं दोनों के लिए काफी खतरा होता है। अफसोस की बात यह है कि एलईडी का उपयोग आउटडोर लाइटिंग, स्क्रीन और विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले, डिजिटल विज्ञापन स्क्रीन में बड़े पैमाने पर किया जाता है, जिससे नीली रोशनी की अधिकता होती है। इससे अनावश्यक प्रकाश प्रदूषण की समस्या और बढ़ जाती है।