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तो फिर मलियाना की ७२ मौतों का कौन है जिम्मेदार? ३६ सालों तक चलती रही मामले की सुनवाई

  • कोर्ट ने सभी ३९ आरोपियों को रिहा किया

नागमणि पांडे
वो एक कहावत है कि ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस।’ मेरठ के मलियाना नरसंहार केस का भी हाल कुछ ऐसा ही था। ३६ सालों तक सुस्त गति से चलनेवाले इस केस का गत शनिवार को अचानक फैसला आया तो ऐसा लगा वहां कोई नरसंहार हुआ ही नहीं था। सभी ३९ आरोपियों को जिला अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। १४ आरोपियों को पहले ही क्लीनचिट मिल चुकी है तथा अन्य ४० आरोपियों की मौत हो चुकी है। एडीजे कोर्ट ६ के जिला जज लखविंदर सिंह ने चर्चित ‘मलियाना नरसंहार’ पर शनिवार को अपना फैसला सुनाया। उन्होंने पर्याप्त सबूत के अभाव में सभी ३९ आरोपियों को बरी कर दिया।
२३ मई, १९८७ को हुए इस जघन्य नरसंहार में ७२ लोगों की मौत और १०० से अधिक लोग घायल हुए थे। हमलावरों ने घरों में आग लगाकर जमकर लूटपाट की थी। मोहल्ले के याकूब की तरफ से ९३ लोगों को नामजद करते हुए एफआईआर दर्ज कराई गई थी। मुकदमे में ७४ गवाह बने थे। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने आधिकारिक तौर पर १० लोगों के मारे जाने की पुष्टि की थी, जबकि तत्कालीन जिलाधिकारी ने जून १९८७ के पहले सप्ताह में माना था कि पुलिस और पीएसी ने मलियाना में १५ लोगों की हत्या की थी। एक कुएं से भी कई शव बरामद हुए थे।
कोर्ट में ८०० तारीखें
३६ साल तक कोर्ट में चले केस में करीब ८०० तारीखें लगीं। आरोपियों के अधिवक्ता सीएल बंसल के अनुसार, अदालत के सामने यह तथ्य रखा गया कि पुलिस ने आरोपियों पर झूठे आरोप लगाए हैं। मतदाता सूची के आधार पर उन्हें आरोपी बनाया गया है, जबकि वे बेकसूर हैं।
ऊपरी अदालत में देंगे चुनौती
मेरठ में ३६ साल पहले २३ मई १९८७ को जो कुछ हुआ, उसे याद कर आज भी लोग दहल जाते हैं। मेरठ के बाहरी इलाके में हुए इस भीषण नरसंहार का मामला तब पूरे देश में गरमाया था। आरोपियों को बरी करने के आदेश ने मलियाना नरसंहार को लेकर कानून का दरवाजा खटखटाने वालों को निराश किया है। इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने वाले ६३ वर्षीय मोहम्मद याकूब सवाल करते हैं कि क्या मलियाना नरसंहार हमारी कल्पना थी? क्या ७२ लोगों की मौतें नहीं हुईं ? वे फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने की बात कहते हैं।
आंखों के सामने नाची थी मौत
स्थानीय लोगों के अनुसार नरसंहार से पहले कई सप्ताह से इलाके में तनाव चल रहा था। घटना के वक्त नौचंदी में मेला लगा हुआ था। इसी दौरान पटाखा फूटा और एक सिपाही को जा लगा। इसके बाद सिपाही ने गोली चला दी। गोलीबारी में दो मुस्लिमों की मौत हो गई। यहीं से तनाव बढ़ना शुरू हुआ। फिर एक धार्मिक समारोह में फिल्मी गाने बजाए जाने पर विवाद हुआ। इसके बाद २३ मई को सैकड़ों स्थानीय लोग पीएसी के साथ बंदूक और तलवारें लिए मलियाना में घुसे। इलाके के सभी पांच प्रवेश स्थल बंद कर दिए गए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, ‘हर तरफ से मौत बरस रही थी। बच्चों और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया।’ एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, ‘एक जलते हुए बच्चे को रिक्शे पर फेंक दिया गया था, जबकि एक युवती का शव उसके दो बच्चों से लिपटा हुआ था। एक ही परिवार के ११ सदस्यों को गोली मारकर कुएं में फेंक दिया गया था।’
पीड़ित पक्ष की प्रतिक्रिया
पीड़ित पक्ष के वकील अलाउद्दीन सिद्दीकी ने कहा, ‘अभी भी कार्यवाही चल रही थी, ऐसे में यह निर्णय अचानक आया। ३४ पोस्टमॉर्टम पर सुनवाई नहीं हुई थी और अभियुक्तों को सीआरपीसी की धारा ३१३ के तहत पूछताछ नहीं की गई थी।

मलियाना नरसंहार एक नजर में
२३ मई, १९८७
मेरठ के बाहरी क्षेत्र में ७२ मुसलमानों का नरसंहार कर दिया गया। आरोप के अनुसार, इनकी हत्या स्थानीय लोगों और पीएसी ने मिलकर की।
मई २७, १९८७
तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने मामले की न्यायिक जांच कराने की घोषणा की।
मई २९, १९८७
यूपी सरकार ने पीएसी कमांडेंट आरडी त्रिपाठी के निलंबन की घोषणा की। त्रिपाठी ने ही फायरिंग का ऑर्डर दिया था।
अप्रैल १९, २०२१
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली व यूपी के पूर्व डीजीपी विभूति नारायण राय की रिट पिटिशन पर यूपी सरकार को काउंटर एफिडेविट फाइल करने का आदेश देते हुए कहा कि वे बताएं कि इस केस की इतनी धीमी प्रोसीडिंग की क्या वजह है?
अप्रैल १, २०२३
३६ सालों के बाद मेरठ की जिला अदालत ने सभी ३९ आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया।

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