मुख्यपृष्ठस्तंभआज और अनुभव : बैरक में खाई खीर, भूल गए कश्मीर

आज और अनुभव : बैरक में खाई खीर, भूल गए कश्मीर

कविता श्रीवास्तव
कश्मीर का नाम आते ही बर्फीली वादियों, शीतल फिजाओं और हरे-भरे नजारों की मनभावन तस्वीर जेहन में उभरती है। बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए कश्मीर जाना ही होता है। ऊंची बर्फीली वादियों के बीच गुफाओं में बैठे बाबा के दर्शन को इन दिनों रोजाना तीर्थयात्री पहुंच रहे हैं। बीते वर्ष हमने भी बड़े जोश और उमंग के साथ बाबा बर्फानी के दर्शन किए और उम्मीद से ज्यादा आनंद उठाया। हमारी यात्रा जम्मू से बस द्वारा श्रीनगर, फिर बालटाल और वहां से अमरनाथ तक की थी। हम अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, जम्मू उतरे और एक रात ठहरने के बाद अगले दिन सुबह सड़क मार्ग द्वारा श्रीनगर के लिए रवाना हो गए। लेकिन श्रीनगर से कुछ पहले ही हमें सेना के जवानों और पुलिस ने रोक लिया। जवानों ने बताया कि देर शाम और रात में आगे आतंकी हमले का खतरा रहता है इसलिए अब किसी को आगे जाने नहीं दिया जाएगा। हमने कहा कि हमारे होटल बुक हैं। लेकिन वे नहीं माने। हमारे समूह के लोगों ने यहां-वहां फोन लगाना शुरू किया और महिलाओं ने खूब गुस्सा भी दिखाया। लेकिन सेना और पुलिस का कोई भी जवान न तो उत्तेजित हुआ और न ही गुस्सा हुआ। वे केवल मुस्कुराकर हम से एक बार बैरक के भीतर चलने का आग्रह करते रहे। लोगों ने तर्क दिया कि होटल में हमारे कमरे बुक हैं। फिर हमें यहां रात भर बैरक में क्यों ठहराना चाहते हैं? लेकिन वे बार-बार कह रहे थे कि भीतर चलकर तो देखिए। सुबह हम आपको पूरी सुरक्षा के साथ वहां पहुंचा देंगे। हमारे समूह के अलावा अन्य ढेर सारी बसें भी वहां आ चुकी थीं और सैकड़ों यात्री वहां इकट्ठा हो चुके थे। पुलिस और सेना के बड़े अफसरों ने आकर बहुत ही विनम्रता से समझाया। मजबूरन हम सब बैरक की ओर रवाना हो गए। भीतर पहुंचने पर नजारा ही अलग था। लगा कि किसी शादी में पहुंचे हों। वहां अच्छी सजावट और आला दर्जे की साफ-सफाई थी। खाने के अलग-अलग लंगरों में लोग अगवानी करते दिखे। गरमा-गरम चाय और बिस्किट की व्यवस्था, ढेर सारे साफ-सुथरे शौचालय, नहाने की उत्तम व्यवस्था और बैरक में एक साथ सैकड़ों लोगों के सोने के लिए साफ-सुथरे नए बिस्तर और कंबल वहां लगे हुए थे। भक्ति गीत भी बज रहे थे। दर्शन के लिए कुछ झांकियां भी सजाई गई थीं। इतना ही नहीं, जगह-जगह मोबाइल चार्जिंग के पॉइंट्स भी लगे हुए थे। दिन भर की थकान से टूटे हुए लोगों ने गद्दों पर लुढ़कना शुरू किया और बहुत ही राहत की सांस ली। कतार से बने ढेर सारे शौचालयों और बाथरूम में लोगों ने प्रâेश होना शुरू किया। उसके बाद जवानों ने हमें गरमा-गरम लजीज व्यंजनों से भरे भोजन की ओर लपकने को कहा। बिल्कुल गरम चाय और लजीज व्यंजनों का भोजन वहां २४ घंटे उपलब्ध था। हमने भोजन का आनंद लेकर साफ-सुथरे गद्दों पर भरपूर आनंद से आराम किया। कुछ लोगों ने भजन किया। आपस में चर्चा की। किसी प्रशासन की व्यवस्था में इतनी बड़ी सामूहिकता का नजारा और आनंद मैंने पहले कभी नहीं देखा था। बाहर सेना के जवान और पुलिस लगातार पहरा दे रहे थे और भीतर हम सब बारातियों की तरह मजे ले रहे थे। सैकड़ों लोगों के साथ इस तरह का आनंद लेने का जो मजा आया उसने तो श्रीनगर के होटल और वहां की व्यवस्था में रहने का सपना भी भुला दिया। सुबह-सुबह पुलिस का और सेना का बड़ा काफिला हमारी सभी बसों के आगे पीछे हमारे साथ चलने के लिए तैयार था। रास्ते भर सेना के जवानों ने अन्य वाहनों के लिए जगह-जगह रास्ते बंद किए हुए थे। हमारी गाड़ियां सरपट दौड़ी जा रही थीं। हमें कोई वीआईपी होने जैसा अहसास हुआ। हमें बालटाल पहुंचाया गया और अपने निर्धारित समय पर हम अपने शिविरों में पहुंच गए। अगले दिन बाबा बर्फानी के दर्शन किए और मन बहुत संतुष्ट हुआ। कश्मीर के अनंतनाग में बाबा अमरनाथ के दर्शन को जानेवाले तीर्थ यात्रियों के लिए सचमुच में सेना, पुलिस तथा प्रशासन की बहुत ही चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था आज भी है। तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के साथ उनके लिए अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं। बालटाल के शिविरों में एक साथ हजारों लोग रहते हैं। लेकिन वहां खाने-पीने के लिए कोई होटल नहीं है, क्योंकि वहां एक-दो नहीं अनेक सामाजिक संस्थाएं मुफ्त लंगर की व्यवस्था करती हैं। उनमें सुबह से ही गरमा-गरम नाश्ता, दोपहर में अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन, शाम के वक्त अनेक प्रकार के चाट, इडली, डोसा, सैंडविच से लेकर मिष्ठान जैसी वस्तुओं की उपलब्धता रहती है। सारे आकर्षक शिविरों जैसे लंगरों में मनभावन भोजन का आनंद लोगों को बिल्कुल मुफ्त मिलता है। वहां की बर्फीली पहाड़ियों पर ये सामग्रियां सड़क मार्ग और उसके बाद घोड़ों की पीठ पर लादकर लाई जाती हैं। इनमें सेवा करनेवाले सेवादारों का विनम्र आग्रह और उनकी आवभगत देखते ही बनती है, यह अमरनाथ यात्रा जाने पर ही समझा जा सकता है। इस तरह की शानदार व्यवस्था करनेवाली धार्मिक और स्वयंसेवी संस्थाओं को भी हमें सलाम करना चाहिए।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

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