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ये कभी मुमकिन नहीं

मैं किसी का दिल दुखाऊं ये कभी
कहती नहीं है दिल की सदाएं
जो शहरों में आग लगाएं
किसी आंखों में खुशी न दे कर,
किसी आंखें नम कर दे
मैं किसी का दिल दुखाऊं
ये कभी मुमकिन नहीं
खिलते होंठों के फूलों पर
मदमस्त हंसी के गालों पर
यूं हवाओं के झकोरों पर
महकी-महकी सांसों को,
मीठी-मीठी बातों को,
रंग भरे हैं इसमें जो,
कुछ ऐसा करके बेरंग कर दे
इन घटाओं के नगमों को,
यूं ही बेढंग कर दे
मैं किसी का दिल दुखाऊं
ये कभी मुमकिन नहीं
रोते दिल के अरमानों से
जमीं और आसमानों से
लेके हंसी, न दे खुशी
सीखा नहीं ये मैंने कभी
मैं किसी का दिल दुखाऊं
ये कभी मुमकिन नहीं।
-मनोज कुमार
गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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