संजय राऊत-
देश का चुनाव आयोग आज मोदी-शाह चुनाव आयोग बन गया है। सभी संवैधानिक संस्थाओं को खत्म किया जा रहा है। इससे चुनाव आयोग भी नहीं बच सका है। प्रधानमंत्री बजरंग बली के नाम पर वोट मांगते हैं। अमित शाह मध्य प्रदेश के मतदाताओं को मुफ्त में अयोध्या यात्रा का प्रलोभन दिखाते हैं। पुलवामा में जवानों की शहादत को भाजपा द्वारा प्रचार का मुद्दा बनाया जाता है। ये गंभीर है!
भारत का मौजूदा चुनाव आयोग यानी एक पाखंड का प्रतीक बन गया है। इस देश में एक चुनाव आयोग है, जो ठान ले तो निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन कर सकता है, ये टी. एन. शेषन के कार्यकाल में देखने को मिला। चुनाव आयोग की दहाड़ की तब जरूरत नहीं थी, बल्कि बाघ ने सिर्फ पूंछ हिलाई तो भी सभी सियासी दल कांप उठते थे। वही चुनाव आयोग अब पिंजरे में बंद तोता बन गया है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के मौके पर यह साबित हो गया। इस चुनाव में भाजपा के पैरों के नीचे से रेत सरक गई है। नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर तमाम भाजपाई नेताओं के चेहरे के रंग उड़ गए हैं। इसलिए ‘धार्मिक’ प्रचार करके डूबती नैया को बचाना, यही उनकी नीति बन गई है। देश के गृहमंत्री अमित शाह, मध्य प्रदेश के ‘गुना’ में प्रचार करने गए और उन्होंने घोषणा की कि मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार लाओ और रामलला का मुफ्त में दर्शन पाओ। जनता को राम का मुफ्त में दर्शन कराएंगे। इसका खर्च भाजपा करेगी। श्री अमित शाह का ये बयान सीधे-सीधे धार्मिक प्रचार की श्रेणी में आता है। मतदाताओं को ‘रिश्वत’ देकर वोट मांगने का यह मामला झकझोरनेवाला है और इस पर देश का चुनाव आयोग चुप्पी साधे तथा आंखें मूंदे बैठा है, यह लोकतंत्र के लिए घातक है।
हिंदुत्व का प्रचार!
हिंदुत्व का समर्थन करना अलग है और चुनाव में हिंदुत्व का प्रचार करके वोट मांगना अलग। जुलाई १९९९ में केंद्रीय चुनाव आयोग ने शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के वोट देने के अधिकार को छह वर्षों के लिए छीन लिया था। केवल मतदान ही नहीं, बल्कि चुनाव में भी खड़ा होने पर भी रोक लगा दी थी। उन पर हिंदुत्व यानी धर्म के नाम पर वोट मांगने का आरोप लगाया गया था। वर्ष १९८७ का विलेपार्ले विधानसभा उपचुनाव हिंदुत्व की प्रयोगशाला था। कांग्रेस के प्रभाकर कुंटे बनाम शिवसेना के रमेश प्रभु का मुकाबला था। हिंदुत्व के मुद्दों पर लड़ा गया यह पहला चुनाव था। ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं!’ ऐसा जोरदार नारा तब बालासाहेब ने दिया था। पराजित हुए प्रभाकर कुंटे ने बाद में मुंबई हाई कोर्ट में याचिका दायर की। बालासाहेब ने हिंदुत्व का प्रचार किया था, ऐसा कोर्ट ने माना और उन्हें छह साल के लिए मतदान करने से वंचित कर दिया। हिंदुत्व के लिए किसी नेता द्वारा किया गया यह सर्वोच्च त्याग था। रमेश प्रभु, सूर्यकांत महाडिक, रमाकांत मयेकर इन शिवसेना विधायकों को हिंदुत्व के मुद्दे पर विधायक का पद गंवाना पड़ा। आज हिंदुत्व की ठेकेदारी चलानेवाली भाजपा को हिंदुत्व के लिए ऐसा त्याग और संघर्ष पहले कभी भी नहीं करना पड़ा। चुनाव आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं को ‘मैनेज’ करके उन्होंने हिंदुत्व की लड़ाइयां लड़ीं। वो लड़ाइयां छिट-पुट थीं। पाकिस्तान पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की और उस पर भारत-पाकिस्तान, हिंदुत्व आदि मुद्दे लाकर वे वर्ष २०१९ के चुनाव में उतरे। फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ और पंडितों की ‘टारगेट किलिंग’ के मुद्दे पर उन्होंने भावनाओं को भड़काया और हिंदुओं से वोट मांगे, लेकिन पंडितों का भला नहीं हुआ। कभी हिजाब तो कभी बजरंग बली को प्रचार में उतारकर प्रधानमंत्री मोदी और उनके लोगों ने चुनाव आचार संहिता का सीधे उल्लंघन किया, फिर भी चुनाव आयोग नामक तोता साधारण तौर पर भी फड़फड़ाया नहीं। अब तो श्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश के मतदाताओं से ‘राम लला’ के नाम प्रार्थना की है। ऐसा किसी कांग्रेसी नेता ने किया होता तो आमतौर पर ‘ईडी’ की तरह चुनाव आयोग का वारंट उनके घर पहुंच गया होता।
