डॉ. रमेश ठाकुर
कछुआ प्रजाति का अस्तित्व डायनासोर कालखंड से भी करीब-करीब २०० सौ मिलियन पहले का बताया जाता है। वैसे दुर्भाग्य है कि कछुओं की प्रजातियां अब धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर हैं। आज पूरा संसार ‘विश्व कछुआ दिवस’ मना रहा है, जिसकी शुरुआत सन् २००० में इस उद्देश्य से की गई, ताकि इस दुर्लभ जल जीव प्रजाति को बचाए जाने हेतु संपूर्ण जगत को जागरूकता के जरिए चेताया जाए। असर हुआ भी, लेकिन उतना नहीं जितने की उम्मीदें थीं। पहल १९९० से हुई, जब एक युगल जोड़े ‘सुसान टेललेम और मार्शल थॉम्पसन’ अपने प्रयास से ‘अमेरिकन टॉर्टोइस रेस्क्यू’ नामक संगठन बनाया, जिसके चलते ही ‘विश्व कछुआ दिवस’ की नींव रखी गई। संगठन गैर-लाभकारी है, जिनका काम कछुओं को बचाना और उनका पुनर्वास करना मात्र था। दुनिया में कछुओं की लगभग ३०० से भी ज्यादा अलग-अलग प्रजातियां हैं, जिनमें से अभी तक करीब १२९ प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं।
भारत में वन्यजीव (संरक्षण) कानून-१९७२ के तहत कछुओं को नुकसान पहुंचाने पर सख्त सजा का प्रावधान है। इसके बावजूद इसके शिकारी कछुओं का शिकार करने से बाज नहीं आते। संसार में कछुओं की घटती संख्या की प्रमुख वजहें उनकी तस्करी, संरक्षण का न होना और तेजी से बढ़ता बेहताशा जल प्रदूषण? ‘टर्टल सर्वाइवल एलायंस’ की सर्वे रिपोर्ट बताती है कि हिंदुस्थान में बहने वाली गोमती नदी में सबसे ज्यादा कछुए आज भी पाए जाते हैं। अब उनमें भी महज ८-१० प्रजातियां ही बची हैं। वर्ष-२००३ में आई रिपोर्ट के मुताबिव्, कछुए की देशी ‘ढोर प्रजाति’ पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं। गोमती नदी का उद्गम स्थल यूपी के पीलीभीत जिले से है, जहां आज भी कछुओं की तादाद अच्छी है। १९८९ में ‘गंगा एक्शन प्लान’ के तहत ७ किमी क्षेत्र को ‘कछुआ सेंचुरी’ के रूप में कुछ नदियों में १००-१०० कछुए छोड़े गए, लेकिन वो कछुए कहीं भी दिखाई नहीं पड़ते। कहते हैं कछुओं के तेल से औषधियां बनती हैं और मर्दाना ताकत के लिए प्रयोग होता है, जिसके चलते लोग कछुओं को निशाना बनाते हैं।
‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ की रिपोर्ट कहती है कि अगले ४५ वर्षों के भीतर कछुए विलुप्त हो जाएंगे। संगठन ने अपनी पड़ताल में ज्यादातर कछुओं की प्रजातियों को कमजोर, लुप्तप्राय या संकट में जीवन को वर्गीकृत किया है। उदाहरण के तौर पर साउथ अफ्रीकी कछुए प्लॉशेयर कछुआ और विकिरणित कछुआ गायब हो चुके हैं। कछुओं की कुदरती संरचना अत्यधिक अनुकूलनीय हैं। कछुए प्रत्येक महाद्वीपों में पाए जाते हैं। दक्षिण पूर्वी उत्तरी अमेरिका और दक्षिण एशिया में अधिकांश कछुओं की प्रजातियों का घर है। भारतीय कछुए बहुत शानदार और सुंदर होते हैं। भारतीय कछुआ ज्यादातर गतिहीन और शांत दिखाई देने वाले अविश्वसनीय रूप से आकर्षित होते हैं। इन्हें दुनिया का सबसे पुराना सरीसृप समूह का हिस्सा भी बताया गया है, जिसका वजूद सांप और मगरमच्छ से भी पुराना है। संसार के लोगों को कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास में रहने और समृद्ध होने में मदद करने के महत्व को समझाने के लिए हर साल इस दिन खास दिवस मनाया जाता है।
कछुओं की उम्र ३०० सौ वर्ष से भी अधिक बताई जाती है। भारत की एकमात्र कछुआ संरक्षण परियोजना ओडिशा में १९८९ को प्रारंभ हुई थी, वहीं पिछले वर्ष इन्हीं दिनों में समुद्र के तट पर बने अभयारण्य में हजारों कछुओं की मरने की खबर सामने आई। वन विभाग के अधिकारी मौके पर गए तो उनको हजारों कछुओं के कंकाल मिले। भारत में कछुओं की तस्करी बड़े पैमाने पर जारी है। हमारे देशी कछुओं की मांग इंटरनेशन मार्केट में सबसे ज्यादा रहती है। दुर्लभ प्रजाति के कछुओं की ऑनलाइन मार्केटिंग भी खूब होने लगी है। वन्यजीव अधिनियम-१९७२ के तहत कछुओं का शिकार और व्यापार पूर्ण प्रतिबंध है। कछुओं का संरक्षण न होना घोर चिंता का विषय है। अगर ऐसा ही रहा तो भविष्य में कछुए सिर्फ कहानी-किस्सों में ही सिमट जाएंगे। सकारात्मक सोच के साथ कछुओं के संरक्षण के लिए आम जनों को भी अपनी भागीदारी निभानी चाहिए।