एम एम सिंह
बात सानपाड़ा नई मुंबई की है। सुबह के ९ बज रहे होंगे। सानपाड़ा में मैदान अच्छे-खासे हैं। मैदान से लगे फुटपाथ पर काफी आवाजाही रहती है… सेहत के प्रति सजग लोगों से मैदान भरा है… अचानक शोर उठने से सभी की निगाहें फुटपाथ पर चली गई, जहां नई मुंबई महानगरपालिका की दो सफाई महिला कर्मचारी के साथ कुछ लोग बहस कर रहे थे। महिला कर्मचारी कह रही थीं कि अगर आपको कुत्ते पालने का शौक है तो शौक से पालिए, लेकिन पहले उन्हें शौच करना सिखाएं या फिर महानगरपालिका ने इसके लिए जो अलग स्थान बना रखा है वहां जाइए, ताकि आपके कुत्ते फारिग हो सकें। लेकिन युवाओं यानी पेट लवर्स को उनके पेट को ‘कुत्ता’ कहना खल रहा था। उनके लिए कुत्ते नहीं बल्कि ‘पेट डॉगी’ थे उनके परिवार के सदस्य की तरह। बात इतनी होती तो ठीक थी, लेकिन धीरे-धीरे महिलाएं अपने आप को असहाय पा रही थीं क्योंकि कुत्तों की बेइज्जती उनके मालिकों को खल रही थी। सब एक्शन में कहने लगे कि जब उनके डॉगी पॉटी करते हैं तो वे उसे उठा देते हैं। मजेदार बात तो यह है कि यदि सभी कुत्तों के मालिक अपने डॉगी की पॉटी साफ कर देते हैं तो फुटपाथ, ले गार्डन के कोने और सड़कों पर सरेआम पॉटी क्यों दिखाई देती है? कई नागरिकों ने सवाल पूछ लिया, जिसका जवाब वैसे भी वो गोलमाल तरीके से दे रहे थे। गार्डन में रोज राउंड मारने वाले कई लोगों ने कहा कि स्वयं उन्होंने कई डॉग लवर्स को पॉटी कराते देखा है! अधिकतर देर रात डॉग लवर्स अपने डॉगी को घूमाने लाते हैं और अंधेरे में उन्हें फारिग करा देते हैं। ऐसा नहीं कि सभी डॉग लवर्स ऐसी हरकतें करते हैं। कई नागरिकों ने कुछ डॉग लवर्स की तारीफ करते हुए कहा कि सभी को उनका अनुसरण करना चाहिए! उन लड़कों की आंखों में स्पष्ट और महिलाओं के प्रति गुस्सा साफ झलक रहा था क्योंकि मामला उनके कुत्तों की इज्जत का था।
हालांकि, सानपाड़ा के कुछ एनजीओ, संस्थाएं इस बाबत काफी ईमानदारी से काम कर रही हैं महानगरपालिका के साथ मिलकर, लेकिन समस्या का समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा। नई मुंबई महानगरपालिका बोर्ड यहां पर लगे हुए हैं, लेकिन उन्हें पूछता कौन है? सफाई कर्मचारी हिम्मत कर भी लें तो तो उन्हें पेट लवर्स के कोप का भाजन बनना पड़ता है। बेचारे करें भी तो क्या? यह समस्या नई मुंबई की नहीं, बल्कि मुंबई की, पुणे की सभी महानगरीय शहरों की है। पुणे महानगरपालिका ने तो इस तरह से पॉटी करनेवालों के खिलाफ जो फरमान निकला था वह गजब था। खबर थी कि उसका असर काफी हद तक पड़ा, लेकिन मामला जस का तस है! महानगरपालिका हार मान चुकी है… एनजीओ अपनी कोशिश लगातार करते जा रहे हैं… आम नागरिक बेबस हैं! अब जो कुछ करना है इन पेट लवर्स को ही करना होगा जानवरों को पालना अच्छी बात है, लेकिन समाज को परेशानी हो यह भी अच्छी बात नहीं! भावनाओं को समझेंगे! इति!