सामना संवाददाता / मुंबई
केंद्र सरकार ने ८वां वेतन आयोग को मंजूरी दी, तो महाराष्ट्र के ११.५ लाख सरकारी कर्मचारियों को उम्मीद थी की राज्य सरकार भी जल्द ही ८वें वेतन आयोग गठित करेगी। लेकिर राज्य सरकार के कर्मचारियों के इस मंसूबे पर पानी फिर गया है। क्योंकि राज्य सरकार का खजाना खाली है। इस स्थिति में सरकार अभी ८वां वेतन देने की स्थिति में नहीं है। इसके लिए राज्य सरकार के कर्मचारियों को लंबा इंतजार करना पड़ेगा। ऐसा स्पष्ट संकेत राज्य सरकार ने दिया है।
सरकार का तर्क है कि वेतन आयोग लागू करने से हर साल २०,००० करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ खजाने पर पड़ेगा। वित्त विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार की रिपोर्ट २०२६ तक आने की उम्मीद है। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार अपना आयोग २०२७ में बना सकती है। लेकिन इसे लागू करने में २०२९ के लोकसभा और विधानसभा चुनाव तक का समय लग सकता है। छठे वेतन आयोग को २००९ के विधानसभा चुनाव और सातवें को २०१९ के चुनाव से पहले लागू किया गया था।
कर्मचारी इसे सरकार की `चुनावी रणनीति’ बताते हुए कहते हैं कि चुनाव नजदीक आते ही वेतन आयोग की `मिठाई’ बांटने की परंपरा शुरू हो जाती है।
२०१९-२० में सातवें वेतन आयोग के बाद वेतन और पेंशन का खर्च १.०६ लाख करोड़ रुपए से बढ़कर १.३६ लाख करोड़ रुपए हो गया था। अब अगर ८वां वेतन आयोग लागू होता है, तो सालाना खर्च में कम से कम २०,००० रुपए करोड़ का अतिरिक्त बोझ सरकार के राजस्व पर पड़ेगा। कर्मचारियों को अनुमान है कि इस बार भी २०-२५ फीसदी वेतन वृद्धि होगी, लेकिन सवाल यह है कि सरकार इसे लागू कब करेगी। वहीं कर्मचारियों का कहना है कि हमारी मेहनत का फल चुनावों पर क्यों मोहताज है। इसके साथ ही खजाना खाली होने की बात क्यों की जाती है और चुनाव आते ही पैसा कहां से आ जाता है।