विनय यादव
कोरोना महामारी के दौरान पूरे देश को कृषि क्षेत्र ने संभाला था। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का खतरा भी अब कृषि क्षेत्र पर मंडरा रहा है। ला-लीना और अल-नीनो के टकराव का हवाला देते हुए न केवल केंद्र सरकार, बल्कि राज्य सरकारें भी संकेत दे रही हैं कि मौसम सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय, असंगठित क्षेत्र, कृषि, ऊर्जा, जल आदि क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पिछले महीने अपनी मासिक आर्थिक समीक्षा जारी की, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि वैâसे हिंदुस्थान में अल-नीनो की वापसी से कम मानसूनी बारिश, कम कृषि उत्पादन और उच्च कीमतें हो सकती हैं। कोरोना महामारी से पहले वर्ष २००० की गर्मी की तुलना करें तो उस साल १६७.२ अरब कार्य घंटों का नुकसान हुआ था, जिससे सकल घरेलू उत्पाद को ५.४ प्रतिशत का झटका लगा था। इस हिसाब से जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों में स्वच्छ पेयजल का अभाव, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण आदि के असर को जोड़ दें, तो आर्थिक क्षति बहुत अधिक हो जा ती है। इस साल गर्मी और मानसून के पूर्वानुमान खाद्य मुद्रास्फीति और ग्रामीण आय में गिरावट के बारे में चिंता बढ़ा रहे हैं। तापमान में अचानक वृद्धि और बेमौसम बारिश ने रबी की फसलों की पैदावार को खतरे में डाल दिया है। इसके अलावा देश में कोल्ड चेन के बुनियादी ढांचे की कमी के कारण अत्यधिक गर्मी ताजा खाद्य पदार्थों के परिवहन के दौरान बड़े नुकसान का कारण बन सकती है।
इसमें अनाज की कीमतें ऊंची बनी रहेंगी। उच्च तापमान के कारण एयर कंडीशनर और रेप्रिâजरेटर जैसे बिजली के उपकरणों का अधिक उपयोग और मोटरों को चलाने के लिए अधिक बिजली का उपयोग होगा। इसके कारण पूरे देश में बिजली की कमी हो सकती है। विशेषज्ञ पिछले वर्ष की तुलना में बिजली की मांग में २०-३० प्रतिशत मांग बढ़ने का अनुमान है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुस्थान में श्रम और जीडीपी पर असर पड़ेगा। पहले से संकटग्रस्त जीडीपी और अधिक संकट में जा सकती है। कृषि, खनन और निर्माण जैसे ताप-उजागर कार्य पर निर्भर परियोजनाओं पर ५० फीसदी असर दिखाई दे सकता है।
खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार तथा अधिक पैदावार के लिए कृषि क्षेत्र में निरंतर नए अनुसंधान के बावजूद हिंदुस्थान में भुखमरी से हालात बदतर होते जा रहे हैं। वैश्विक भूख सूचकांक के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष २०२२ में हिंदुस्थान १२१ देशों की सूची में १०७वें स्थान पर पहुंच गया है। १२१ देशों की सूची में श्रीलंका ६४वें, म्यांमार ७१वें, नेपाल ८१वें, बांग्लादेश ८४वें, पाकिस्तान ९९वें, अफगानिस्तान १०९वें स्थान पर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के प्रकाशकों ने हिंदुस्थान में `भूख’ की स्थिति को गंभीर बताया है। बदलते मौसम को लेकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं। जिन इलाकों में इन दिनों बेहद गर्मी पड़ती है, वहां बेमौसम बारिश हो रही है और मौसम ठंडा है। आगे मौसम किस ओर करवट बदलेगा उसकी गारंटी नहीं है।
महाराष्ट्र की बात करें तो राज्य सरकार ने खुद सूबे में सूखा पड़ने के संकेत दिए हैं। हालांकि, जलशिवार योजना की निर्भरता का हवाला भी दिया जा रहा है। सूखा पड़ने की स्थिति में राज्य के जलशिवारों में पानी कहां से आएगा, उसका सही आकलन अब सरकार ही कर सकती है। मुंबई को पानी सप्लाई करने वाली झीलों में सूखे की स्थिति में कहां से पानी आएगा? वह भी मसला है। महाविकास आघाड़ी सरकार के कार्यकाल में पर्यावरण मंत्री रहे आदित्य ठाकरे देशी और विदेशी मंचों पर साफ कह चुके हैं कि अगर हमें इसका समाधान ढूंढ़ना है तो हमें प्रकृति को संतुलित बनाए रखने का हल ढूंढ़ना होगा। विपक्ष ने दावा किया है कि `ईडी सरकार’ जब से आई है १,२०० किसान आत्महत्या कर चुके हैं। जनुका कोष परियोजना भी अधर में है। इस परियोजना का निर्णय राज्य कैबिनेट में हाल में लिया गया है।
वर्ष २००२ से २०२३ के बीच मौसम का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों के अनुसार, जून से दिसंबर २०२३ तक अल-नीनो का प्रभाव ५५ से ६० फीसदी रहेगा। इस बीच शुरुआत में बेमौसम बारिश और बाद में सूखे का संकट दिखाई देगा। मौसम का आकलन करनेवाली निजी स्काईमेट संस्था के वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि की है। राज्य के दापोली, पुणे, कोल्हापुर, कराड, नासिक, धुले, जलगांव, परभणी, अकोला, नागपुर, चंद्रपुर, यवतमाल के मौसम आधार पर राज्य के मौसम का अनुमान व्यक्त किया जाता है। यह आकलन बीते ३० साल के डाटा बेस पर आधारित होता है। आज तक राज्य में जब भी सूखा पड़ा है, उसमें अल-नीनो का प्रभाव देखा गया है। राज्य में वर्ष २००४, २०१२, २०१५ और २०१८ अल-नीनो के कारण सूखा पड़ा था।