कविता श्रीवास्तव
सैर-सपाटे सबको खुशियां देते हैं। लेकिन जरा-सी लापरवाही खुशियों को कब गम में बदल देगी, यह कोई नहीं जानता! बीते सोमवार को समृद्धि एक्सप्रेस-वे पर नासिक से सटे सिन्नर में कार में सवार एक ही परिवार के चार लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। खुशियां मनाने निकला पूरा परिवार ही खत्म हो गया। ३ जून को यहीं एक कार में तीन और लोगों की मौत हुई थी। एक अन्य दुर्घटना में यहीं पर बस से बचने के चक्कर में एक ट्रक और कार के बीच टक्कर हो गई। एक्सप्रेस-वे आम लोगों की सहूलियत और यातायात की सुगमता के लिए है। लेकिन लापरवाह ड्राइविंग लोगों की जान ले रही है। करीबन १९ साल पहले यहीं मेरे देवर की गाड़ी भी पलट गई थी। उस दिन हम अंधेरी में अपने रिश्तेदार के यहां भोजन पर गए थे, तभी देवर के मोबाइल से फोन आया। हमें पता था कि वे अपनी कार से शिर्डी और नासिक गए हैं। फोन पर देवर की नहीं, बुआ के पोते की आवाज थी जो उनके साथ गया था। उसने रुआंसी आवाज में कहा ‘यहां कार पलट गई है। चाचा को अस्पताल ले गए हैं। उनके मुंह से खून आ रहा था। पेट में चोट भी लगी है। आप लोग यहां जल्दी आ जाइए।’ यह सुनते ही हम सबकी हवाइयां उड़ गर्इं और कलेजा कांप उठा। हमने विस्तार से पूछा तो बोला, ‘मुझे कुछ पता नहीं चल रहा है। मुझे खुद भी चोट लगी है। मुझे भी अस्पताल ले जाएंगे।’ हम फौरन अपने घर मालाड दौड़ पड़े। इस बीच हमने सिन्नर, नासिक और आसपास के मित्रों-परिचितों को फोन करके बताया। मालाड में भी दुर्घटना की खबर पैâली। आसपास के परिचितों का हुजूम उमड़ पड़ा। करीब चार-पांच गाड़ियों में सवार होकर हम कई लोग तुरंत नासिक के लिए रवाना हो गए। हम बहुत ही घबराए हुए थे। लेकिन साथ चल रहे लोगों ने ढांढस बंधाने और धैर्य रखने की सलाह देते हुए हमें संभाला। रास्ते भर हमने नासिक के अपने सारे संपर्कों को फोन करके स्थिति का जायजा लेने को कहा। हमारे कसारा पहुंचते-पहुंचते सूचना मिल गई कि मेरे देवर अस्पताल में हैं और उनका इलाज चल रहा है। उनकी स्थिति खतरे से बाहर हैं, तब हमने कुछ राहत की सांस ली। इलाज कर रहे डॉक्टर से भी बात हो गई। उन्होंने बताया कि सारी जांच हो रही है। इलाज चल रहा है। आप आराम से आइए। दुर्घटनाग्रस्त हुई कार में सवार तीन अन्य लोगों की हालत भी ठीक है। लेकिन ऐसे वक्त जब तक अपनी आंख से देख न लें, किसी को भरोसा नहीं होता। हमारी भी मनोदशा वैसी ही थी। हम जैसे ही अस्पताल पहुंचे हमारे परिचितों व मदद करनेवाले स्थानीय लोगों ने हमें व्याकुल देखकर शांत होने को कहा। हमारा हाथ पकड़कर उस कक्ष तक ले गए, जहां इलाज चल रहा था। दरवाजा खुलते ही देवर की नजर हमारी नजरों से टकरार्इं तो सबकी आंखों से आंसुओं की वर्षा झरने लगी। हदसाए देवर को भी हिम्मत आई। हमने उनके पूरे शरीर को छूकर देखा कि कहां-कहां चोट लगी है। डॉक्टर ने बताया कि जबड़े में हल्की चोट है। पेट में धक्का लगा है, पर कोई नुकसान नहीं हुआ है। हाथ-पैर कई जगह छिल गया था और कुछ प्रैâक्चर हुए थे। अन्य लोग भी ठीक थे। मदद कर रहे स्थानीय लोगों ने हमें चाय-नाश्ता कराया। हम घटनास्थल भी गए। पता चला कि ओवरटेक करने के चक्कर में नियंत्रण नहीं रहा। गति इतनी ज्यादा थी कि कार डिवाइडर पार हो गई। सामने तेजी से आ रही जीप से टक्कर होने की संभावना थी। बचाते-बचाते कार पलटकर लुढ़कते हुए खेतों में जा पहुंची। हमने देखा कि हमारी कार पूरी तरह से चपटी हो चुकी थी। उसे देखकर उसमें सवार लोगों के बचने की उम्मीद ही नहीं की जा सकती थी। लेकिन फिर भी हमारे देवर और उसमें सवार लोग ईश्वर की कृपा से बच गए।
डॉक्टर ने कहा कि इन्हें कल तक मुंबई भी ले जा सकते हैं। रात हो गई थी। नासिक के हमारे व्यवसायी मित्र संतोष पाटील ने सबके लिए भोजन की व्यवस्था की। हमारे साथ पहुंचे समाजसेवी रामकुमार पाल ने हम सभी के लिए रात में रुकने का प्रबंध करा दिया। सुबह देवर को डिस्चार्ज करवा के एंबुलेंस से हम मुंबई के लिए रवाना हुए। इस हादसे की सूचना सारे परिजनों, मित्रों आदि को लग गई थी। हमारे घर रिश्तेदारों, पड़ोसियों का पूरा मजमा लगा हुआ था। माता का और समस्त महिलाओं का रो-रो कर बुरा हाल था। अस्पताल में सारी व्यवस्था कर ली गर्इं थीं और बाहर पूरा हुजूम उमड़ पड़ा था। भर्ती होने के कुछ दिनों बाद देवरजी ठीक होकर घर आ गए। वह चपटी कार भी ट्रक में लदकर मुंबई आ गई। लेकिन वह दुर्घटना दर्दनाक याद के रूप में हमेशा के लिए दर्ज हो गई। कार ओवरटेक करने की गलती से यह सब हुआ और क्षण भर में सारी खुशियां और रफ्तार का जोश फुर्र हो गया। गनीमत है कि जान बच गई।
हमने तो उसी दिन से सीख लिया कि वाहन चलाते समय धीमे और थोड़ा ठहरकर चलने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जीवन को धोखे में डालने से बचा जा सकता है। हमेशा आगे बढ़ जाने की जिद धोखा दे सकती है। साथ ही याद रखना चाहिए कि मनुष्य जीवन अच्छे संबंध, मधुर व्यवहार और परस्पर सहयोग के बिना संभव नहीं है। वर्ना मदद के इतने हाथ वैâसे आगे आते! संकट के समय यही सहयोग हमें उबारने में मददगार होता है। उस हादसे के बाद सड़क हादसे की हर खबर दिल दहला देती है। लेकिन उस समय स्नेहियों से मिले अमूल्य सहयोग की सुखद अनुभूतियों से आज भी आंखें भर आती हैं।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)