चमकता चांद एक आसमान में,
टिमटिमाते संग सितारे बहुत है।
जिंदगी से जंग हम लडे़ हैं बहुत,
जंग जीते कम हम हारे बहुत हैं।
करीब से दीदार न नसीब हुआ,
चांद को दूर से निहारे बहुत है।
कैसे बचे इज्ज़त बहन बेटी की,
चौराहों पर कुत्ते आवारे बहुत हैं।
शहरों के चकाचौंध से कोसों दूर,
देखा भूखे प्यासे बेसहारे बहुत हैं।
सच का दर्पण झूठ को दिखाया,
दोस्त कम दुश्मन हमारे बहुत हैं।
पापों का फैसला होगा एक दिन,
तू निर्दोषों का घर उजाड़े बहुत है।
उड़ आकाश जमीं पे आना होगा,
अहं ईर्ष्या से भरे गुब्बारे बहुत हैं
मस्त मनचली नदियों का “गौतम’,
देखा सफर सजा किनारे बहुत है।
- घूरण राय “गौतम”
मधुबनी, बिहार