– विमल मिश्र
भारत गुलाम था और हमें इतिहास में पढ़ाया जा रहा था कि हम सदियों से ग़ुलाम रहे हैं। कभी शक और हूण के, कभी मुगल और कभी अंग्रेजों से हम सदियों से लुटे-पिटे हारे-थके जुआरी हैं। पांच सौ साल हम पर मुगलों ने शासन किया और दो सौ साल से अंग्रेज हम पर शासन करते आ रहे थे। यह बात है १९४० के आसपास की उज्जयिनी के क्रांतिकारी युवा सूर्यनारायण व्यास की, जिनका प्रचलित संवत भी धीरे-धीरे लोग भूलते जा रहे थे। इतिहास से ऐसे पराक्रमी चरित्र ‘विक्रम’ के नाम पर उज्जयिनी से एक मासिक पत्रिका ‘विक्रम’ का प्रकाशन आरंभ किया। चूंकि उनका अपना प्रिंटिंग प्रेस था जहां से वे अपने पूज्य पिता महा महोपाध्याय पंडित नारायण व्यास जी के नाम पर ‘नारायण विजय पंचांग’ अपने छोटे भाई के साथ प्रकाशित करते ही थे, पर विक्रम संवत् के दो हजार वर्ष पूर्ण होने जा रहे थे और विक्रमादित्य के नाम पर राष्ट्र में कोई हलचल नहीं थी। उन्होंने विक्रम संवत के दो हजार वर्ष पूर्ण होने पर ‘विक्रम द्वि सहस्त्राब्दी महोत्सव’ की योजना बनाई और पृथ्वी राज कपूर को लेकर सारे राष्ट्र में जागृति फैलाने ‘विक्रमादित्य’ फिल्म का निर्माण शुरू कर दिया।
सारे देश में उनकी इस योजना का सम्यक स्वागत हुआ उन्हें सबसे पहले कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी से सहयोग मिला, महाराजा देवास ने योजना सुनकर कहा सारे सूत्र उनके हाथ में रहें तो वे सहयोग देंगे तब तक वीर सावरकर ने भी अपने पत्र में इस योजना की प्रशंसा कर दी। चूंकि पंडित सूर्यनारायण व्यास आजादी के पहले ११४ स्टेट के राज्य ज्योतिषी भी थे। उनकी इस योजना का सारे देश में सम्यक स्वागत हुआ और महाराजा ग्वालियर ने उन्हें ग्वालियर बुला भेजा। चार दिन घंटों-घंटों विचार-विमर्श हुआ और अंत में व्यास जी के सुझाव पर उज्जयिनी से लेकर मुंबई तक विक्रम महोत्सव मनाना स्वीकार हुआ। व्यास जी विक्रम के नाम पर एक विश्विद्यालय, शहर में एक भी भव्य सभागार नहीं था। पहले भी पृथ्वी राज कपूर आए थे तो महाराज वाडॉ रीगल टॉकीज कैलाश टॉकीज में पैसा पठान दीवार नाटक खेल समारोह के लिए चंदा एकत्र किया गया था, तो विक्रम के नाम पर एक भव्य सभागार ‘विक्रम कीर्ति मंदिर’ बनाने का विचार किया।
भविष्यदृष्टा व्यास जी जानते थे दस साल के अंदर हम स्वतंत्र तो हो जाएंगे पर स्वतृंतता उपरांत भी मानसिक ग़ुलामी और सांस्कृतिक दासता से मुक्त नहीं हो पाएंगे। अत: १९२८ से ही उन्होंने उज्जयिनी में अखिल भारतीय कालिदास समारोह मनाना शुरू कर दिया था। भारतीय रंगमंच की इस सांस्कृतिक आधारशिला, इस समारोह में भारत और संसार के प्राय: सभी महान लेखक, कलाकार, राजनेता, बुद्धिजीवी, चित्रकार, संगीतकार, गायक अब तक हिस्सा ले चुके हैं।
आजादी के बाद तक प्रथम राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से लेकर प्राय: सभी बड़े राजनेता इस समारोह में आए हैं। भारत से पहले सोवियत रूस में पंडित सूर्यनारायण व्यास के प्रयास से डाक टिकट जारी हुआ। भारत में भी बाद में उन्हीं के प्रयास से कालिदास पर डाक टिकट जारी हुआ। कवि कालिदास नामक फीचर फिल्म उन्हीं की प्रेरणा से बनी। भारत भूषण और निरुपा रॉय को लेकर बनी इस फिल्म को उन्होंने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी से टैक्स प्रâी करवाकर सारे देश में एक साथ प्रसारित प्रदर्शित किया। अब यह फिल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है।
