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तीसरा काॅलम : कच्चे तेल का खेल : नहीं घट रहे पेट्रोल-डीजल के दाम!

अनिल चौरसिया
मुंबई

‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ का नारा देकर सत्ता में काबिज मोदी सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी करके आम आदमी को राहत नहीं दे रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय मार्वेâट में कच्चे तेल की कीमतें कम हैं। अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत लुढ़ककर ७३ डॉलर प्रति बैरल के करीब आ गई है, फिर भी केंद्र सरकार र्इंधन की कीमतो में कोई रियायत नहीं दे रही है। कच्चे तेल की कीमत इस समय ५२ सप्ताह के निचले स्तर पर चल रही है। पिछली बार केंद्र सरकार ने २१ मई २०२२ को गुजरात, हिमाचल प्रदेश और पंजाब विधानसभा के चुनाव को देखते हुए पेट्रोल की कीमतों में ९.५० रुपए और डीजल की कीमतों में ७ रुपए की कमी की थी। उसके बाद आज तक केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं की है, जिससे आम जनता को फायदा मिल सके। कोरोना महामारी में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने दो साल तक रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया था। लेकिन बढ़ती महंगाई और वैश्विक आर्थिक मंदी को ध्यान में रखकर आरबीआई ने रेपो रेट को बढ़ाकर ६.५ प्रतिशत तक कर दिया, जिसके कारण महंगाई थोड़ी नियंत्रण में जरूर आई है लेकिन महंगाई का सूचकांक अब भी ४ प्रतिशत के ऊपर अभी भी बना हुआ है। आरबीआई इसे ४ प्रतिशत के नीचे लाने का सपना पिछले कई वर्षों से लगातार देख रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने फरवरी २०२३ में रेपो रेट ०.२५ बेसिस से बढ़ाकर ६.५० कर दिया था। रेपो रेट में बढ़ोतरी के कारण आम जनता को अपने घर के लोन पर अधिक ब्याज देना पड़ रहा है और गृहिणियां पहले से ही महंगाई से परेशान हैं। बेमौसम बारिश के कारण सब्जी और खाने-पीनेवाले सामानों की कीमत आसमान पर है। ऐसे वक्त में भी केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी करने की नहीं सोच रही है। अगर केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी ला दे तो शायद महंगाई से आम जनता को थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन लोकसभा चुनाव नजदीक नहीं है, वो भी एक कारण है जिसके वजह से केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी न करके ऑइल कंपनियों को फायदा पहुंचा रही है। केंद्र की भाजपा सरकार चुनाव देखकर ही जनता के हित में पैâसले लेती है ताकि चुनाव में उसे उसका फायदा मिले और पुन: सत्ता पर काबिज हो सके।

(उपरोक्त आलेखों में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)

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