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…तो २०० के भीतर निपट जाती भाजपा!… विपक्ष के खिलाफ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का हुआ असर

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

१८वीं लोकसभा के चुनावों में यदि भारतीय जनता पार्टी ने एनडीए के कुछ अन्य घटक दलों समेत चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग, अडानी और कथित तौर पर कुछ अन्य इत्यादि से गठबंधन न किया होता तो शायद नरेंद्र मोदी की नई भाजपा १५० से भी कम सीटें जीत पातीं। उसमें भी यदि यूपी में मायावती की पार्टी बसपा ने उसे अप्रत्यक्ष मदद न की होती तो भाजपा की स्थिति बद से बदतर हो सकती थी।
इस लोकसभा चुनावों में भाजपा के हिस्से बमुश्किल २४० सीटें आई हैं। वो तब जब चुनाव से पहले उसने केंद्रीय एजेंसियों का जमकर इस्तेमाल किया। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल में डलवाकर झारखंड की कई सीटें हासिल कीं, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल में डलवाकर दिल्ली में एकतरफा जीत हासिल कर ली। हालांकि, पंजाब में अरविंद केजरीवाल की अनुपस्थिति का उसे कोई लाभ नहीं हुआ पर अपनी गुजरात की होम पिच पर नई भाजपा की नाक काफी हद तक कटने से बच गई।

…तो गुजरात में होता भाजपा को १० सीटों का नुकसान!

गत विधानसभा चुनावों में १४ प्रतिशत से अधिक मत लेनेवाले अरविंद केजरीवाल यदि इस बार लोकसभा चुनाव में गुजरात में उतरते तो वे निश्चित ही ३ से ४ सीटें हासिल करने के अलावा ८ से १० सीटों पर भाजपा को हरवा सकते थे। अरविंद केजरीवाल की पार्टी यदि गुजरात में ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ होती तो निश्चित ही बीजेपी को १० सीटों का नुकसान हो सकता था। बहुत संभव है कि इसी डर के चलते मोदी सरकार ने केजरीवाल को जेल में डलवा दिया हो। केजरीवाल के जेल में रहने से उसे गुजरात, पंजाब और दिल्ली की ४५ से ४६ सीटों पर पकड़ बनाने का मौका मिल गया।
उधर, उत्तर प्रदेश में भी केंद्रीय एजेंसियों के डर से भाजपा मायावती को सक्रिय चुनाव प्रचार से दूर रखने में कामयाब हुई और यूपी की कुल १६ सीटों पर उसने इंडिया गठबंधन को हराने में सफलता प्राप्त कर ली। वरना अकबरपुर, अलीगढ़, अमरोहा, बांसगांव, भदोही, बिजनौर, देवरिया, फतेहपुर सीकरी, हरदोई, मेरठ, शाहजहांपुर, मिर्जापुर, फर्रुखाबाद, उन्नाव, मिसरिक और फूलपुर की सीटें नई भाजपा के हाथ से निकलकर इंडिया गठबंधन के खेमे में चली जाती। लिहाजा, मोदी सरकार को अपने गठबंधन के गुप्त पार्टनर बसपा को भी धन्यवाद देना चाहिए और मंत्रिमंडल में चंद्राबाबू नायडू और नीतिश कुमार के बराबर ही उन्हें भी स्थान देना चाहिए।
कुल मिलाकर, अपने अनैतिक और गुप्त गठबंधन, ब्लैकमेलिंग, दुष्प्रचार, एजेंसियों के गलत इस्तेमाल से भाजपा ने ४० से ४५ अतिरिक्त सीटें हासिल कर लीं, जिनमें उत्तर-पश्चिम मुंबई की सीट की तरह कई अन्य अनैतिक जीत वाली सीटें भी शामिल हैं। वो तो महाराष्ट्र की अमरावती में उनकी चाल नाकामयाब हो गई वरना वहां भी नवनीत राणा को छल-कपट से विजयी घोषित कर दिया जाता। जिस तरह से महाराष्ट्र समेत यूपी और हिमाचल की कई सीटों पर किया गया है।

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