उनके जीवन की सारी संचित निधि के दान द्वारा आज उज्जयिनी में स्थापित कालिदास अकादेमी उनके सपनों का साकार ज्योतिर्बिंब है। आज भी प्रति वर्ष मनाया जानेवाला अखिल भारतीय कालिदास समारोह उनका जीवंत समारक है। प्रखर पत्रकार क्रांतिकारी पंडित व्यास ने वर्ष १९४२ में उज्जैन से ‘विक्रम’ मासिक आरंभ किया और उसके माध्यम से सारे राष्ट्र के सोये पराक्रम को जगाने का उपक्रम किया। विक्रम संवत के दो हजार वर्ष पूर्ण होने पर ११४ राजा महाराजा इकट्ठा कर विक्रम महोत्सव मनाना आरंभ किया। आज उज्जयिनी में स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर उनके इसी महान अवदान की कीर्ति गाथा है।
विक्रम की प्रमाणिकता ऐतिहासिकता पर पंडित सूर्यनारायण व्यास निरंतर लिखकर अंग्रेज इतिहासकारों को मुंहतोड़ उत्तर दे ही रहे थे, विक्रम कीर्ति मंदिर स्थापित कर उन्होंने महाकाल मंदिर में उज्जयिनी की पहली खुदाई से प्राप्त पुरातत्व प्रमाण रखवाए थे। वे अपने ही काल में खुद के द्वारा स्थापित सिंधिया शोध प्रतिष्ठान विगत वर्षों में महाकाल में रखवाई सारी प्रतिमाओं का संग्रहालय बना दिया। बाद के काल में उनके सुयोग्य शिष्य डॉ. विष्णु श्रीधर वाकनकर ने विक्रम के काल की सोने की मुद्रा खोजकर उनकी शोध को प्रमाणिकता ही दी। अब उनका लक्ष्य विक्रम को जन-जन तक पहुंचाना था, तो उन्होंने पृथ्वी राज कपूर, प्रेम अदीब, रत्न माला, बाबूराव पेंढ़ारकर को लेकर ‘विक्रमादित्य’ विजय भट्ट के निर्देशन में बनाई। इस फिल्म और कवि कालिदास फिल्म दोनों फिल्म ने रजत जयंती मनाई।
विक्रम महोत्सव धूमिल इतिहास के सुनहले स्वर्णिम पन्ने-
आज की नई पीढ़ी तो संभवत: कल्पना भी नहीं कर सकती कि वैâसे सारी उज्जयिनी नगरी दुल्हन की तरह सज-धज गई थी। अपने निज विक्रम के स्वागत के लिए सारा नगर रंग-बिरंगी पताकाओं से सज गया जिस पर पराक्रमी विक्रम का चित्र था। वही चित्र जो बाद के काल में विक्रम का मुखपृष्ठ और संपादकीय पृष्ठ का चित्र बनता सजता-संवरता रहा। ये और विक्रम का जो चित्र विक्रमादित्य फिल्म के कवर से लेकर आज प्रचलन में हैं। वे सब महान चित्रकार- कनुभाई देसाई और रविशंकर रावल ने व्यासजी से गहन विचार-विमर्श कर बनाए थे। आज भी मूल चित्र मेरे पास सुरक्षित हैं, नवरत्न के जो चित्र आज प्रचलन में हैं वे भी रविशंकर रावल ने बनाए थे। इधर विगत ७५ साल से उसकी प्रतिकृति बजार में इतनी आ गई कि लोग नकल को ही असल समझ बैठे।
सारे देश में घूम-घूम कर महान विद्वान लोगों से विक्रम कालिदास उज्जयिनी पर शोध लेख लिखवाए गए, जिनमें महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन डॉ. भगवत शरण उपध्याय वि.वा. मीराशी वासुदेव शरण अग्रवाल डी.सी. मजूमदार जैसे असंख्य महान नाम थे मैथिली शरण गुप्त ने अपने हस्तलेख में दो हजार संवत्सर बीते हैं / निज विक्रम बिना हम मरे मरे जीते हैं / नित्य नये शक और हूण हमारे जीवन रस पीते हैं , होकर भी हुए क्या हम उनके मन चीते हैं? / भरे हुए हैं हृदय हमारें / हाथ हमारे रिते हैं, जो विक्रम स्मृति ग्रंथ में व्यास जी ने सबसे आगे प्रकाशित की यूं व्यास जी के अनुरोध पर इस से पूर्व कवि वर रवींद्रनाथ टैगोर उज्जयिनी कविता लिख चुके थे और उज्जयिनी भारती भवन रहते हुए नागार्जुन-कालिदास सच-सच बतलाना, अज रोया था या तुम रोये थे लिख चुके थे।
