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आज और अनुभव  : गंदगी परोसने वालों के कान ऐंठने जरूरी… ‘बोल… फिर गाली देगा?’

कविता श्रीवास्तव

सोशल प्लेटफॉर्म्स पर अश्लीलता, गाली-गलौज, नग्नता और आपत्तिजनक वीडियोज परोसने वालों पर अब जाकर नकेल कसी जा रही है। समाज में गंदगी पैâलाने की इन कोशिशों पर देर सही अब जाकर सरकार ने सही कोड़ा चलाया है। अश्लीलता दिखाने और महिलाओं के बारे में अपमानजनक वीडियोज पेश करने वाले १८ ओटीटी प्लेटफॉर्म्स बैन हुए हैं। १९ वेबसाइटें और १० ऐप्स भी ब्लॉक किए गए हैं। सोशल मीडिया हैंडल्स के १२ फेसबुक, १७ इंस्टाग्राम, १६ ऐप्स और १२ यूट्यूब अकाउंट भी ब्लॉक किए गए हैं। अभद्र भाषा और आपत्तिजनक वीडियो वाले ये प्लेटफॉर्म्स लोगों में लोकप्रिय होकर धड़ल्ले से देखे जा रहे थे। इनमें बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग सभी शामिल हैं। इनका असर यह है कि आज गली-मोहल्ले-सड़कों पर ही नहीं बड़े-बड़े संस्थानों में कार्यरत लोग, विद्यार्थी व ढेर सारे लोग कहीं भी, कभी भी, भीड़ में भी बेहद अभद्र भाषा में बातें करते हैं। इससे संस्कार और मर्यादाओं में रहने वाले लोग असहजता महसूस करते हैं। आपसी बातचीत भी अभद्र व अत्यंत ही आपत्तिजनक भाषा में जोर-जोर से बातचीत करके आसपास के लोगों को असहज करने वालों के ये संस्कार हमारी पीढ़ी को किस स्तर पर ले जा रहे हैं यह सोचकर अफसोस ही होता है। हमारे बचपन के जमाने में गाली देना तो बहुत बुरी बात थी। उसे सुनने से बचने को कहा जाता था। हमारे माता-पिता व वरिष्ठजन हमें गाली देने वालों से दूर रहने को कहा करते थे। गाली के नाम पर बस आलसी या कामचोर कहकर ही संबोधित किया जाता था। मुझे याद है जब केवल एक बार गाली देने पर मेरे भाई को पापा ने कितना पीटा था। उसके बाद से आज तक मेरा भाई गाली देने से अब भी बचता है। हमारे स्कूली वक्त में गाली देने वालों का नाम पता लगने पर उसे क्लास में खड़ा करके उसके हाथ पर मास्टर जी डंडे बरसाते थे। स्कूल में गाली देने वाले को प्रिंसिपल के समक्ष खड़ा किया जाता था। हम जिस बस्ती में रहते थे, वहां कई न पढ़ने वाले बच्चों के समूह भी हुआ करते थे। वे छोटी-मोटी गाली-गलौज करते थे। हमें उनसे दूर रहने की सलाह दी जाती थी। हमें याद है जब घर के बड़े लोग बहुत नाराज होते थे तो नालायक, बद्तमीज, दुष्ट जैसे शब्दों का प्रयोग करके बच्चों पर अपना गुस्सा जताते थे। बहुत ज्यादा क्रोधित होने पर कुछ लोग हराम… भी कह देते थे। उन दिनों बच्चों को तो गाली देने की छूट ही नहीं थी। यदि किसी के मुख से गाली निकाली तो उसे घर वाले पीट कर पूछते थे, ‘बोल फिर देगा गाली?’ हम उन संस्कारों से आए हैं, जहां हमें हमेशा सिखाया गया है कि अपने मुख पर कभी गाली न लाएं। हमारे बच्चे आज के दौर के हैं और हमने भी उन्हें यही सिखाया है। आज भी ऐसे ढेर सारे परिवार हैं जो अपने बाल-बच्चों को, अपनी अगली पीढ़ी को संस्कारी, मर्यादित और आदर्श नागरिक बनना चाहते हैं। यही हमारे पारिवारिक, सामाजिक एवं भारतीय संस्कारों की सीख है। लेकिन जब से ओटीटी और सोशल मीडिया के मनमाने प्लेटफार्म आए हैं, गालियों को बहुत ही सहज व आम बोलचाल का चलन बनाया गया है। चिंताजनक बात यह है कि लोग इसके मजे ले रहे हैं और इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। अश्लीलता और गालियों से भरी हुई वेबसीरीज इन प्लेटफार्म्स पर उपलब्ध हैं। इनकी रोकथाम के उपाय करने की किसी ने पहले ही नहीं की। इसका जमकर सामाजिक विरोध भी नहीं हुआ। इसीलिए इन्हें बनाने वाला एक वर्ग लगातार ऐसी वेबसीरीज और वीडियोज बनाता आ रहा है। इन वेबसीरीज, रील्स और वीडियोज बनाने और उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड करने पर कोई सेंसरशिप ही नहीं है। इससे समाज में बुरे संदेश जा रहे हैं। नई पीढ़ी व अन्य लोग भले ही इसे मनोरंजन के लिए देख रहे हैं, लेकिन ये सब हमारी सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करते हैं। ये प्लेटफार्म्स हमारी नई पीढ़ी को खराब कर रहे हैं। बच्चों को बिगाड़ रहे हैं। इससे पूरी पीढ़ी की भाषा बदलती जा रही है और इसीलिए समाज में लोक-लाज, मर्यादाओं का उल्लंघन हो रहा है।
गाली क्रोध का प्रतीक है। क्रोध आने पर मुख से अपशब्द निकलते हैं। यह नैसर्गिक बात है। लेकिन हम देखते हैं आजकल कॉलेज और स्कूल के बच्चे आपसी बातचीत में भी धड़ल्ले से अश्लील शब्दों और गालियों का प्रयोग करते हैं। इसे वे अपने बोलचाल की स्टाइल समझते हैं और यह सब वे इन सोशल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से सीखते हैं। ट्रेनों में, बसों में, सड़कों पर, बाजारों में या भीड़भाड़ की जगह पर भी ऐसे युवा और बच्चे अगल-बगल के लोगों की परवाह किए बिना धड़ल्ले से अपशब्दों का प्रयोग करते हैं। आपसी बातचीत में हंसते और मजाक करते हुए भी इतने गंदे अपशब्द बोल जाते हैं कि अपने बच्चों के साथ और परिवार में चल रहे लोग खीझ कर रह जाते हैं। उसे अनसुना करने में ही भलाई समझते हैं। यह समाज में पैâली आज के युग की बहुत बड़ी बुराई है। इसकी रोकथाम के लिए काउंसिलिंग, समाजसुधार और व्यापक जन जागरण की आवश्यकता है। इस बात की अब सोशल मीडिया और खुले मंचों पर चर्चा होनी चाहिए कि आखिर इस तरह की गंदगी का वैâसे बिहष्कार हो। सख्त नियम-कानून भी बने और सजा के प्रावधान भी हों।

(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

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