मासिक धर्म पर सालाना १.५ हजार रुपए खर्च करती हैं ३० फीसदी युवतियां
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई की झोपड़पट्टियों में रहने वाली महिलाओं पर किए गए एक सर्वे में चौंकने वाली जानकारी सामने आई है। इस सर्वे ने मनपा की सच्चाई को उजागर कर दिया है। इसमें पाया गया है कि मनपा झोपड़पट्टियों में बुनियादी सुविधाएं देने में फेल हो रही है, जिसकी मार यहां रहनेवाले लोग झेल रहे हैं। आलम यह है कि झोपड़ों में रहने वाली ३० फीसदी किशोरियां और युवतियां मासिक धर्म पर सालाना १.५ हजार रुपए खर्च करती हैं।
उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज द्वारा सर्वेक्षण जून से लेकर सितंबर तक किया गया। इस बीच १२ से २४ वर्ष की १,२७५ और १५ से २४ आयु के ५८५ किशोर-युवकों के जवाब पर आधारित डेटा संकलित किया गया। इसमें पाया गया कि झोपड़ियों में रहने वाले लगभग ३० फीसदी लोग सुविधाओं की कमी के कारण मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं पर सालाना १,५०० रुपए खर्च करते हैं। इसमें यह भी पाया गया कि केवल ९.७ फीसदी ने मासिक धर्म संबंधी समस्याओं के लिए सरकारी सुविधा से देखभाल और उपचार लिया। इसी तरह ३५ फीसदी ने घरेलू उपचार पर भरोसा किया और ३० फीसदी ने निजी देखभाल पर खर्च किया। आईआईपीएस के आंकड़ों में इस साल ९३.५ फीसदी की पहुंच मासिक धर्म में स्वच्छता उत्पादों तक थी, जबकि एक दशक पहले यह पहुंच ७०.८ फीसदी थी। सर्वे में बताया गया है कि आज भी कई मिथक हैं और ४१.३ फीसदी उत्तरदाताओं का मानना है कि मासिक धर्म के दौरान युवतियां अशुद्ध नहीं होती हैं। सर्वेक्षण में ७२.८ फीसदी उत्तरदाताओं ने स्वीकार किया कि महिलाएं इस दौरान रसोई में प्रवेश कर भोजन पका सकती हैं। सर्वेक्षण में योगदानकर्ता डॉ. अपराजिता चट्टोपाध्याय के मुताबिक, ८९.१ फीसदी महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अपने सामान्य सोने के स्थान तक पहुंच थी। इसी तरह १९.५ फीसदी का मानना था कि ऐसे समय में पूजास्थल पर जाना या किसी शुभ समारोह में भाग लेना स्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण सभी वर्गों में मौजूद हैं और समृद्ध समाजों में भी ये दृष्टिकोण बने हुए हैं।