विक्रम स्मृति ग्रंथ वैâसे तैयार हुआ उसके बारे में डॉ. शिव मंगल सिंह सुमन एक दिलचस्प किस्सा सुनाते थे। उन दिनों वे ग्वालियर में क्वींस विक्टोरिया कॉलेज में थे और महापंडित राहुल जी आए हुए थे। चालीस बरस के सूर्यनारायण व्यास विक्रमादित्य फिल्म के सेट से दिल्ली आए और दिल्ली से सड़क मार्ग से ग्वालियर आकर राहुल जी को पकड़ा- विक्रम पर आपका लेख लिए बगैर नहीं जाऊंगा! डॉ. सुमन बड़े गर्व से और चाव से बताते थे- राहुल जी हमारी हॉस्टल के बरामदे में इक गमझा मुंह पर ओढ़कर बैठ गए- मैं बोलता हूं सुमन लिखेगा और आज आप विक्रम पर मेरा लेख लेकर ही जाएंगे व्यास जी! डॉ. सुमन बताते थे वे दो घंटे आंख पर गमछा डाले बोलते रहे मैं लिखता रहा और यूं- त्रिविक्रम! लेख तैयार हुआ, सुमन जी बताते थे वैâसे व्यास जी सारा खाना-पीना छोड़कर दीवाने की तरह विक्रम महोत्सव और कालिदास समारोह के लिए सारे देश में दौड़ते-फिरते थे।
विक्रमादित्य फिल्म की तो और अजब-गजब अनूठी कथा है- यह जो काल्पनिक गल्प उड़ा दी गई है कि पृथ्वी राज कपूर ‘मुगल-ए-आजम’ के समय बादशाह अकबर के भेस में प्रजा का हाल जानने सेट से बाहर निकल जाते। वास्तव में यह विक्रमादित्य की बात है वे उज्जयिनी में विक्रमादित्य के भेस में प्रजा का हाल जानने निकल जाते थे। देर रात अभिनय को उन्होंने इतना जीवंत कर दिया था। उनका और फिल्म का किस्सा आगे कभी लिखेंगे, लेकिन खुद बादशाह अकबर ने सचमुच के अकबर ने सम्राट विक्रमादित्य की अनेक अच्छी बात उठाई और अनुसरण किया था। मसलन विक्रमादित्य ने ‘विक्रम संवत’ प्रवर्तन किया था (जो संवत् २००० आते-आते लोग भूल गए थे, जिसे इस समारोह से पंडित व्यास ने सारे देश में पुनर्जीवित किया) उसी की तर्ज पर अकबर बादशाह ने ‘दीन-ए-इलाही’ संवत चलाया। यह और बात कि यह चला नहीं, विक्रम संवत् आज तक चल रहा है। ठीक विक्रमादित्य के नवरत्न-कालिदास वराहमिहिर शंकु वैताल भट्ट क्षपणक की तर्ज पर बादशाह अकबर ने भी अपने दरबार में तानसेन, बीरबल, टोडर मल नवरत्न रखे। यह पूरा कॉन्सेप्ट उन्होंने विक्रमादित्य के शासन से ही लिया था।
विक्रमादित्य फिल्म में काम करने के बदले पृथ्वी राज कपूर ने व्यास जी की मित्रतावश कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था, व्यास जी ने उनका यह कर्ज उतारा जब प्रथम राष्ट्रपति ने पंडित सूर्य नारायण व्यास को ‘पद्मभूषण’ साहित्य शिक्षा संस्कृति में योगदान के लिए प्रदान किया तो वे चाहते थे व्यास जी राज्यसभा में भी आए वाहन बालकृष्ण शर्मा, नवीन मैथिली शरण गुप्त पहले ही मौजूद थे। व्यास जी ने इस अनुरोध को यह कहकर बाबू से पृथ्वी राज कपूर के लिए मोड़ दिया कि बाबू! कला जगत से अब तक आपने किसी को राज्यसभा में सम्मान दिया नहीं है और इस तरह पृथ्वी राज कपूर राज्य सभा में ससम्मान विराजमान हुए।
