मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनावे बस्तियाँ जला दें, तुम मोमबत्तियाँ जला लो

वे बस्तियाँ जला दें, तुम मोमबत्तियाँ जला लो

वे बस्तियाँ जला दें
तुम मोमबत्तियाँ जला लो
फिर हो इकट्ठे निकलो
कोर्रम में दिया जला लो
बस ऐसे ही चले सब
फिर कैसे कोई भला हो
अब वक्त आ गया है
नई सोच को जगा दो
बेटी-बहन पर जो निकले
वो हर फब्तियाँ जला दो
बेटी-बहन से गुजरे
हवस की कस्तियाँ ज़ब
सोख लो समंदर
और कस्तियाँ जला दो
नारी को न्याय खातिर
दो हाथ उसके खंजर
वो सही न्याय खुद से करले
उसकी सिसकियां जला दो
वो वक़्त गुजर गया है
के मोमबत्तियाँ जला लो
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

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