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आज और अनुभव : भावनाओं का नहीं होता भाव …राहुल के सिले जूते लाखों के दिल जीते

कविता श्रीवास्तव

राहुल गांधी इस समय देश में चर्चित व्यक्तियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। एक तो उन्होंने पिछले १० वर्षों में मोदी शासन के एक छत्र साम्राज्य को हिलाने का काम किया है और वर्तमान सरकार दो दलों के सहयोग पर टिकी हुई है। दूसरी ओर उन्होंने आम व्यक्तियों से अपना जुड़ाव निरंतर बनाए रखा है। बीते दिनों जब वे अपने निर्वाचन क्षेत्र सुलतानपुर गए थे, तब उन्होंने राह में एक मोची की दुकान पर बैठकर उससे जूते की सिलाई के बारे में जानकारियां हासिल कीं। इतना ही नहीं उन्होंने उस दुकान में बैठकर एक जूता भी सिल दिया। इसकी तस्वीर भी खूब वायरल हुई। राहुल गांधी ने वहां एक जूता क्या सिला, कमाल ही कर दिया! अब वह जूता सिलने वाला ही एक तरह का सेलिब्रिटी बन गया है। लोग उसकी दुकान के सामने अपनी स्कूटर, कार आदि खड़ा करते हैं। वह जूता भी देखते हैं जो राहुल गांधी ने अपने हाथों से सिला था। कुछ लोगों ने उस जूते के खरीदने की पेशकश भी की। उसका दाम ५ लाख से शुरू होकर अब १० लाख तक भी पहुंच गया है, लेकिन वह दुकानदार भी कम नहीं है। वह खुद उस भाव से अभीभूत है, जो राहुल गांधी ने उसके साथ उसकी दुकान में बैठकर अभिव्यक्त किया। उसकी इलाके में पूछ बढ़ गई है। उसकी दुकानों पर ढेर सारे लोगों का आना-जाना शुरू हो गया है। लोग उसके साथ सेल्फी निकालते हैं। उसका कहना है कि राहुल गांधी के हाथों सिला हुआ जूता वह कभी नहीं बेचेगा। वह तो उसके मूल मलिक को भी नहीं देगा, बल्कि उसका दाम चुका देगा। वह उसे हमेशा अपनी दुकान में सजा कर रखेगा। उसकी इस भावना पर मुझे अपने घर में रखे हुए बेड को पाने की वह खुशी याद आती है, जो उसके पहली बार हमारे घर लाए जाने पर मुझे हुई थी। दरअसल, मेरे बेडरूम का पड़ा बेड कोई साधारण बेड नहीं है। वह एक ऐसी व्यवस्था से आया है, जिसे हम बड़े आदर, सम्मान और श्रद्धाभाव से देखते आए हैं। देश के एक अत्यंत ही प्रतिष्ठित, सम्मानित और लोकप्रिय विद्वान-कथाकार के लिए यह नया बेड लाया गया था। उनके नौ दिनों के उपयोग के बाद यह बेड उस दुकान में वापस भेजा जाना था, जहां से वह लाया गया था। लेकिन मैंने इसे पाने में सफलता पाई। दरअसल, हमारे घर से कुछ दूरी पर बहुत बड़े विशाल मैदान में एक बहुत बड़े लोकप्रिय कथावाचक की भागवत कथा का कार्यक्रम हुआ था। अनेक जानी-मानी हस्तियां उसमें शामिल हुई थीं। महाराजश्री जिस बंगले में ठहरे हुए थे, वह ९ दिनों के लिए किराए पर लिया गया था। आयोजकों ने वहां पर उनके लिए अलग से बेड व रसोर्इं सामग्रियों से लेकर और भी अनेक प्रकार के इंतजाम किए थे। सभी सामान दुकानों से नए लाए गए थे। इस दौरान अपने पति के साथ मैं कई बार महाराजश्री से मिलने उस बंगले तक गई। अनेक लोकप्रिय व नामचीन हस्तियों से भी वहां मुलाकात हुई, जो अक्सर महाराजश्री से उस बंगले में मिलने आया करते थे। आखिर वह दिन भी आया, जब कथा संपूर्ण हुई और महाराजश्री की विदाई की तैयारी होने लगी। अनगिनत श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच अनेक लोगों ने भरपूर श्रद्धाभाव से महाराजश्री को विदाई दी। उसके बाद लोग अपने-अपने घरों की ओर रवाना हो गए, लेकिन व्यवस्थापकों के साथ हमारे पति भी लगे हुए थे। उस बंगले के हर सामान को हटाया जाना था और बंगला खाली करना था। अन्य सामानों के अलावा उस बेड को भी हटाना था, जिसका महाराज श्री ने पूरे ९ दिनों तक उपयोग किया था। सभी लोग उस बेड को बड़े ही पवन भाव से निहार रहे थे। दुकानदार से एकदम सही सलामत रहने पर उसकी कुछ कीमत काट कर बाकी पैसे वापस लौटाने की शर्त पर उसे लाया गया था, तभी आयोजन समिति के प्रमुख ने कहा कि यदि हमारे में से कोई इस बेड को ले जाना चाहे तो वह ले जा सकता है। इससे पहले कि कोई कुछ कहता मेरे पति ने तपाक से हामी भर दी। हालांकि, उसके बाद कई अन्य लोगों ने उस बेड को पाने के लिए कोशिश शुरू कर दीं, क्योंकि जिस बेड पर महाराजश्री ने शयन किया था उसे प्रसाद के रूप में हर कोई अपने घर ले जाना चाहता था। लेकिन आयोजन समिति के प्रमुख ने पहले हामी भरने पर वह हमें देने पर सहमति व्यक्त कर दी। मेरे पति ने जब मुझे फोन पर यह जानकारी दी तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि भागवत कथा सुनने और महाराजश्री से जुड़ाव बनाए रखने पर मैंने ही सबसे ज्यादा जोर दिया था। मेरे कारण ही पति उस कार्यक्रम में आते-जाते थे। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि महाराजश्री ने जिस बेड का उपयोग किया है वह मेरे घर आ जाएगा। जब वह मेरे घर आया तो हमारी सासू मां, मेरे जेठ-जेठानी, देवरानी और पूरा परिवार उसे देखने आए। सब ने उस पर बैठकर, लेटकर स्वयं को धन्य सा महसूस किया। कई श्रद्धालु भी मेरे घर पर आकर उस बेड को छूकर, उस पर बैठकर गए। हम आज भी उसी बेड का उपयोग कर रहे हैं। हमने घर भी बदला, लेकिन वह बेड नहीं बदला। उससे हमारी भावना जुड़ी हुई है। ठीक उसी तरह की भावना, जो सुल्तानपुर में जूते सिलने वाले के मन में उस जूते को लेकर है, जो राहुल गांधी ने उसकी दुकान में बैठकर सिला है। उस जूते पर मिलने वाला कोई भी भाव, उस दुकानदार की भावनाओं के मूल्य की बराबरी नहीं कर सकता।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

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