इस भव्य आयोजन से जुड़े कुछ दर्दनाक मर्मनाक पहलू भी हैं। मसलन लॉर्ड वेवल जिन्ना के विरोध के कारण राजा महाराजों ने आयोजन से हाथ खींच लिए। जिन्ना ने सावरकर के आयोजन की प्रशंसा से चिढ़कर इसे हिंदू आयोजन बताकर विरोध किया, जबकि विक्रमादित्य भारत के सोए पराक्रम को जगाने का नाम था, लॉर्ड वेवल ने इसे अंग्रेज विरोधी मानकर महाराजा सिंधिया से विरोध जताया तब घनश्याम दास बिरला द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय के लिए भेजे दस लाख रुपए जो उज्जयिनी के आयोजन के लिए ईयर मार्क थे उससे ग्वालियर में मेडिकल कालेज बना लिया गया। इतना ही नहीं, ग्वालियर से ज्यादा पैसा मालवा का था। सर सेठ हुकुमचंद द्वारा व्यास जी के अनुरोध पर फिर एक बड़ी रकम दी गई, जिससे विक्रम विश्वविद्यालय बना पर इस अचानक आए विरोध और अवरोध से पूर्व विक्रम विश्व विद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर विक्रम स्मृति ग्रंथ का काम तो हो गया था, मगर विक्रम स्मृति स्तंभ का काम रह गया जो आज तक बना नहीं। उम्मीद ही नहीं, विश्वास है प्रिय यशस्वी मुख्यमंत्री मोहन यादव जैसे उज्जयिनी का मेडिकल कालेज ले आए ‘विक्रम समृति स्तंभ’ भी एक दिन बना ही देंगे!
कवि कालिदास फिल्म तो आज भी यूट्यूब पर उपलब्ध है जिसमे पंडित सूर्यनारायण व्यास के महान योगदान का भारत भूषण के स्वर में उल्लेख किया गया है। बाद के काल में पद्मभूषण पंडित व्यास के प्रयास से डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस फिल्म को सारे देश में टैक्स प्रâी कर दिया था और फिल्म ने री रिलीज स्वर्ण जयंती मनाई दूरदर्शन पर भी। मैंने प्राय: महाकाल सवारी रक्षाबंधन पर प्रति वर्ष दिखाई! याद रखें अब यह कहा जाता है- ‘मेरी कॉम’, ‘भाग मिल्खा भाग’ या हालीवुड में बायोपिक शुरू हुआ गलत हैं- कवि कालिदास और विक्रमादित्य पहले बायोपिक ही थे, विक्रमादित्य की कहानी दर्दनाक है, १९८० में मैंने स्वयं विजय भट्ट के साथ बैठ इसे देखा था, आज उनके परिजन महेश भट्ट आलिया भट्ट तक को इस फिल्म के बारे में कुछ पता नहीं। वे क्यों शशि कपूर के पृथ्वी थियेटर में मैंने स्वयं इस फिल्म की स्क्रिप्ट और दुर्लभ चित्र उनके पास देखे थे। आज कुछ भी उपलब्ध नहीं राष्ट्रीय संग्रहालय से भी फिल्म के प्रिंट गायब हैं। कुछ अंदर के स्रोत बताते हैं कि के. आसिफ की ‘मुगल-ए-आजम को पहली ऐतिहासिक फिल्म सिद्ध करने के लिए विक्रमादित्य के प्रिंट जला दिए गए। अब न कपूर परिवार के पास ही फिल्म है न भट्ट परिवार के पास और न पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के पास। कुछ लोग मानते हैं आग में जल गई फिल्म, मगर अभी उम्मीद की एक किरण दिखी है कान फिल्म फेस्टिवल में कुछ २५-३० बरस पहले विजय भट्ट की- ‘राम राज्य’, ‘भरत मिलाप’, ‘गूंज उठी शहनाई’, ‘बैजू बावरा’ के साथ ‘विक्रमादित्य’ दिखाई गई थी, वहां वे प्रिंट सुरक्षित रखते हैं। इस उम्मीद से मैंने वहां के डायरेक्टर सी ड्यूपिन से ईमेल पर संपर्क किया है यह कोई फिल्म नहीं उस महान समारोह के इतिहास का गौरवशाली पृष्ठ है। नई पीढ़ी संवत् २००० में मनाए इस भव्यतम विक्रम महोत्सव का इतिहास जाने और जाने की आज उसकी स्मृति में खड़े विक्रम विश्वविद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर और संसार का महान ग्रंथ उपलब्ध है- विक्रम स्मृति ग्रंथ!