जितेंद्र मल्लाह
कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते। झूठ बोलनेवाले को उसे ढोना पड़ता है। एक झूठ को सच साबित करने के लिए बार-बार झूठ बोलना पड़ता है। बड़े-बुजुर्गों द्वारा तजुर्बे के आधार पर कही गई उक्त बातें महाराष्ट्र की ईडी सरकार के सीएम एकनाथ शिंदे समर्थकों और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के भाजपाई अनुयायियों पर सौ फीसदी सही लागू होती है।
दरअसल, सबका साथ, सबका विकास का नारा देकर २०१४ में केंद्र की गद्दी तक पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले भाजपा में अपने कद को चुनौती देने में सक्षम व संभावित प्रतिद्वंद्वियों को ‘ठिकाने’ लगाया। इसके बाद ईडी, सीबीआई और दूसरी केंद्रीय एजेंसियों के जरिए विपक्षी दलों के साथ-साथ अपने सहयोगी दलों को भी समेटने या खत्म करने का कुचक्र शुरू किया। इस दौरान दूसरे दलों की ‘कड़ियों’ को तोड़कर मोदी और उनकी भाजपा अपने साथ जोड़ने लगी और अपना कुनबा बढ़ाने लगी। पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की कृपा से महाराष्ट्र में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा बन चुके देवेंद्र फडणवीस ने भी वही हथकंडा अपनाया। केंद्र में लालकृष्ण आडवाणी, सुब्रह्मण्यम स्वामी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और अब नितीन गडकरी की तर्ज पर फडणवीस ने एकनाथ खड़से, विनोद तावड़े, पंकजा मुंडे सहित कई भाजपाइयों का कद कम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जिसकी वजह से महाराष्ट्र में भाजपा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले खड़से भाजपा छोड़ने को मजबूर हुए तो तावड़े और पंकजा मुंडे हाशिए पर पहुंच गए। सुधीर मुनगंटीवार और आशीष शेलार जैसे कुछ पुराने भाजपाई नेताओं की मुंह बंद रखकर मुक्के की मार सहने जैसी हालत किसी से छिपी नहीं है। पार्टी में उनसे ज्यादा वजन आज दूसरे दलों से आए नारायण राणे, प्रवीण दरेकर, प्रसाद लाड आदि का देखने को मिलता है। हालांकि, सबके खिलाफ साजिश रचनेवाले देवेंद्र फडणवीस भी बाद में उसी साजिश के शिकार हुए। महाविकास आघाड़ी में शामिल एकनाथ शिंदे सहित ५० लोगों को तोड़ने के बाद भी फडणवीस दोबारा सीएम नहीं बन सके। केंद्र के दबाव में डेप्युटी सीएम का पद जबरदस्ती स्वीकार करके वे रोज खून का घूंट पी रहे हैं। हालांकि, वे सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में खुश होने का दिखावा करते हैं। फडणवीस एक और झूठ तब बोलते नजर आते हैं, जब वे कांग्रेस और राष्ट्रवादी के साथ जाने के कारण शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे पर जनादेश और हिंदुत्व से विश्वासघात करने का आरोप लगाते हैं। क्योंकि शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे से पहले खुद फडणवीस ने भोर में अजीत पवार के साथ गठजोड़ करके शपथ लेकर जनादेश और हिंदुत्व से विश्वासघात किया था। कुछ ऐसा ही झूठ फडणवीस और शिंदे समर्थक दूसरे लोग भी बोलते और दिखाते हैं। शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना और पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे से गद्दारी करने के बाद शिंदे समर्थक अब तक गद्दारी के कई कारण गिना चुके हैं। पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा वक्त नहीं देने, राष्ट्रवादी और कांग्रेस के साथ जाने से उनके अंदर की हिंदुत्ववादी भावना के आहत होने, अजीत पवार द्वारा राष्ट्रवादी के विधायकों को ज्यादा निधि देने, शिवसेना नेता सुभाष देसाई, संजय राऊत, अनिल देसाई, विनायक राऊत, अनिल परब ऐसे कई लोगों को शिंदे और उनके समर्थक शिवसेना से अपनी गद्दारी का जिम्मेदार ठहरा चुके हैं, जबकि केंद्रीय एजेंसियों के डर से प्रताप सरनाईक सहित कई अन्य लोग पहले से ही भाजपा से सुलह की सलाह दे रहे थे।
बीते दिनों शिंदे समर्थक गुलाबराव पाटील ने अपनी गद्दारी का नया कारण बताकर सबको चौंका दिया। जलापूर्ति मंत्री गुलाबराव पाटील ने कहा कि जब ३२ लोग शिवसेना छोड़कर शिंदे के साथ चले गए तो अब मैं अकेले क्या करूंगा? ऐसा सोचकर मैं भी ३० नवंबर को एकनाथ शिंदे के पास चला गया। ऐसा ही हास्यास्पद बयान भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार ने दिया है। मुनगंटीवार का कहना है कि फडणवीस ने भोर में शपथ शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे को सबक सिखाने के लिए ली थी। यदि इसे सही माना जाए तो बाद में उद्धव ठाकरे ने फडणवीस और भाजपा को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस, राकांपा के साथ महाविकास आघाड़ी बना ली तो गलत क्या किया? खैर सब जानते हैं, मुनगंटीवार अंदर ही अंदर आहत हैं, फिर भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए वे फडणवीस को खुश करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, इस प्रयास में वे अपनी ही बेइज्जती करवा रहे हैं।