बालासोर हादसे की मार्मिक कहानी
कहते हैं कि जाको राखे साइयां, मार सके न कोए… मतलब जिस पर ऊपर वाले की कृपा हो उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता। ओडिशा रेल हादसे में ऐसी ही तमाम कहानियां सामने आ रही हैं। हादसे में जहां मौतों का आंकडा ३०० के आसपास पहुंच गया है, वहीं कई लोग मौत के मुंह से निकलकर आए हैं। किसी की सीट बदलने से जान बची तो किसी ने सीट तक जाने में कुछ देर करी तो उनकी जान बच गई। एक शख्स तो पोस्टमॉर्टम के लिए लाशों के बीच रख दिया गया लेकिन उसके पिता उसे ढूंढते हुए पहुंच गए। पिता की जिद ने बेटे की जान बचा ली। हावड़ा के एक २४ वर्षीय युवक को मृत समझकर बहानागा में एक अस्थायी मुर्दाघर में रखा गया था। वह जीवित पाया गया। लाशों के ढेर में घायल हाथ के बेहोश शरीर के कांपने पर उसके पिता ने उसे देखा। वह अड़ गए कि उनका बेटा जिंदा है। जिद ने उनके बेटे बिस्वजीत मलिक की जान बचा ली। उसे कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने कहा कि उनकी हालत गंभीर बनी हुई है, अगले कुछ दिनों में उसकी कई सर्जरी होंगी।
सीट न बदलने से बच गई जान
कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहा एक १६ वर्षीय छात्र की जान बच गई। बेरहामपुर के जॉर्ज जैकब दास ने हाल ही में मैट्रिक पास किया है। वह अपने माता-पिता के साथ कोरोमंडल एक्सप्रेस में सफर कर रहा था। माता-पिता का रिजर्वेशन कोच बी २ में था। वहीं जॉर्ज जैकब दास को कोरोमंडल एक्सप्रेस के बी ८ में सीट मिली थी। परिवार ने बी८ में जाने और टीटीई से १६ वर्षीय बच्चे की सीट बदलने का अनुरोध किया लेकिन सफल नहीं हुए। उनके पिता ईजेकील दास ने बेटे को उसी सीट में यात्रा करने को कहा। ईजेकील ने कहा कि हम टीटीई से बेटे की सीट बदलने का अनुरोध करने के लिए कोच बी८ जाने वाले थे। मेरी पत्नी ने सुझाव दिया कि रात के खाने के बाद बेटा वहां चला जाए। वह वहीं रुक गया। इसी दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने की आवाज सुनी और ट्रेन हिलने लगी। जब ट्रेन रुकी और मैं कोच से बाहर आया तो मैंने देखा कि चारों तरफ हाथ-पैर बिखरे हुए हैं। अपने परिवार के सदस्यों के साथ शनिवार रात घर लौटे ईजेकील ने कहा कि बाद में हमें पता चला कि कोच बी८ के कई यात्रियों की मौत हो गई है, जबकि कई अन्य घायल हो गए हैं।
बच्चे को बेहोशी की हालत में लेकर आए कोलकाता
बिस्वजीत के पिता हेलाराम ने बालासोर के लिए एंबुलेंस में २३० किमी से अधिक की यात्रा की। दुर्घटना के बारे में जानने के बाद हीलाराम ने बिस्वजीत को उसके सेलफोन पर कॉल किया। हेलाराम ने एक स्थानीय एंबुलेंस चालक को बुलाया और उसी रात अपने बहनोई के साथ निकल गए। लेकिन बालासोर में उन्हें विश्वजीत किसी अस्पताल में नहीं मिला। उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति ने हमसे कहा कि हमें बहानागा हाई स्कूल में देखना चाहिए, जहां शव रखे थे। वह वहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि हमें खुद शवों को देखने की अनुमति नहीं थी। कुछ देर बाद किसी ने पीड़ित का दाहिना हाथ कांपते देखा तो हंगामा मच गया। हमने देखा कि हाथ बेहोश बिस्वजीत का था। हमने उसे उठाया और एंबुलेंस से कोलकाता लेकर आए।
ग्रामीणों की मदद से बचा १० वर्षीय देवाशीष
जानकारी के अनुसार, भोगरई, बालासोर के १० वर्षीय देवाशीष पात्रा ट्रेन हादसे के बाद सात शवों के नीचे फंस गया था। उसके माथे और चेहरे पर कई चोटें आर्इं। शनिवार को ग्रामीणों की मदद से उसके बड़े भाई ने उसे बचा लिया। पांचवीं कक्षा के छात्र देबाशीष का एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के सर्जरी विभाग में इलाज चल रहा है। कोरोमंडल एक्सप्रेस से वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ भद्रक जा रहा था। उसने बताया कि मेरे पिता ने भद्रक के लिए कोरोमंडल एक्सप्रेस में टिकट बुक किया था, जहां चाचा और चाची हमें लेने के लिए इंतजार कर रहे थे। सभी मेरे साथ यात्रा कर रहे थे।