मुख्यपृष्ठस्तंभतीसरा काॅलम : दर्शन या प्रदर्शन

तीसरा काॅलम : दर्शन या प्रदर्शन

 कविता श्रीवास्तव

राम ने हंसकर सब सुख त्यागे
तुम सब दुख से डर के भागे!
अयोध्या हम भी गए हैं। हमने भी प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पहुंचकर हनुमानगढ़ी और रामलला के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया है। हमने भी पवित्र शरयू नदी की आरती उतारी है और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं। हम जैसे अनेक लोग श्रद्धा भाव से श्रीधाम अयोध्या पहुंचते हैं। हम कोई राजनीतिक नहीं हैं, जो इसका प्रदर्शन करें। हमारे पास ऐसा करने के संसाधन और फिजूल पैसे भी नहीं हैं। लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल के सदस्यों ने अयोध्या पहुंचकर जिस तरीके से एक मजमा सा लगाया, वह दर्शन से कहीं ज्यादा प्रदर्शन नजर आया। दरअसल, राजनीतिक लोगों द्वारा ऐसा करना शक्ति प्रदर्शन करने और लोकप्रियता पाने का तरीका होता है। इसीलिए अयोध्या में प्रदर्शन के लिए मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य जिलों से लोगों को पहले से ही अयोध्या पहुंचा दिया गया था। लोग पहुंच जाएं यह सुनिश्चित करने के लिए ट्रेन को हरी झंडी दिखाने खुद मुख्यमंत्री रेलवे स्टेशन पहुंचे थे। अपने लिए अयोध्या में भीड़ का बंदोबस्त करना, पोस्टर-बैनर लगवाना, रोड शो करना यह सब प्रदर्शन नहीं तो और क्या है? इस प्रदर्शन में दिखने की लालसा से भाजपा के लोग भी स्वयं को नहीं रोक पाए। भाजपा के सामान्य विधायकों को छोड़िए, खुद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मुख्यमंत्री के पीछे-पीछे लपक कर रोड शो की जीप में जा पहुंचे। यह सब अयोध्या में प्रभु श्रीरामचंद्र भगवान के बन रहे मंदिर का श्रेय लेने की लालसा और होड़ का हिस्सा ही दिखाई दिया। ऐसा भाषणों से भी लगा। वास्तव में श्रीराम मंदिर आंदोलन की पृष्ठभूमि में प्रभु श्रीराम के चरणों में समर्पित हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे की भूमिका सर्वाधिक दबंग और लोकप्रिय रही है। उनकी बुलंद आवाज आज भी ऐतिहासिक सत्य है। लेकिन उनका नाम लेकर महाराष्ट्र के नेताओं ने हाल ही में अयोध्या में जो प्रदर्शन किया, उसे महाराष्ट्र से अयोध्या गए टीवी चैनलों ने मसालेदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह सब देखकर फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में आनंद बक्शी का लिखा गीत याद आया….‘देखो ओ दीवानों, तुम ये काम न करो, राम का नाम, बदनाम न करो….।’ दरअसल, उस फिल्म में नशाखोरी में लिप्त लोगों द्वारा ‘हरे रामा-हरे कृष्णा’ कह कर झूमने पर टिप्पणी है कि वे जो चाहे करें पर भगवान का नाम उससे जोड़ने से बाज आएं। गाने में गीतकार ने लिखा है…‘राम ने हंसकर सब सुख त्यागे, तुम सब दुख से डर के भागे…।’ इन पंक्तियों से महाराष्ट्र की राजनीति के पिछले १० महीनों के घटनाक्रम की याद भी आई। किस तरह से शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना में बगावत करके पूरी शिवसेना को हिलाने की कोशिशें हुर्इं। भाजपा शासित राज्यों गुजरात और असम में बागियों की हुई खातिरदारी भी याद आई। कई लोग केंद्रीय जांच एजेंसियों के डर से दुबक कर भाजपा की गोद में घुस रहे हैं, इस प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप याद आने लगे। फिर महाराष्ट्र की सत्ता में बागियों को आगे करके भाजपा का दूसरी पंक्ति में खड़े रहने की राजनीतिक मजबूरी, यह सब याद आने लगा। महाराष्ट्र में किसानों की बदहाली, युवाओं की बेरोजगारी, बढ़ती मंहगाई से दबते लोग यह सब सच्चाइयां नजर आने लगी। यकीन मानिए, उसके बाद मुझे टीवी चैनल की खबर बंद करके यह गाना सुनने में ज्यादा मजा आया।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

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