• डॉ रमेश ठाकुर
शरणार्थियों की संख्या घटी नहीं, बल्कि बढ़ी है? समूचे संसार की तकरीबन दो तिहाई शरणार्थी आबादी सिर्फ पांच देशों सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिण सूडान, म्यांमार और सोमालिया में बसी है। इसमें छठा देश हिंदुस्थान है, यहां भी कई देशों के लोग शरणार्थी बनकर बसे हुए हैं, जिनमें तिब्बत, भूटान, नेपाल व म्यांमार आदि पड़ोसी देश शामिल हैं। सोचनेवाली बात ये है कि आधुनिक समय में भी ये समस्या विकट बनी हुई है। शरणार्थियों के संबंध में हमें समझना होगा, आखिर ये होते कौन हैं और इनसे ये शब्द क्यों वास्ता रखता है। दरअसल, शरणार्थी वह दुखी इंसान होते हैं, जिन्हें युद्ध या हिंसा के कारण अपना घर-संसार न चाहते हुए भी मजबूरी में त्यागना पड़ता है। उन्हें हमेशा जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनीतिक या किसी विशेष सामाजिक समूहों से पीड़ित होना पड़ता है। समय बदल चुका है और व्यवस्थाएं भी बदल गर्इं। हुकूमतें भी सख्त हैं, कानून-व्यवस्थाएं भी दुरुस्त हैं, इसके बावजूद भी शरणार्थियों की समस्याएं अभी भी जस की तस बनी हुई हैं। मौजूदा वक्त में एशिया कुछ ज्यादा ही इस परेशानी से पीड़ित है। शायद कोई ऐसा एशियाई मुल्क बचा हो, जहां विगत कुछ वर्षों से म्यांमार के रोहिंग्या न पहुंचे हों।
एक बार अपनी जमीन छोड़ने के बाद शरणार्थी फिर आसानी से अपने घर वापस नहीं लौट पाते, उन्हें ताउम्र दर-दर भटकना पड़ता है। क्योंकि अब कोई भी मुल्क उन्हें अपने यहां पनाह देने को राजी नहीं होते। एक वक्त था, जब शरणार्थी सिर्फ हिंसा, दंगा या युद्ध के चलते ही अपना देश छोड़ते थे। पर अब जातीय और धार्मिक कारणों से भी बेघर होना पड़ता है। एकाध उदाहरण हमारे सामने बिल्कुल ताजे हैं। आदिवासी लोग अपने ही देश में शरणार्थियों जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं। उनकी लाखों की आबादी आज भी वनों में निवास करती है। शरणार्थी शब्द ‘शरण’ या पनाह से जुड़ता है जिसका अर्थ पीछा, खतरा या कठिनाई होता है। जिनेवा कन्वेंशन के दौरान ही शरणार्थियों की वैश्विक परिभाषा को सरकारी मान्यता दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ४ दिसंबर, २००० को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ घोषित हुआ था। सन् २००१ से इस दिवस को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में पहचान मिली। तभी ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ को २००१ से उत्सव के तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने १९५१ कन्वेंशन रिफ्यूजी स्टेटस की ५०वीं वर्षगांठ के रूप में पूर्ण चिह्नित किया गया। अभी कुछ मुल्क ऐसे हैं, जहां इस दिवस को अलग-अलग तारीखों में मनाते हैं।
वैसे, विश्व शरणार्थी दिवस प्रत्येक २० जून को ही ज्यादातर मुल्कों में मनाया जाता है। यह दिन विश्व स्तर पर यह दिखाने का अवसर प्रदान करता है कि हम सभी शरणार्थियों के साथ हैं, उनके दुख-दर्द में शामिल हैं, क्योंकि मानवता हमें सही सीख देती है। यूक्रेन, रूस के बीच साल भर से जारी युद्व के चलते भी लाखों लोग पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं। बांग्लादेश के लाखों लोग भारत में अवैध तौर पर रह रहे हैं। हालांकि, ये सब मजबूरी में लोग करते हैं। पूरी दुनिया की बात करें तो युद्ध, उत्पीड़न या प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित रहने के लिए प्रत्येक वर्ष कई लाख लोग अपने घरों से पलायन करने को विवश होते हैं। यूनाइटेड नेशन (यूएन) के अनुसार, हर मिनट करीब २५ लोगों को बेहतर और सुरक्षित जीवन की तलाश में अपना घर छोड़ना पड़ रहा है। ब्रिटिश रेड क्रॉस के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटेन में लगभग १२०,००० शरणार्थी रह रहे हैं, वहीं भारत में रोहिंग्या, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत जैसे पड़ोसी देशों के करीब बीस लाख लोग बीते काफी समय से रह रहे हैं।
(लेखक राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, भारत सरकार के सदस्य, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)