दूसरों को नोटिस
कांग्रेस का चुनाव चिह्न यानी हाथ का पंजा। लखनऊ की एक सभा में पिछले दिनों राहुल गांधी ने कहा था, ‘कांग्रेस के चिह्न हाथ पर मुझे देव और संत के होने का आभास होता है।’ इस बयान पर वहां मौजूद भाजपावाले राहुल गांधी के विरोध में चुनाव आयोग और कोर्ट में पहुंच गए। देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अपने सरकारी लाव-लश्कर के साथ सियासी प्रचार में उतरते हैं। इससे चुनाव तंत्र पर दबाव पड़ता है। या तो प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार में न उतरें और उतरते हैं तो उसका पूरा खर्च उनकी पार्टी को वहन करना चाहिए। चुनाव आयोग उस पर मूकदर्शक नहीं बन सकता है। सरकारी खर्च से होने वाले धार्मिक प्रचार, हेट स्पीच आदि मामलों की चिंता वर्तमान चुनाव आयोग को नहीं है, इसे आश्चर्यजनक ही कहना होगा।
शेषन का काम
देश के दिवंगत मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन का नाम नई पीढ़ी को पता नहीं है, क्योंकि आज मोदी और शाह ही चुनाव आयोग बन गए हैं। ऐसा नहीं होता तो केवल चालीस विधायकों ने दल-बदल किया, इस वजह से ‘शिवसेना’ यह बालासाहेब ठाकरे की पार्टी और धनुष-बाण चिह्न ऐरे-गैरों के हाथ में नहीं सौंपे होते। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का भी यही होगा, लेकिन शेषन ने चुनाव आयुक्त रहने के दौरान अच्छे-अच्छे राजनेताओं को काबू में लाने का महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने किया था। इसलिए वे सामान्य जनता के ‘हीरो’ बन गए। प्रधानमंत्री के दौरे का खर्च भी उस निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवारों के बीच साझा किया जाएगा, ऐसा तब शेषन ने जाहिर किया था और तब इससे सत्ताधारियों की चूलें हिल गई थीं। सरकारी विमान, सुरक्षा बलों का लाव-लश्कर लेकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री चुनाव प्रचार में घूमते हैं तो वह उनका निजी दौरा बन जाता है और भार जनता के माथे पर डाला जाता है। ऐसे दौरों में चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करके प्रधानमंत्री, गृहमंत्री मतदाताओं को प्रलोभन देते हैं, यह अपराध ठहराया जाना चाहिए। अमित शाह ने मध्य प्रदेश के लोगों को मुफ्त में अयोध्या यात्रा कराने का प्रलोभन दिया। इसके खिलाफ शिवसेना ने मुख्य चुनाव आयोग को पत्र भेजकर सवाल खड़े किए हैं। यदि शेषन आज उस कुर्सी पर होते तो उन्होंने वर्तमान गृहमंत्री को दुम-दबाकर भागने को मजबूर कर दिया होता। मूलत: मौजूदा मुख्य चुनाव आयोग की नियुक्ति ही विवादास्पद है और श्री प्रशांत भूषण उनकी नियुक्ति के घोटाले का मामला सुप्रीम कोर्ट में ले गए हैं। इससे सभी के मुखौटे उतर गए। धर्म, जाति, पंथ के आधार पर वोट मांगनेवाले सत्ता में हैं और चुनाव आयोग उनकी गिरफ्त में है। भाजपा के शासनकाल में उरी से लेकर पठानकोट, पुलवामा के आतंकी हमले हुए लेकिन उन हमलों में मरनेवाले, शहीदों का बाजार सजाकर प्रधानमंत्री समेत भाजपाई नेता वोट मांगते रहे। पुलवामा का हत्याकांड यानी सरकार की उदासीनता है और इसलिए सदोष मानववध सिद्ध होता है, लेकिन उस शहादत पर वोट मांगे जाने के दौरान चुनाव आयोग गूंंगा-बहरा बनकर दिल्ली के निर्वाचन आयोग में बैठा था। ये भयंकर है। ऐसे चुनाव आयोग से अब स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव की अपेक्षा क्यों करें?
बजरंग बली का जयघोष करते हुए मतदान करो, ऐसा देश के प्रधानमंत्री प्रचार सभा में कहते हैं।
मध्य प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई तो वहां की जनता को ‘अयोध्या यात्रा’ का लाभ देंगे। वह भी मुफ्त, ऐसा देश के गृहमंत्री घोषित करते हैं।
देश में कोई चुनाव आयोग है क्या? ऐसा प्रश्न इससे खड़ा होता है!